भूली बिसरी यादे बचपन की,
आती जब भी,
खिलती मुस्कान,
कठोर हृदय की भी।
रखते थे बादलों पे पांव,
रहते थे आसमां के गांव।
चलती थी अपनी भी,
कई पानी में नांव।
खेलते थे संग सब मिल-जुल,
छोटे-बड़े सब थे यार हमारे।
घाव कोई भी हो,
पल में भर जाता था।
खिलोना कोई हो ना हो,
खेलने में मजा खूब आता था।
रख लू सब यादें,
समेट के।
पल ये क्यूँ,
जल्दी से बीत जाते।
उदासी क्षण भर की मेहमान थी,
चेहरो पर खुशहाली थी।
सबसे दोस्ती,
मिलता लाड़ अपार था।
मन में भय ना कोई,
रोशनी भरा संसार था ह
भूली बिसरी यादे बचपन की।