💐धम्म देशना💐
मार कौन है?
"बाहु सहस्समभिनिम्मित सायुधन्त,
गिरिमेखलं उदित-घोर-ससेन मारं।
दानादि धम्मविधिना जितवा मुनिन्दो,
तं तेजसा भवतु ते जयमङ्गलानि।।"
- जयमंगलअट्ठगाथा
जिन मुनीद्र (बुद्ध) ने सदृढ हथियारों को धारण किए हुए चार सहस्त्र भुजावाले, गिरिमेखला नामक हाथी पर चढ़े हुए अत्यन्त भयानक सेना सहित मार कर अपने दान आदि धम्म के बल से जीत लिया उन भगवान बुद्ध के प्रताप से तेरा कल्याण हो।
पालि साहित्य में "मार" शब्द का प्रयोग कई अर्थों में हुआ है। यह प्रसंगानुसार मृत्यु, दुष्ट व्यक्ति, सद्धम्म का विरोधी, दुष्ट चेतना, और एक देवपुत्र के रूप में चर्चित है। अट्टकथाओं में इसके प्रकार की चर्चा करते हुए- स्कन्धमार, क्लेसमार, अभिसंस्कारमार, मृत्युमार तथा देवपुत्रमार नामक इसके पाँच भेद बताए हैं।
वस्तुत: यह मार क्या है?
मार कोई बाह्य देव या दानव नहीं है। परंतु यह हमारे मन का ही एक अकुशल भाव है। जो बुद्ध के सम्मुख मार को प्रकट होने की बात है, वह किसी बाह्य मार की नहीं, बल्कि मन के अन्त: में अवशिष्ट अकुशल भाव का प्रतिबिम्बित होना है ।
मार की तीन कन्याओं कौन है?
वे है- तृष्णा,अरति तथा राग।
मार की सेना में है- काम, अरति,क्षुधापिपासा, तृष्णा, स्त्यान-मृद्ध, भिरुता, विचिकित्सा, भ्रम, दंभ, लाभ, यश, सत्कार, मिथ्यालब्ध यश आदि।
यह महती मार की सेना कुशल कर्मों में बाधा उपस्थित करते हुए अकुशल कर्मों को करवाती है।
उस मार की सेना को दान आदि पारमी के बल से तथागत ने जीत लिया इस सत्य वचन से सबका मंगल हो।
नमो बुद्धाय🙏🏻🙏🏻🙏🏻