हृदय के रक्तरंजित भावों की अभिव्यक्ति -:
जो असफलता से सफलता , अंधकार से प्रकाश व अज्ञान से ज्ञान की ओर गमन होने समय आए परिवर्तनों की ओर इशारा करती हैं। -:
लेखक - यश प्रताप सिंह
मैं गा रहा हूं ,नैन -धार मुखारविंद से बहा रहा हूं
मैं गा रहा हूं, गान, विरह का मुरीद बना रहा हूं
मैं गा रहा हूं,क्योंकि हृदय रक्तरंजित पा रहा हूं
मैं गा रहा हूं,क्योंकि गत में अपभ्रंश पा रहा हूं
मैं रो रहा हूं, दैहिक आभा खो रहा हूं
मैं रो रहा हूं , मानस काया खो रहा हूं
मैं रो रहा हूं , क्योंकि किंकर्तव्यविमूढ़ हूं
मैं रो रहा हूं, क्योंकि भाग्य से आरूढ़ हूं
मैं सो रहा हूं , निज नीरव रुदन पा रहा हूं
मैं सो रहा हूं, अतः करण द्रवित पा रहा हूं
मैं सो रहा हूं,क्योंकि तिमिर लावण्य खो जाए
मैं सो रहा हूं,क्योंकि भानु रश्मियां फिर आए
@यश प्रताप सिंह