# मैं लेख लिखे जाता हूं।
स्याही कलम से झलक जाता हूं।।
मैं लेख लिखे जाता हूं।
ब्रह्म से ब्रह्मांड तक,
वेदों के प्रज्ञान तक,
खंडन से संगम तक,
शष्य - श्यामल वंदन तक,
रीति से नीति तक,
मीत से प्रीति तक,
मन से मस्तिष्क तक,
रक्त के प्रवाह तक,
मै सबको छुए जाता हूं।
स्वछंद उडे जाता हूं।।
मैं लेख लिखे जाता हूं।
स्याही कलम से झलक जाता हूं।।
रावण से दुहशासन तक,
शासन से प्रशासन तक,
रूढ़ियों से बंधन तक,
कुकृत्यों के चंदन तक,
विद्रोह से देश द्रोह तक,
क्षुप्त- विक्षुप्त अज्ञान तक,
घन - घोर निशा तक,
घट - घट वासिनी प्रजा तक,
ताम्र - तिमिर तम को हटाता हूं।
प्रकाश दीप जलाता हूं।।
मैं लेख लिखे जाता हूं।
स्याही कलम से झलक जाता हूं।।
निखर से प्रखर तक,
वैराग्य से कुशाग्र तक,
स्वयं से समाज तक,
शून्य से शिखर तक,
मैं यश का प्रताप लिए जाता हूं।
निज - यौवन गान किए जाता हूं।।
हृदय धवालित - कुसूमित पाता हूं
स्रोत हूं ,विचार दिए जाता हूं
कलम हूं , स्याही से बात किए जाता हूं।
मैं लेख लिखे जाता हूं।
स्याही कलम से झलक जाता हूं।।
मैं लेख लिखे जाता हूं।
यश प्रताप सिंह,
प्रथम वर्ष
विद्युत अभियांत्रिकी
मेनिट
भोपाल
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मैं स्वयं साक्षी हूं की यह स्वरचित कविता मेरी मौलिक कृति है।
#TN-2321#