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औरतें

22 मार्च 2018

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औरते बड़ी रंगरेज होती है, जाने कहाँ से हुनर पाती है,ये कोरे कोरे मन को,अपनी, खूबियों से रंग जाती है,ये। बालिका बनकर पिता के जीवन में, भरदेती है,अनगिनत रंग, मोम की तरह ढल जाती है, हर सांचे में,हो जाती है जिसके भी संग। माँ की परछाई बनकर आती है,ये।बड़ी होते होते माँ की चिर सखी सी हो जाती है,ये। वधू की तरह अलंकृत होकर, दूजे घर आती है, गैरो को बना अपना, फिर सजाती है,घर नया। उसी नये घर की होकर रह जाती है,ये। ममता,दया,परवाह करते हुए बिता देती है,जीवन सारा, अपने इन्हीं मौलिक गुणों से, और भी निखर जाती है,ये।      .    कविता नागर

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आलोक सिन्हा

आलोक सिन्हा

अच्छी रचना है |

31 अगस्त 2020

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औरतें

22 मार्च 2018
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औरते बड़ी रंगरेज होती है,जाने कहाँ से हुनर पाती है,येकोरे कोरे मन को,अपनी,खूबियों से रंग जाती है,ये।बालिका बनकर पिता के जीवन में,भरदेती है,अनगिनत रंग,मोम की तरह ढल जाती है,हर सांचे में,हो जाती हैजिसके भी संग।माँ की परछाई बनकरआती है,ये।बड़ी होते होतेमाँ की चिर सखी सी हो जाती है,ये।वधू की तरह अलंकृत होक

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आप भाग्यशाली है।

24 मार्च 2018
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ऐसा क्यों है..आखिर।जब कोई महिला अपने ससुराल जाकर पति के साथ सांमजस्य बिठाने में सफल हो जाती है,और अगर पति हर तरह से उसका सहयोग करता है,तो उसे किस्मत वाली कहा जाता है।पतिपत्नी एक ही गाड़ी के दो पहिए होते है।दोनों की समान महत्ता है,फिर भी अधिकतर पत्नियां ही समझौता करती पाई गई है।पत्नी अगर नौकरी भी करती

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धैर्य

3 अप्रैल 2018
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मन की मंजूषा में मैनेधैर्य की संपत्ति सहेज रखी है।प्रतिदिन-प्रतिपल आकलनकरती हूं,कहीं कम तो नहीं,हो रही मेरी संपत्ति,हालातों की मार सेदुविधाओं के अंबार से। चित्त वृत्तियों को समझाबुझाकर,बढ़ा लेती हूंँ, धैर्य अपना।आशावृक्ष की छांव तलेकभी तो सब्र फल मिलेगाऔर पूरा होगा मेरा सपना।         कविता नागर      

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