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धैर्य

3 अप्रैल 2018

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मन की मंजूषा में मैने धैर्य की संपत्ति सहेज रखी है। प्रतिदिन-प्रतिपल आकलन करती हूं,कहीं कम तो नहीं, हो रही मेरी संपत्ति, हालातों की मार से दुविधाओं के अंबार से। चित्त वृत्तियों को समझाबुझाकर, बढ़ा लेती हूंँ, धैर्य अपना। आशावृक्ष की छांव तले कभी तो सब्र फल मिलेगा और पूरा होगा मेरा सपना।          कविता नागर         देवास(म.प्र.)         02/04/2018

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