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Kavita Nagar की डायरी

Kavita Nagar

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kavita nagar ki diary

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पुस्तक के भाग

1

औरतें

22 मार्च 2018
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औरते बड़ी रंगरेज होती है,जाने कहाँ से हुनर पाती है,येकोरे कोरे मन को,अपनी,खूबियों से रंग जाती है,ये।बालिका बनकर पिता के जीवन में,भरदेती है,अनगिनत रंग,मोम की तरह ढल जाती है,हर सांचे में,हो जाती हैजिसके भी संग।माँ की परछाई बनकरआती है,ये।बड़ी होते होतेमाँ की चिर सखी सी हो जाती है,ये।वधू की तरह अलंकृत होक

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आप भाग्यशाली है।

24 मार्च 2018
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ऐसा क्यों है..आखिर।जब कोई महिला अपने ससुराल जाकर पति के साथ सांमजस्य बिठाने में सफल हो जाती है,और अगर पति हर तरह से उसका सहयोग करता है,तो उसे किस्मत वाली कहा जाता है।पतिपत्नी एक ही गाड़ी के दो पहिए होते है।दोनों की समान महत्ता है,फिर भी अधिकतर पत्नियां ही समझौता करती पाई गई है।पत्नी अगर नौकरी भी करती

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धैर्य

3 अप्रैल 2018
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मन की मंजूषा में मैनेधैर्य की संपत्ति सहेज रखी है।प्रतिदिन-प्रतिपल आकलनकरती हूं,कहीं कम तो नहीं,हो रही मेरी संपत्ति,हालातों की मार सेदुविधाओं के अंबार से। चित्त वृत्तियों को समझाबुझाकर,बढ़ा लेती हूंँ, धैर्य अपना।आशावृक्ष की छांव तलेकभी तो सब्र फल मिलेगाऔर पूरा होगा मेरा सपना।         कविता नागर      

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