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बहुत असहाय सा महसूस करता हूँ

5 फरवरी 2018

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बहुत असहाय सा महसूस करता हूँ जब देखता हूं ये कोलाहल ये जातिवाद की राजनीति कभी हिन्दू , कभी मुस्लिम और कभी इतिहास , संस्कृति के नाम पर नन्हें - नन्हे बच्चों पर पथराव हाँ! मैं बहुत असहाय सा महसूस करता हूँ।। वो पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे कभी वंदे मातरम के नाम पर राजनीति किसानों पर गोलियों की बौछार और फिर कभी हत्याएं ,तो कभी बलात्कार हाँ! मैं बहुत असहाय सा महसूस करता हूँ।। वो इंसानियत का मर जाना लोगों की अस्मिता का चिर - हरण कलम की ताकत से परेशान होना उसे तोड़ना,मरोड़ना और फिर उसकी हत्या कर देना हाँ! मैं बहुत असहाय सा महसूस करता हूँ अपने आप में बहुत अकेला सा महसूस करता हूँ।। @ अवनीश शुक्ला "नान्ह"

अवनीश शुक्ला -नान्ह- की अन्य किताबें

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आओ बचपन ख़ुद में ढूँढें

18 जनवरी 2018
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आओ बचपन खुद में ढूंढेंसुबह की ठंडी हवा निरालीधूप खिली है मतवाली।नन्हें-नन्हें पांव से गिर करउठने के सपने बुन लें।।आओ बचपन खुद में ढूंढें।......2वो आंगनवाड़ी में जा-जा कर क, ख, ग, घ, ङ पढ़नाए, बी,सी,डी के चक्कर मे सिस्टर जी की डांट भी सुनना।पट्टी पर खड़िया से लिख कर थोड़ी यादें ताजा कर लें।।आओ बचपन खुद

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जीएसटी पर कविता

25 जनवरी 2018
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जीएसटी! हाँ ! भइया जीएसटी आई हैसुना है भइया जीएसटी आई है।साहब कहत हैं गुड़ और सिंपल टैक्स है अउर सब के मन का खूब लुभाई है। हाँ ! भइया जीएसटी आई है सुना है भइया जीएसटी आई है।। नवा कानून है भाई व्यापारी कै व्यापार बढ़ जाई वित्त मंत्री दिहिन बताई सीए, वकील, अकाउंटेंट कै बह

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बहुत असहाय सा महसूस करता हूँ

5 फरवरी 2018
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बहुत असहाय सा महसूस करता हूँजब देखता हूं ये कोलाहलये जातिवाद की राजनीतिकभी हिन्दू , कभी मुस्लिमऔर कभीइतिहास , संस्कृति के नाम परनन्हें - नन्हे बच्चों पर पथरावहाँ!मैं बहुत असहाय सा महसूस करता हूँ।।वो पाकिस्तान जिंदाबाद के नारेकभी वंदे मातरम के नाम पर राजनीतिकिसानों पर गोलियों की बौछार और फिरकभी हत्या

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