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आओ बचपन ख़ुद में ढूँढें

18 जनवरी 2018

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आओ बचपन खुद में ढूंढें

सुबह की ठंडी हवा निराली

धूप खिली है मतवाली।

नन्हें-नन्हें पांव से गिर कर

उठने के सपने बुन लें।।

आओ बचपन खुद में ढूंढें।......2


वो आंगनवाड़ी में जा-जा कर

क, ख, ग, घ, ङ पढ़ना

ए, बी,सी,डी के चक्कर मे

सिस्टर जी की डांट भी सुनना।

पट्टी पर खड़िया से लिख कर

थोड़ी यादें ताजा कर लें।।

आओ बचपन खुद में ढूंढें।......2


कभी शरारत कभी अडिगपन

कभी-कभी वो इठलाना,

कभी-कभी झट पट जा कर

माँ की गोदी में छुप जाना।

कभी कभी पापा जी की भी

प्यार भरी दो डाँटें सुन लें।।

आओ बचपन खुद में ढूंढें।......2


वो नाना के घर पैसे पाना

दौड़ के जाकर कम्पट लाना,

भीतर में रक्खे डेहरी से

चुपके चुपके गुड़ खाना।

उन खट्टी-मीठी यादों में

आओ फिर से आहें भर लें।।

आओ बचपन खुद में ढूंढें।......2


गुल्ली-डंडा और कबड्डी

लुक्का-छिपी खूब खेल खेलना

नानी के संग लेट-बैठ कर

राजा,रानी के किस्से सुनना

जीवन की आपाधापी में

आओ यूँ ही बचपन लिख दें

आओ बचपन खुद में ढूंढें।......2


~ अवनीश शुक्ला "नान्ह"

अवनीश शुक्ला -नान्ह- की अन्य किताबें

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आओ बचपन ख़ुद में ढूँढें

18 जनवरी 2018
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जीएसटी पर कविता

25 जनवरी 2018
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जीएसटी! हाँ ! भइया जीएसटी आई हैसुना है भइया जीएसटी आई है।साहब कहत हैं गुड़ और सिंपल टैक्स है अउर सब के मन का खूब लुभाई है। हाँ ! भइया जीएसटी आई है सुना है भइया जीएसटी आई है।। नवा कानून है भाई व्यापारी कै व्यापार बढ़ जाई वित्त मंत्री दिहिन बताई सीए, वकील, अकाउंटेंट कै बह

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बहुत असहाय सा महसूस करता हूँ

5 फरवरी 2018
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बहुत असहाय सा महसूस करता हूँजब देखता हूं ये कोलाहलये जातिवाद की राजनीतिकभी हिन्दू , कभी मुस्लिमऔर कभीइतिहास , संस्कृति के नाम परनन्हें - नन्हे बच्चों पर पथरावहाँ!मैं बहुत असहाय सा महसूस करता हूँ।।वो पाकिस्तान जिंदाबाद के नारेकभी वंदे मातरम के नाम पर राजनीतिकिसानों पर गोलियों की बौछार और फिरकभी हत्या

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