आओ बचपन खुद में ढूंढें
सुबह की ठंडी हवा निराली
धूप खिली है मतवाली।
नन्हें-नन्हें पांव से गिर कर
उठने के सपने बुन लें।।
आओ बचपन खुद में ढूंढें।......2
वो आंगनवाड़ी में जा-जा कर
क, ख, ग, घ, ङ पढ़ना
ए, बी,सी,डी के चक्कर मे
सिस्टर जी की डांट भी सुनना।
पट्टी पर खड़िया से लिख कर
थोड़ी यादें ताजा कर लें।।
आओ बचपन खुद में ढूंढें।......2
कभी शरारत कभी अडिगपन
कभी-कभी वो इठलाना,
कभी-कभी झट पट जा कर
माँ की गोदी में छुप जाना।
कभी कभी पापा जी की भी
प्यार भरी दो डाँटें सुन लें।।
आओ बचपन खुद में ढूंढें।......2
वो नाना के घर पैसे पाना
दौड़ के जाकर कम्पट लाना,
भीतर में रक्खे डेहरी से
चुपके चुपके गुड़ खाना।
उन खट्टी-मीठी यादों में
आओ फिर से आहें भर लें।।
आओ बचपन खुद में ढूंढें।......2
गुल्ली-डंडा और कबड्डी
लुक्का-छिपी खूब खेल खेलना
नानी के संग लेट-बैठ कर
राजा,रानी के किस्से सुनना
जीवन की आपाधापी में
आओ यूँ ही बचपन लिख दें
आओ बचपन खुद में ढूंढें।......2
~ अवनीश शुक्ला "नान्ह"