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अवनीश शुक्ला -नान्ह- की डायरी

अवनीश शुक्ला -नान्ह-

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avnish shukla nanh ki dir

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पुस्तक के भाग

1

आओ बचपन ख़ुद में ढूँढें

18 जनवरी 2018
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आओ बचपन खुद में ढूंढेंसुबह की ठंडी हवा निरालीधूप खिली है मतवाली।नन्हें-नन्हें पांव से गिर करउठने के सपने बुन लें।।आओ बचपन खुद में ढूंढें।......2वो आंगनवाड़ी में जा-जा कर क, ख, ग, घ, ङ पढ़नाए, बी,सी,डी के चक्कर मे सिस्टर जी की डांट भी सुनना।पट्टी पर खड़िया से लिख कर थोड़ी यादें ताजा कर लें।।आओ बचपन खुद

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जीएसटी पर कविता

25 जनवरी 2018
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जीएसटी! हाँ ! भइया जीएसटी आई हैसुना है भइया जीएसटी आई है।साहब कहत हैं गुड़ और सिंपल टैक्स है अउर सब के मन का खूब लुभाई है। हाँ ! भइया जीएसटी आई है सुना है भइया जीएसटी आई है।। नवा कानून है भाई व्यापारी कै व्यापार बढ़ जाई वित्त मंत्री दिहिन बताई सीए, वकील, अकाउंटेंट कै बह

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बहुत असहाय सा महसूस करता हूँ

5 फरवरी 2018
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बहुत असहाय सा महसूस करता हूँजब देखता हूं ये कोलाहलये जातिवाद की राजनीतिकभी हिन्दू , कभी मुस्लिमऔर कभीइतिहास , संस्कृति के नाम परनन्हें - नन्हे बच्चों पर पथरावहाँ!मैं बहुत असहाय सा महसूस करता हूँ।।वो पाकिस्तान जिंदाबाद के नारेकभी वंदे मातरम के नाम पर राजनीतिकिसानों पर गोलियों की बौछार और फिरकभी हत्या

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