मैंने अपने आप को अन्दर से टटोला कि मैंने जीवन कैसे जीया
रात को कायोत्सर्ग की मुद्रा में लेटी , कोमलता से आंखों को बंद किया और भीतर की ओर चली गयी।
बचपन कितना अच्छा था मां बाप दादा दादी का प्यार मिला
स्कूल में आगे बढ़ने की मंजिल दिखाई ।
सहीऔर गलत की पहचान करना सिखाया
सब कुछ अच्छा ही चल रहा था कि अचानक में भटक गई
उस पड़ाव में उन सपनों को पूरा करने में ।
प्यार , नफ़रत,जोश,होश, गुस्सा इतने सारे रंग सभी
जीवन में उतर चुके थे।
खो गया बचपन बदल गया जीने का तरीका।
ज़िन्दगी रेलगाड़ी की तरह दौड़ रही थी
हर पल नया रंग जीवन में उतरता चला गया।
एक से दो दो से चार
जीवन फिर रंगों से भर गया।
अब किसी का बचपन संवारने की मेरी बारी थी।
ख्वाहिशें बढ़ी जिम्मेदारी बढ़ी
ज़िन्दगी चली अगले पड़ाव की और।