वैश्वीकरण के इस दौर में विश्व का कोई भी देश ऐसा नहीं है जिसे अपनी जरूरतों के लिए दूसरे देशों से कोई अपेक्षा नहीं हो। ग्लोबलाइजेशन में हम हर चीज के लिए एक दूसरे पर निर्भर है। ऐसे ही रक्षा सहयोग के लिए
मेरी कल्पनाएं कहती हैं कि, हर देश में शांति और सद्भाव चाहिए।मानवता और कुदरत को बचाने के लिए,हर मनुज के मन में दृढ़ संकल्प चाहिए।।प्रतिस्पर्धी बन मानव और कुदरत को,ध्वस्त कर रहे हो।हे मानव तुम स्वय