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गाथ छंद

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गाथ छंद◆* विधान~[ रगण सगण गुरु गुरु] ( 212 112 2 2) 8 वर्ण, 4 चरण, दो-दो चरण समतुकांत]....... "गाथ छंद" प्राण हो हिय आओ जी तान हो पिय गाओ जी। राग हूँ सुन जाओ तो आस हो जत लाओ तो।। चाह हो तुम बैठो सा आह ले मत ऐंठो सा। नाचती रहती गौरी पाँव में घुघरू पौरी।। महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

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