पितृ दिवस पर आदरणीय पिता जी को सादर समर्पित एक रचना, समान्त- अने, पदांत- बापू से, मात्रा भार- 30......"गीतिका" चाह हुई की मिल आऊँ खुद जाकर अपने बापू से पकड़ चला हूँ अंगुली जिनकी लेकर सपने बापू से बहुत लुटाया बहुत जुटाया उनकी भरी तिजोरी ने देख तो आऊँ कोना कतरा अब के कह