आधी आबादी१
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जी हाँ
मैं अस्तित्व विहीन, अस्तित्व रचित
राज़दार मुझसा भी नहीं
जीवन साथी, जीवन संगनी
ले आभार निभाती रस्में
पैरो पायल, हाथों कंगना
संग कंगना, बाजूबन सजना
बिछिया पेटी भाती जाती
बेंदी चूड़ी, साथ निभाती
मांग सिंदूर, लम्बी चोटी
उस पर गजरा खूब सजाती
जूड़ा पाती, लट जुल्फों की
गाल गुलाबी महके चहके
नयनों में कजरा, ओठों में लाली
माथे की बिंदिया, कानों के झुमके
गालों को चूमें, उस पर पी की लाज को ओढ़े
मैं पी संगनी, पी की अंगनी
मैं पी रस में बस जाने को
शर्मोहया में लम्बा सा घूँघट
संग - संग पी में खिल जाने को
नहित मार्ग में रम जाने को
ढ़ूँढ़ू अपना ठौर - ठिकाना
खोज रही अस्तित्व बचाना
आधी आबादी पूँछे ठिकाना
रचती रचना जीवन संग।।
अनुपम कुमार श्रीवास्तव
कानपुर
तिरंगा
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तीन रंगा का झन्डा प्यारा
झन्डा ऊँचा रहे हमारा
घर - घर की आवाज है
झन्डे पर मुझ नाज है
शान्ति संदेशा लाना है
घर - घर तिरंगा फहराना है।।
तिरंगा सबसे न्यारा है
जान से भी प्यारा है
तीन रंग का झन्डा प्यारा
झन्डा ऊँचा रहे हमारा।।
आजादी अहसास दिलाता
यह झन्डा हमारा है।।
घर-घर तिरंगा फहराना है।।
पूरब, पश्चिम, उत्तर दक्षिण
झन्डा शान निराली है
अहसास कराती वीरों का
आजादी खुश्बू लाती है
चारोंदिशा के घर - घर में
अहसास की बेला पाती है
मजहब बोली भले अलग हो
झन्डा एक हमारा है
घर-घर तिरंगा फहराना है।।
हिन्द देश के वासी हम सब
हिन्दुस्तान हमारा है
हिन्दी हैं हम हिंदू हैं हम
वतन जां से भी प्यारा है।
घर-घर तिरंगा फहराना हैं।।
झूमें मस्ती याद करेंगे,
वीरों की कुर्बानी को
उनकी शहादत में हर रंगी
आजादी की वाणी को
नतमस्तक है देश का वासी
आजादी कुर्बानी को
वीरों की इस अमर कथा को
घर - घर में पहुँचाना है
घर-घर तिरंगा फहराना है।।
अनुपम कुमार श्रीवास्तव
कानपुर ।।