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आधी आबादी 2

21 सितम्बर 2022

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आधी आबादी २

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सहज औरत हूँ मैं 

संग रहती हूँ मैं 

बन मैं अर्धांगिनी

सृजन करती हूँ मैं।। 

अम्बार खुशियों का सजाती हूँ सदा मैं

प्रकृति के संग खिलखिलाती हूँ सदा मैं

ओढ़ लाल-लाल चूनरी तेरे नाम की - 

कुनबे में चार चाँद लगाती  हूँ सदा मैं।। 


तेरे हँसने पर मैं हँसती  हूँ सदा मैं, 

ते'रे' गमगीन गमों  पर  गम में हूँ सदा  मै, 

सुगम हो या विकट हो, हर सफर में  तेरे-

छोड़ अपना वजूद सजाती हूँ सदा मै।। 


फक्र है मुझे अब बन  औरत हूँ सदा मैं 

जान से भी'.  ज्यादा न्योछावर हूँ सदा मैं 

संग जीना मेरा तेरे संग- संग रह-

आरजू है मेरी रहूँ मैं हूँ सदा मै।। 


समय का चक्र चलता ही चला था, 

मुझे दोयामी दर्जा ही मिला था। 

नजरें आपसे मिलने में झिझकती, 

कभी बेसुध पड़ कोने में लुढ़कती।। 


सिसकती रही दो - दो थप्पड़ भी खाकर, 

कभी लातों खूसों की मार भी पाकर। 

वो खूनी उन्माद नजरों में भरा था, 

मैं सलाती रही हर जख्म में हरा था।। 

फितरत कहें या कहने को दस्तूर, 

इन्न सबने किया फिर आप को दूर। 

नश्तर पर नश्तर चुभोने लगे हैं, 

मुझे कोख पर मारने से लगे हैं।। 


अनुपम कुमार श्रीवास्तव 

कानपुर 

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आधी आबादी जो कि एक दुनिया के आगे सच का आईना भी है इसका उत्थान व पतन दोनों ही भले ही समाज में परिवर्तित नजर आता हो अपितु सच्चाई यह है जितना बड़ा योगदान आधी आबादी द्वारा पूरा करने में है। यह किसी अन्य के वश की बात नहीं।

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