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आज।

7 फरवरी 2018

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आज खिड़की खोली

तो हवा के एक

झोंके की दस्तक

कमरे में हुई।

और तुम्हारी

मेरे दिल में।


आज लिखने बैठा

तो खयालों के

भँवर में खो

सा गया।

और वो सिर्फ

खयाल नहीं बल्कि

तेरे होने का

एहसास था।


आज रास्ते पर

चलते हुए कुछ

दिखाई नहीं दे रहा।

एक धुंध की

चादर पड़ी हुई है।

जिसमें अपने

जज्बात लिए लिपटी

हो तुम।


आज एक भीड़

को देखा तो

उसमें भी अजीब

एकान्त दिखा।

क्योंकि उस भीड़

में भी मौजूद

थी तुम, सिर्फ तुम।


©नीतिश तिवारी।

http://iwillrocknow.blogspot.in/

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आज।

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आज खिड़की खोलीतो हवा के एकझोंके की दस्तककमरे में हुई।और तुम्हारीमेरे दिल में।आज लिखने बैठातो खयालों केभँवर में खोसा गया।और वो सिर्फखयाल नहीं बल्कितेरे होने काएहसास था।आज रास्ते परचलते हुए कुछदिखाई नहीं दे रहा।एक धुंध की चादर पड़ी हुई है।जिसमें अपनेजज्बात लिए लिपटीहो तुम।आज एक भीड़को देखा तोउसमें भी अजी

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