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मोहब्बत में घोटाला।

24 फरवरी 2018

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लप्रेक- मोहब्बत में घोटाला। तुम ये बात-बात पर अपने सौंदर्य प्रसाधन का जो डिमांड करती हो ना, मुझे तेरी मोहब्बत में घोटाला नज़र आता है। और ये घर छोड़कर मायके जानेवाली धमकी तो महाघोटाला लगता है। ज्यादा नीरव मोदी बनने की कोशिश ना करो क्योंकि मैं कोई PNB तो हूँ नहीं जो तुम लूटकर चली जाओगी। चलो मान लिया कि तुम मेरे दिल से खेलकर मोहब्बत में घोटाला कर लोगी। पर ये मत समझना कि मैं काँग्रेस की तरह ऑडिट नहीं होने दूँगा। प्यार में भ्रष्टाचार की लड़ाई के लिए बैठ जाऊँगा अनशन पर अन्ना की तरह, एक नए मोहब्बत के केजरीवाल की तलाश में। अगर आपको मेरी ये रचना पसंद आयी हो तो कृपया मेरा फेसबुक पेज like कीजिए। www.facebook.com/poetnitish धन्यवाद। ©नीतिश तिवारी।

Nitish Tiwary की अन्य किताबें

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आज।

7 फरवरी 2018
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आज खिड़की खोलीतो हवा के एकझोंके की दस्तककमरे में हुई।और तुम्हारीमेरे दिल में।आज लिखने बैठातो खयालों केभँवर में खोसा गया।और वो सिर्फखयाल नहीं बल्कितेरे होने काएहसास था।आज रास्ते परचलते हुए कुछदिखाई नहीं दे रहा।एक धुंध की चादर पड़ी हुई है।जिसमें अपनेजज्बात लिए लिपटीहो तुम।आज एक भीड़को देखा तोउसमें भी अजी

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मोहब्बत में घोटाला।

24 फरवरी 2018
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लप्रेक- मोहब्बत में घोटाला। तुम ये बात-बात पर अपने सौंदर्य प्रसाधन का जो डिमांड करती हो ना, मुझे तेरी मोहब्बत में घोटाला नज़र आता है। और ये घर छोड़कर मायके जानेवाली धमकी तो महाघोटाला लगता है। ज्यादा नीरव मोदी बनने की कोशिश ना करो क्योंकि मैं कोई PNB तो हूँ नहीं जो तुम

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मैं एक कवि हूँ।

26 फरवरी 2018
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कभी-कभी शब्दनहीं मिलते,फिर भी खयालोंको बुनने कामन करता है।नदी किनारे सीपकी मोतियों कोयूँ ही चुनने कामन करता है।मैं एक कवि हूँ।गुजरते हुए इसवक़्त को थामनेका मन करता है।सोचता हूँ कुछऐसा लिख जाऊँजो अमर प्रेम कृति बन जाए।मैं एक कवि हूँ।मुश्किलें तो बहुतआती हैं परहौंसला नहीं खोते हैं।हर परिस्थिति मेंएक जै

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आधे से ज्यादा, पूरे से कम।

26 फरवरी 2018
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आधे से ज्यादा, पूरे से कम। वो नहीं मिली, इसका मुझे नहीं है कोई गम। हाँ पर दिल को तसल्ली जरूर देता हूँ कि वो अच्छी तो थी। मेरे दिल के बंजर ज़मीन में एक प्यार की सुनहरी बीज को उसने बो जरूर दिया था। वो अलग बात है कि उसके द्वारा बोया गया बीज अब पौधा बनकर किसी और की बगिया को रौशन कर रहा है। और इस पौधे को

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एहतराम किया।

3 मई 2018
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तुम्हारी खामोशियों का एहतराम किया है मैंने,अपनी ग़ज़ल को भी तेरे नाम किया है मैंने।अपनी पलकों से आँसू को निकलने ना दिया,अपने जज़्बात को तेरा गुलाम किया है मैंने।यूँ तो बर्बाद हो गया मैं तेरी मोहब्बत में लेकिन,फ़कीरी में भी दाना-पानी का इंतज़ाम किया है मैंने।©नीतिश तिवारी।http://iwillrocknow.blogspot.in/

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