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आधे से ज्यादा, पूरे से कम।

26 फरवरी 2018

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आधे से ज्यादा, पूरे से कम। वो नहीं मिली, इसका मुझे नहीं है कोई गम। हाँ पर दिल को तसल्ली जरूर देता हूँ कि वो अच्छी तो थी। मेरे दिल के बंजर ज़मीन में एक प्यार की सुनहरी बीज को उसने बो जरूर दिया था। वो अलग बात है कि उसके द्वारा बोया गया बीज अब पौधा बनकर किसी और की बगिया को रौशन कर रहा है। और इस पौधे को बाग के मालिक से शिकायत जरूर है। ठीक से पानी नहीं मिलने के कारण इसमें काँटे निकल आये हैं। जो नए बीज पनपने नहीं देते और एक डर सा लगा रहता है कि क्या पौधे का वज़ूद खत्म होने वाला है। तुम्हारे प्यार की बस इतनी सी निशानी थी। जो लिख दिया हमने बस वही एक कहानी थी।


©नीतिश तिवारी।

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हाँ, वो मुलाक़ात
अधूरी ही तो थी,
तुमने देखा
हमने देखा
फिर भी नजरें
अनजान बनी रहीं।

मैं मंज़िल को
देखता रहा,
तुम्हे रास्ते की
परवाह थी।
जमाने की फिक्र
करके तुम
ना जाने क्यों
बेताब थी।

मेरी ज़िद थी
दीये को जलाने की,
तुम आंधियों को
हवा दे रही थी।
मेरी ज़िद थी
महफ़िल में
मुस्कुराने की,
तुम तन्हाई में
रहकर खुद को
सजा दे रही थी।

हाँ, वो मुलाक़ात
अधूरी ही तो थी,
जब बरसते बादल
में भी तुमने
प्यार को पनपने
ना दिया।
और मेरा दिल
भींगकर भी
प्यासा रह गया।

©नीतिश तिवारी।

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आज।

7 फरवरी 2018
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मोहब्बत में घोटाला।

24 फरवरी 2018
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लप्रेक- मोहब्बत में घोटाला। तुम ये बात-बात पर अपने सौंदर्य प्रसाधन का जो डिमांड करती हो ना, मुझे तेरी मोहब्बत में घोटाला नज़र आता है। और ये घर छोड़कर मायके जानेवाली धमकी तो महाघोटाला लगता है। ज्यादा नीरव मोदी बनने की कोशिश ना करो क्योंकि मैं कोई PNB तो हूँ नहीं जो तुम

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मैं एक कवि हूँ।

26 फरवरी 2018
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कभी-कभी शब्दनहीं मिलते,फिर भी खयालोंको बुनने कामन करता है।नदी किनारे सीपकी मोतियों कोयूँ ही चुनने कामन करता है।मैं एक कवि हूँ।गुजरते हुए इसवक़्त को थामनेका मन करता है।सोचता हूँ कुछऐसा लिख जाऊँजो अमर प्रेम कृति बन जाए।मैं एक कवि हूँ।मुश्किलें तो बहुतआती हैं परहौंसला नहीं खोते हैं।हर परिस्थिति मेंएक जै

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आधे से ज्यादा, पूरे से कम।

26 फरवरी 2018
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आधे से ज्यादा, पूरे से कम। वो नहीं मिली, इसका मुझे नहीं है कोई गम। हाँ पर दिल को तसल्ली जरूर देता हूँ कि वो अच्छी तो थी। मेरे दिल के बंजर ज़मीन में एक प्यार की सुनहरी बीज को उसने बो जरूर दिया था। वो अलग बात है कि उसके द्वारा बोया गया बीज अब पौधा बनकर किसी और की बगिया को रौशन कर रहा है। और इस पौधे को

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एहतराम किया।

3 मई 2018
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तुम्हारी खामोशियों का एहतराम किया है मैंने,अपनी ग़ज़ल को भी तेरे नाम किया है मैंने।अपनी पलकों से आँसू को निकलने ना दिया,अपने जज़्बात को तेरा गुलाम किया है मैंने।यूँ तो बर्बाद हो गया मैं तेरी मोहब्बत में लेकिन,फ़कीरी में भी दाना-पानी का इंतज़ाम किया है मैंने।©नीतिश तिवारी।http://iwillrocknow.blogspot.in/

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