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LiteraryWorksOfAlokKaushi

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आलोक कौशिक की कुछ साहित्यिक कृतियां

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<p>आलोक कौशिक की कुछ साहित्यिक कृतियां</p>

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युवा

22 अक्टूबर 2020
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जल रही हो जिसमें लौ आत्मज्ञान की समझ हो जिसको स्वाभिमान की हृदय में हो जिसके करुणा व प्रेम भरा बाधाओं व संघर्षों से जो नहीं कभी डरा अपनी संस्कृति की हो जिसको पहचान भेदभाव से विमुख करे सबका सम्मान स्वदेश से करे जो प्रेम अपरम्पार जानता हो चलाना कलम व तलवार राष्ट्र निर्माण में जो सदैव बने अगुवा वास्तव

प्रेम परिधि

22 अक्टूबर 2020
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बिंदु और रेखा में परस्पर आकर्षण हुआ तत्पश्चात् आकर्षण प्रेम में परिणत धीरे-धीरे रेखा की लंबाई बढ़ती गई और वह वृत्त में रूपांतरित हो गयी उसने अपनी परिधि में बिंदु को घेर लिया अब वह बिंदु उस वृत्त को ही संपूर्ण संसार समझने लगा क्योंकि उसकी दृष्टि प्रेम परिधि से परे देख पाने में असमर्थ हो गई थी कुछ समय

आलिंगन

22 अक्टूबर 2020
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पृथक् थी प्रकृति हमारी भिन्न था एक-दूसरे से श्रम ईंट के जैसी सख़्त थी वो और मैं था सीमेंट-सा नरम भूख थी उसको केवल भावों की मैं था जन्मों-से प्रेम का प्यासा जगत् बोले जाति-धर्म की बोली हम समझते थे प्यार की भाषा प्रेम अपार था हम दोनों में मगर ना जाने क्यों नहीं होता था हमारा मिलन पड़ा प्रेम का जल ज्यों

पास और दूर

22 अक्टूबर 2020
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वो जब मेरे पास थी थी मेरी ज़िंदगी रुकी हुई अब वो मुझसे दूर है ज़िंदगी फिर से चल पड़ी जब था उसके पास मैं मैं नहीं था कहीं भी मुझमें अब केवल मैं ही मैं हूँ वो कहीं नहीं है मुझमें जब थी मेरे पास वो था उसे खोने का डर खोकर उसको हो गया अब हर डर से बेख़बर ✍️आलोक कौशिक

मिथिला

1 जुलाई 2020
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मिश्री जैसी मधुर है हमारी बोली हम प्रेमी पान मखान और आम के भगवती भी जहाँ अवतरित हुईं हम वासी हैं उस मिथिला धाम के संतानों को जगाने मिथिला की माएँ सूर्योदय से पूर्व गाती हैं प्रभाती सुनाकर कहानियाँ ज्ञानवर्धक मिथिला की दादी बच्चों को सुलाती प्रतिभा जन्म लेती है यहाँ पर कला और सौंदर्य का संसार है दिखत

मृत्यु

16 जून 2020
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जीवन से मोह ही जीवन को जटिल बनाता है और मृत्यु का भय ही मृत्यु को भयावह मृत्यु तो विश्राम देती है अपनी गोद में आराम देती है मृत्यु ही सच्ची प्रेयसी है लेकिन यह तुम नहीं समझोगे क्योंकि तुम भ्रमित हो तुम्हें पता ही नहीं है कि सत्य क्या है जब मिट जायेगा भ्रम जान लोगे पूर्ण सत्य तब तुम्हें भी हो जायेगा

ग़ज़ल

9 जून 2020
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मैं जानता हूँ कि अब तू ग़ैर है मुझे जीना भी तेरे बग़ैर है फिर भी मोहब्बत है तुझसे मेरे दिल को मुझसे ही बैर है बसा रखा है तुझे इन आँखों में मेरा मन ही बना मेरा दैर है रोज़ रुलाती हैं मुझे यादें तेरी जीने नहीं देती ऐसी ये मैर है तेरे दीदार को आज भी ये दिल करता तेरी गलियों की सैर है ✍️ आलोक कौशिक

सफलता

27 मई 2020
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सन् दो हज़ार अठारह में प्रशासनिक सेवा हेतु बिहार लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित परीक्षा के अंतिम चरण का परिणाम आया था। मनीषा को सफलता प्राप्त हुई थी लेकिन मानव कुछ अंकों से असफल हो गया था। मनीषा और मानव अलग-अलग शहरों के रहने वाले थे किंतु दो वर्षों से दोनों पटना में रहते थे और एक ही कोचिंग इंस्टीट्यूट म

दिल वाला टैटू

4 मई 2020
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क्षमा मिश्रा नाम था उसका। लेकिन मोहल्ले के सारे लड़के उसे छमिया कह कर पुकारते थे। महज़ अठारह बरस की उम्र में मोहल्ले में हुई अठाईस झगड़ों का कारण बन चुकी थी वो। उसका कोई भी आशिक़ चार महीने से ज्यादा उसकी फ़रमाइशों को पूरी नहीं कर पाता था। इसलिए प्रत्येक चार महीने बाद क्षमा के दिल के रजिस्टर पर नए आशिक़

मज़दूर

1 मई 2020
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कामिनी देवी जब कभी भी अपने राइस मिल पर जाती थीं, माधो से ज़रूर मिलती थीं। माधो उनकी राइस मिल में कोई बड़ा कर्मचारी नहीं, बल्कि एक मज़दूर था। राइस मिल में काम करने वाले सभी लोगों का मानना था कि माधो कामिनी मैडम का सबसे विश्वासी कामगार है क्योंकि वह कभी झूठ नहीं बोलता। माधो गठीले बदन वाला छब्बीस वर्षीय

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