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हिन्दी-दिवस

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हिन्दी हमारी मातृ भाषा, करो  इसे  तुम स्वीकार।करो न इसकी अवहेलना,करो जन जन अंगीकार।।माता इसे हम मानते, इससे सभ्यता अरु संस्कृति।ज्ञान पुष्प पल्लवित हो, अर्थ ग्रहण अरु अभिव्यक्ति।।हिन्दी भाषा

संजय की दुनिया का सूरज राहुल के रूप में ढल गया था। उसका बड़ा भाई, उसका सबसे अच्छा दोस्त, चला गया था। एक सड़क हादसा, एक पल में सब कुछ बदल गया था। संजय के लिए, जीवन एक खाली पन्ने जैसा हो गया था, जिस पर

"आज हिंदी दिवस है, समस्त सरकारी कार्यालयों में, और कुछ निजी कार्यालयों में भी, सभाएं बड़ी ही सुन्दर सजी हैं, बड़े बड़े लोग आएं हैं, प्रतीत होता है, विरानो में जैसे गुलशन समायें हैं, चेहरों

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ए रे बैजन्ती क्या तुम्हारे घर है सेवंती । अभी खिले हो नव रस लिए हो हो जाओ अभी समर्पित कर जाओ भक्ति अर्पित ए रे बैजन्ती क्या तुम्हारे घर है सेवंती ।1। प्रफुल्लित हवा मदहोश खुशबू है मनभावन

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जन्म मिला है क्या करेंगे इस संसार में सदा नही रहेंगे। किन राह पर चलना है पहले ये तय करना है कैसे भी हो काँटे हम श्वास श्वास हो जायेंगे जन्म मिला है क्या करेंगे। इस संसार में सदा नही रह

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मनखे मनखे एक समान करीया गोरा के का भेद छोकरा अउ डोकरा के का भेद सबो ला दे हे मति समान मनखे मनखे एक समान। जात पात तो अलग हे त एमे घबराए के का बात सबे के माटी तो एक हे जो पोषण करके बचा

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माँ तेरा यह अर्पण, मेरा जीवन कर गया तर्पण। जन्म से पहले पोषण दिया चुकाया हर सम्भव हर दाम धैर्य भाव से काम किया सम्हाला हर पल हर क्षण माँ तेरा यह अर्पण , मेरा जीवन कर गया तर्पण। जन्म

मैं पगला- पागल रहता हूं मैं तुझमें खोया रहता हूं तू आके मुझसे मिल सही मैं उलझा- उलझा रहता हूं तू मेरा ही सहारा है तू मेरा ही किनारा है मैं तुझसे जुड़कर ओर सनम खुद को ही बांधे रहता हूं दिल

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किस्सा है अमरावती का जो की अभी 72-73 वर्ष की है, पर यह किस्सा 2-3 साल पुराना है | किस्सा शुरू करने के पहले अमरावती छोटा सा परिचय जरूरी है | अमरावती के पति राम अमोल पाठक जी एक पब्लिकेशन हाउस के सम्पादक

**माँ, मुझे कोख में रहने दो**  *(माँ-बेटी का संवाद)*  "माँ, मुझे कोख में रहने दो,  मैं भी देखना चाहती हूँ दुनिया की रौशनी को।  मैं भी जीना चाहती हूँ,  

विश्व हिन्दी दिवस और हिन्दी दिवस दोनों ही हिन्दी भाषा को प्रोत्साहित करने और उसकी समृद्धि को सुनिश्चित करने का उद्देश्य रखते हैं, लेकिन इनके दृष्टिकोण और प्रयास में भिन्नता है। इन उत्सवों का साझा लक

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प्रस्तावना: भाषा हमारे समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो हमें समृद्धि और एकता की ओर बढ़ने में सहारा प्रदान करती है। हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा है और इसका महत्व अधिकता में हमारे सांस्कृतिक और भाषाई ध

चाहत किस-की...? एक समय की बात है, एक व्यक्ति अपनी हाल ही में एक कार खरीदी वो उस को बड़ी चाहत से धुलाई करके चमका रहा था। उसी समय उसका पांच वर्षीय लाडला बेटा, किसी नुकीली चीज से कार पर कुछ लिखने लग

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मस्तिष्क में उपजते आभा सम, वीचारों को छिन्न करती हो, प्रेम से बंधे सुंदर बन्धन को, तुम आकर भिन्न करती हो। तू कुशाग्र बुद्धि की अवरोधक, हर दुःख का तुम सुंदर सपना, तेरे ही आ जाने से जग में, खोती चि

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प्रातः स्मरणेय शिक्षक वृंद के चरणों में कोटिशः नमन। गुरु का स्थान तो कबीरदास जी के इन दोहों से ही स्पष्ट हो जाती है:- गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पाय? बलिहारी गुरु आपकी, गोविन्द दियो बताय। वै

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गुरु का स्थान तो कबीरदास जी के इन दोहों से ही स्पष्ट हो जाती है:- गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पाय? बलिहारी गुरु आपकी, गोविन्द दियो बताय। वैसे तो इस अखिल ब्रम्हांड के सबसे बड़े गुरु शिव हैं। हर

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विश्व हिंदी दिवस: विश्वभर में हिंदी के महत्व का उत्सव परिचय :- विश्व हिंदी दिवस, हर वर्ष 10 जनवरी को मनाया जाता है, जो हिंदी भाषा की महत्वपूर्णता को विश्वभर में बढ़ावा देने के लिए समर्पित है।

'विश्व हिंदी दिवस', किस दिन आता है? इसका पता लगते से ही मन में स्वतः ही राष्ट्रभक्ति जाग उठती है।  'इंडिया' को 'भारत' बोलने का मन करता है और तो और २ से ५ मिनट के लिए अनायास ही सीना गर्व से चौड़ा हो जात

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किसकी कमी जो मै लिखूंगा कौन सी गाठ पड़ गया जो कलम की स्याही बनकर उतर रहा है । अपूर्णता का भाव या अतीत का दमन जो नासूर बनकर उभरता तराजू सन्तुलन में नही किसी एक तरफ झुका रहता था बाजार में

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असम्भव से सम्भव तक का सफर आसान न था । प्रजा की रक्षा और अपने ही लोगो से लड़ना, रंक से राजा तक का सफ़र आसान न था ।  असम्भव---------------------------------------। भूखा रहकर कठिन परिश्रम किए,

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