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आवां

चित्रा मुद्गल

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2 जुलाई 2022 को पूर्ण की गई
ISBN : 9788171383726

संगठन अजेय शक्ति है । संगठन हस्तक्षेप है । संगठन प्रतिवाद है । संगठन परिवर्तन है । क्रांति है । किन्तु यदि वहीं संगठन शक्ति सत्ताकांक्षियों की लोलुपताओं के समीकरणों को कठपुतली बन जाएंतो दोष उस शक्ति की अन्धनिष्ठा का है या सवारी कर रहे उन दुरुपयोगी हाथों का जो संगठन शक्ति को सपनों के बाजार में बरगलाएभरमाए अपने वोटों की रोटी सेंक रहे ये खतरनाक कीट बालियों को नहीं कुतर रहेफसल अंकुआने से पूर्व जमीन में चंपे बीजों को ही खोखला किए दे रहे हैं । पसीने की बूंदों में अपना खून उड़ेल रहे भोलेभाले श्रमिकों कोहितैषी की आड़ में छिपे इन छद्म कीटों से चेतनेचेताने और सर्वप्रथम उन्हीं से संघर्ष करते की जरूरत नहीं क्या हुआ उन मोर्चों का जिनकी अनवरत मुठभेड़ों की लाल तारीखों में अभावग्रस्त दलितशोषित श्रमिकों की उपासी आंतों की चीखती मरोड़ों की पीड़ा खदक रही थी हाशिए पर किए जा सकते हैं वे प्रश्न जिन्होंने कभी परचम लहराया था कि वह समाज की कुरूपतम विसंगति आर्थिक वैषम्य को खदेड़समता के नये प्रतिमान कायम करेंगे प्रतिवाद में तनी आकाश भेदती भट्ठियों से वर्गहीन समाज रचेंगेगढ़ेंगेजहां मनुष्य मनुष्य होगापूंजीपति या निर्धन नहीं । पकाएंगे अपने समय के आवां कोअपने हाड़मांस के अभीष्ट र्इंधन सेताकि आवां नष्ट न होने पाए । विरासत भेड़िए की शक्ल क्यों पहन बैठी ट्रेड यूनियन जो कभी व्यवस्था से लड़ने के लिए बनी थीआजादी के पचास वर्षोंपरान्त आज क्या वर्तमान विकृतभ्रष्ट स्वरूप धारण करके स्वयं एक समान्तर व्यवस्था नहीं बन गयी बीसवीं सदी के अन्तिम प्रहर में एक मजदूर की बेटी के मोहभंगपलायन और वापसी के माध्यम से उपभोक्तावादी वर्तमान समाज को कई स्तरों परअनुसंधानित करतानिर्ममता से उधेड़तातहें खोलताचित्रा मुद्गल का सुविचारित उपन्यास आवां | 

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