भाग्य भले साथ न दे, मेहनत हमेशा साथ देती है सीखना जिसने रोक दिया, समझो वो वहीं रुक गया। यहाँ तक कि जो एक्टर स्थापित हैं, वे भी ख़ुद को उस मकाम पर बनाए रखने के लिए या अपनी
एक्टिंग का स्तर बढ़ाने के लिए लगातार नई-नई चीज़ें सीखते रहते हैं, नए-नए प्रयोग करते रहते हैं। चैलेंजिंग कैरेक्टर चुनते हैं, और उनके लिए जी जान एक कर देते हैं। हर एक्टर के भीतर सीखने का जज़्बा हमेशा बरकरार रहना चाहिए, तभी वो लोगों के दिल में अपनी जगह बनाए रख सकता है। चमक खो जाती है, तो सितारे भी खो जाते हैं। सीखना जो है, वो एक्टर को तराशता है, उसमें नयापन भरता है। लोगों को इन एक्टर्स की केवल शारीरिक मेहनत ही दिखती है, लेकिन बाक़ी लर्निंग पर नज़र नहीं जाती। हाल ही आलिया भट्ट ने 'उड़ता पंजाब' मूवी के लिए दो महीने तक सिर्फ़ बिहारी भाषा का लहजा पकड़ने के लिए जबरस्त मेहनत की। क्योंकि मेहनत कभी छिप नहीं सकती। आलिया जानती है कि सिर्फ़ महेश भट्ट की बेटी होने से ही कुछ नहीं होता, मेहनत नहीं की तो ऑडियन्स बख़्शते नहीं हैं। 'तनु वेड्स मनु रिटर्न्स' में कंगना की मेहनत दिखती है। मेहनत ने ही उस कंगना को नई ऊँचाईयाँ दी हैं, जिसकी एक्टिंग का लोग मज़ाक उड़ाया करते थे। जब भी आप मेहनत करते हैं, आपको ख़ुद को अच्छा लगता है। लोगों की प्रशंसा मिलती है। अवार्ड मिलते हैं। लक काम न करे तो भी मेहनत ज़रूर काम करती है। इसीलिए मेहनत से जो उन्हें हासिल होता है, उसे लक या भाग्य कहना उन्हें अच्छा भी नहीं लगता। भाग्य पर तो ज़ोर नहीं चलता, लेकिन मेहनत तो हमारे ही हाथ में है। फ़िल्मों में एक्टर्स को कोई भी गेटअप या मेकअप तभी काम कर पाता है, जब एक्टर उसके अनुरूप मेहनत करके ख़ुद को साबित करता है। 'फ़ैन' में शाहरुख़ खान ने गौरव के किरदार के लिए जो गेटअप अपनाया, उसके अनुरूप ढलने के लिए ख़ूब मेहनत भी की है, जो झलकती है। आज के दौर के सभी अभिनेता आमिर ख़ान, अक्षय कुमार, रितिक रौशन, प्रियंका चोपड़ा, नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी आदि अपने किरदारों पर ख़ूब मेहनत करते हैं, तभी प्रभावशाली अभिनय कर पाते हैंं। ये तमाम अभिनेता अपनी प्रतिभा का अधिकतम उपयोग करना जानते हैं। कई लोग प्रतिभावान होते हैं, लेकिन मेहनती नहीं होते, इसलिए उनकी प्रतिभा दबी-कुचली या छिपी रह जाती है। वक़्त गुज़रने पर उनके पास 'काश....' के अलावा कुछ नहीं बचता। वक़्त पर दिल की नहीं सुनने का मलाल, ज़िंदगीभर रहता है। मैं ऐसे कई लोगों से भी मिल चुका हूँ, जो सीखने की बात का मज़ाक उड़ाते हैं। एक्टिंग स्किल्स सीखने की बात उन्हें बेमतलब की लगती है। अगर किसी को कोरियोग्राफ़र बनना है तो वो ज़रूर पहले डांस सीखता है। किसी को सिनेमेटोग्राफ़र बनना है तो पहले सीखता है। किसी को डायरेक्टर बनना है तो पहले
डायरेक्शन सीखता है। किसी को एडिटर बनना है तो पहले एडिटिंग सीखता है। किसी को मेकअपमैन बनना है तो पहले सीखता है। यही चीज़ें डाक्टर, इंजीनियर, पायलट, हेयर ड्रेसर आदि तमाम प्रोफ़ेशन्स के लिए लागू होती है। लेकिन एक्टर बनने के लिए कई लोग सीखने को बकवास मानते हैं। उन्हें ये गुमान रहता है कि "एक्टिंग करने में क्या है मुश्किल है, डायलॉग दे दो, अभी करके दिखाते हैं।" कई लोग इस ग़लतफ़हमी के शिकार हैं। यही वजह है कि ऐसे लोग बरसों तक उसी जगह अटके पड़े रहते हैं, जहां थे। जो ज़माने को समझकर चलता है, वो हमेशा आगे बढ़ता है। जो वक़्त की ज़रूरत समझता है, वो हमेशा आगे बढ़ता है। जो ख़ुद से ही अपना कॉम्पीटीशन मान के चलता है, वो हमेशा आगे बढ़ता है। -#रूद्र_श्रीवास्तव