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दिल की भड़ास

4 मई 2017

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आज इतने कम समय में दूसरी बार मन किया कि सामाजिक माध्यम अर्थात सोशल मीडिया के महान लेख कों से उनके लेखों के बारे में आज पूछ ही लूँ । ये जितने भी महान #लेखक_लेखिकाएं जिन्हे सिर्फ इस #फेसबुक पर ही समाज के आर्थिक रूप से निचले तबके की इतनी ज्यादा चिंता सताती है कि वे लोगो के लाइक और कमेंट्स बटोरने के लिए बड़े बड़े पोस्ट लिखते चले जाते है। मगर क्या यथार्थ के धरातल पर वे खुद उन्ही बड़े बड़े विचारों का पालन करते हैं। जिनका पालन करने अनुरोध वो इस जगह पर सभी लोगों से करते हैं। ये वो ही लोग होते हैं जो एक सब्जी वाले से 12/- किलो के भाव के आलू ज़िद करके 10/- किलो में ले आते हैं। अगर वही बात अपना रुतबा दिखाने की हो तो रिलायंस फ्रेश या उसके जैसे किसी बड़े मॉल मे जाकर वो ही आलू 70/- किलो में भी लाने से नहीं चूकेंगे और ना ही वह किसी भी तरह का भाव करवाएँगे क्योंकि वहाँ भाव करवा लेने से उनके सम्मान का प्रश्न जो खड़ा हो जाएगा। ये तो बात हुई सब्जी की। अब कुछ दिनों से सवाल खड़ा है किसानो का । तो फ़ेसबुक के महान #लेखकगण यहाँ भी अपनी महानता साबित करने से पीछे नहीं हटते। अभी मैंने एक लेखिका का पोस्ट पढ़ा। उसमें उन्होने लिखा कि ""क्रिकेट खिलाड़ी करोडो में बिके हैं. काश, किसानों की फसल भी के भी कोई इतने दाम देता.."" तो मैं पुछना चाहता हूँ उन मोहतरमा से कि क्या आप कभी अनाज मंडी गयी हैं? शायद नहीं, क्योंकि आपको तो अपने ही देश में पैदा होने वाले उस अनाज का स्वाद तब आता है जब उन पर बहुराष्ट्रीय कंपनी का लेबल लगा हो । अच्छा, इस देश के 'किसान' से आप कितने करीब से जुड़ी हुई हैं? मेरा सवाल ही गलत है मुझे तो यह पुछना चाहिए कि आपने कितनी बार सब्जी या गेंहू खरीदने के लिए मॉल और ऐसी बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों का साथ छोड़ा है? क्या हुआ सोच में पढ़ गए न ? अरे मेरे #भारत देश के महान(केवल फेसबुक के) लेखकों परिवर्तन की शुरुआत अपने घर से होती है। फेसबुक पर बड़ी बड़ी बाते करने से सिर्फ लाइक और कमेन्ट आते हैं परिवर्तन नहीं। परिवर्तन ही चाहते हो ना तो जो बातें यहा फेसबुक पर लिखते हो न उसमें से सिर्फ 10% पर अमल करना शुरू कर दो वो ही बहुत बड़ा काम हो जाएगा।

#दिल_की_भड़ास #आलोक_निगम

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अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और आज का समाज

12 अप्रैल 2017
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मानवीय गरिमा को सुनिश्चित करने के लिए #अभिव्यक्ति_की_स्वतंत्रता को ज़रूरी माना गया हैं. नागरिकों के नैसर्गिक अधिकारों के रूप में उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रताओं को संरक्षित करना, ताकि मानव के व्यक्तित्व के सम्पूर्ण विकास हो सके और उनके हितों की रक्षा हो सके, इसके लिए भारत सहित विश्व के

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क्या यही है स्वर्णिम भारत ???

13 अप्रैल 2017
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ब्राह्मण विरोधी राजनीति जिसकी जड़ 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में ज्योतिबा फुले के सत्यशोधक समाज के रूप में रखा गया था, और जिसका राजनीतिक स्वरूप 20वीं शताब्दी के प्रारंभ में जस्टिस पार्टी के द्वारा रखा गया था, वह आंदोलन अपने उतरार्द्ध

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अभिनय

14 अप्रैल 2017
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भाग्य भले साथ न दे, मेहनत हमेशा साथ देती है सीखना जिसने रोक दिया, समझो वो वहीं रुक गया। यहाँ तक कि जो एक्टर स्थापित हैं, वे भी ख़ुद को उस मकाम पर बनाए रखने के लिए या अपनी एक्टिंग का स्तर बढ़ाने के लिए लगातार नई-नई चीज़ें सीखते रहते हैं, नए-नए प्रयोग करते रहते हैं। चैलेंजिंग कैरेक्टर चुनत

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तन्हाई

29 अप्रैल 2017
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तू भी चुप है मैं भी चुप हूँ ये कैसी तन्हाई हैतेरे साथ तेरी याद आई; क्या तू सचमुच आई हैशायद वो दिन पहला दिन था पलकें बोझिल होने कामुझको देखते ही जब उनकी अंगड़ाई शरमाई हैउस दिन पहली बार हुआ था मुझ को इस बात का एहसासजब उसके मज़बून की ख़ुश्बू घर पहुँचाने आई हैहमको और तो कुछ

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दिल की भड़ास

4 मई 2017
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आज इतने कम समय में दूसरी बार मन किया कि सामाजिक माध्यम अर्थात सोशल मीडिया के महान लेखकों से उनके लेखों के बारे में आज पूछ ही लूँ । ये जितने भी महान #लेखक_लेखिकाएं जिन्हे सिर्फ इस #फेसबुक पर ही समाज के आर्थिक रूप से निचले तबके की इतनी ज्यादा चिंता सताती है कि वे लोगो के ल

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भारतीय सिनेमा पर वैश्वीकरण का प्रभाव

16 मई 2017
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वर्तमान में भूमंडलीकरण का प्रभाव यत्र-तत्र सर्वत्र देखने को मिल रहा है। देश, समाज, परिवार कोई भी क्षेत्र हो, कोई भी पक्ष हो हर जगह हमें भूमंडलीकरण का प्रभाव देखने को मिल रहा है। समाज का कोई भी क्षेत्र इससे अप्रभावित नहीं है। एक विश्व अथवा विश्व परिवार के सपने को संजोये नि

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आधुनिक भारतीय नारी

23 अक्टूबर 2019
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आधी ढंकी ने आधी उघाड़ी।इसी को कहते आधुनिक नारी।।संस्कारों को अपने भूलती जाती।दारू पी के झूमती गाती।।आत्मसम्मान को ताक़ पर रखकर,आगे बढ़ती है नीचा दिखाकर।महफूज़ समझते बच्चे खुद को;पाकर माँ का आँचल।मगर अब क्या होगा बच्चों का;जब माँ को ही बंधन लगता अपना आँचल।।खुद को समझती सब पर भारी।फिर स्वार्थवश बनती खुद ह

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निर्भया

30 मार्च 2020
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देखो देखो नग्न अवस्था हवस से इसका श्रृंगार करो,आओ, आओ खुली छूट है जो चाहो वो करो, नोच लो, काट लो अपनी प्यास बुझा लो तुम,कितना नशा दिखता है देखो इनकी आंखों में ,जैसे खुद मेनका का अवतार है धरती पर ,इन्हें अपने बाप की जागीर समझ लो और अपनी हवस हवस की प्यास मिटा लो तुम,चिथड़े चिथड़े कर देना हर जिस्म हर एक

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महिला दिवस

30 मार्च 2020
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अब क्या करें देश का माहौल ही इतना अजीब हैनिर्भया के दोषियों को फाँसी दें नहीं पर रहे है फिर भी आज महिला दिवस मनाएंगेकल होलिका दहन करेंगेऔरहोली के नाम पर लड़कीयों से छेड़छाड़ करेंगे यही तो सालों से होता आ रहा है और आगे भी यही होता रहेगा। इस देश में सार्वजनिक स्थान पर थूकना, मूतना या अन्य प्रकार की क्षति

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कोरोना

1 अप्रैल 2020
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कोरोना तु करुणा है।ईश्वर की अद्भुत रचना है।। दुनिया के लिए हत्यारा है।काल को बहुत ही प्यारा हैसंहार तेरी प्रकृति है।चीन की तु दुष्कृति है।। किया जब जीवों पर अत्याचार।मच गई है दुनिया में हाहाकार।। खुश हुआ जीवों को ग्रास बना।। वही तेरा अब त्रास बनानदियों पेड़ों का संहार किया।प्रलय के मुहाने पर किया।। म

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कोरोना

1 अप्रैल 2020
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कोरोना तु करुणा है। ईश्वर की अद्भुत रचना है।। दुनिया के लिए हत्यारा है। काल को बहुत ही प्यारा है।। संहार तेरी प्रकृति है। चीन की तु दुष्कृति है।। किया जब जीवों पर अत्याचार। मच गई है दुनिया में हाहाकार।। खुश हुआ जीवों को ग्रास बना। वही तेरा अब त्रास बना।। नदियों पेड़ों का संहार किया। प्रलय के मुहाने प

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