आज इतने कम समय में दूसरी बार मन किया कि सामाजिक माध्यम अर्थात सोशल मीडिया के महान लेख कों से उनके लेखों के बारे में आज पूछ ही लूँ । ये जितने भी महान #लेखक_लेखिकाएं जिन्हे सिर्फ इस #फेसबुक पर ही समाज के आर्थिक रूप से निचले तबके की इतनी ज्यादा चिंता सताती है कि वे लोगो के लाइक और कमेंट्स बटोरने के लिए बड़े बड़े पोस्ट लिखते चले जाते है। मगर क्या यथार्थ के धरातल पर वे खुद उन्ही बड़े बड़े विचारों का पालन करते हैं। जिनका पालन करने अनुरोध वो इस जगह पर सभी लोगों से करते हैं। ये वो ही लोग होते हैं जो एक सब्जी वाले से 12/- किलो के भाव के आलू ज़िद करके 10/- किलो में ले आते हैं। अगर वही बात अपना रुतबा दिखाने की हो तो रिलायंस फ्रेश या उसके जैसे किसी बड़े मॉल मे जाकर वो ही आलू 70/- किलो में भी लाने से नहीं चूकेंगे और ना ही वह किसी भी तरह का भाव करवाएँगे क्योंकि वहाँ भाव करवा लेने से उनके सम्मान का प्रश्न जो खड़ा हो जाएगा। ये तो बात हुई सब्जी की। अब कुछ दिनों से सवाल खड़ा है किसानो का । तो फ़ेसबुक के महान #लेखकगण यहाँ भी अपनी महानता साबित करने से पीछे नहीं हटते। अभी मैंने एक लेखिका का पोस्ट पढ़ा। उसमें उन्होने लिखा कि ""क्रिकेट खिलाड़ी करोडो में बिके हैं. काश, किसानों की फसल भी के भी कोई इतने दाम देता.."" तो मैं पुछना चाहता हूँ उन मोहतरमा से कि क्या आप कभी अनाज मंडी गयी हैं? शायद नहीं, क्योंकि आपको तो अपने ही देश में पैदा होने वाले उस अनाज का स्वाद तब आता है जब उन पर बहुराष्ट्रीय कंपनी का लेबल लगा हो । अच्छा, इस देश के 'किसान' से आप कितने करीब से जुड़ी हुई हैं? मेरा सवाल ही गलत है मुझे तो यह पुछना चाहिए कि आपने कितनी बार सब्जी या गेंहू खरीदने के लिए मॉल और ऐसी बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों का साथ छोड़ा है? क्या हुआ सोच में पढ़ गए न ? अरे मेरे #भारत देश के महान(केवल फेसबुक के) लेखकों परिवर्तन की शुरुआत अपने घर से होती है। फेसबुक पर बड़ी बड़ी बाते करने से सिर्फ लाइक और कमेन्ट आते हैं परिवर्तन नहीं। परिवर्तन ही चाहते हो ना तो जो बातें यहा फेसबुक पर लिखते हो न उसमें से सिर्फ 10% पर अमल करना शुरू कर दो वो ही बहुत बड़ा काम हो जाएगा।
#दिल_की_भड़ास #आलोक_निगम