तू भी चुप है मैं भी चुप हूँ ये कैसी तन्हाई है
तेरे साथ तेरी याद आई; क्या तू सचमुच आई है
शायद वो दिन पहला दिन था
पलकें बोझिल होने का मुझको देखते ही जब उनकी अंगड़ाई शरमाई है
उस दिन पहली बार हुआ था मुझ को इस बात का एहसास
जब उसके मज़बून की ख़ुश्बू घर पहुँचाने आई है
हमको और तो कुछ नहीं सूझा अलबत्ता
उसके दिल में यादें हमारी पैदा कर के उसकी नींद उड़ाई है
हम दोनों मिल के भी दिलों की तन्हाई में भटकेंगे
पागल कुछ तो सोच ये तूने कैसी शक़्ल बनाई है
हुस्न के जाने कितने चेहरे हुस्न के जाने कितने नाम
इश्क़ का पैशा हुस्न परस्ती इश्क़ बड़ा हरजाई है
आज बहुत दिन बाद मैं अपने कमरे तक आ निकला था
ज्यों ही दरवाज़ा खोला है उसकी खुश्बू आई है
एक तो इतना धुआँ है फिर मैं साँसें रोके बैठा हूँ
वीरानी ने झाड़ू दे के घर में धूल उड़ाई है
#आलोक_निगम