● हर विधा में डाॅ नीरज दइया का लेखन पठनीय है। इधर उन्होंने एक महत्वपूर्ण कार्य यह किया है कि दो समकालीन रचनाकारों के सृजन सरकारों का गहन अध्ययन एवं विश्लेषण किया है और उन दोनों रचनाकार पर अपनी आलोचनात्मक परख को पुस्तकों के रूप में भी प्रस्तुत किया है। उनमें से एक पुस्तक है~ "मधु आचार्य 'आशावादी' के सृजन सरोकार"
● किसी भी रचनाकार के संपूर्ण सृजन की आलोचना करना, उस पर लिखना तथा एक वजनदार पुस्तक के रूप में पाठकों के सामने लाना एक दुष्कर कार्य है, लेकिन डाॅ नीरज दइया इस चुनौती का भरपूर निर्वाह करते हैं।
● इस पुस्तक के जरिए से यह समझ मिली कि ~ मधु आचार्य की विशेषता यह है कि वे अपने किसी भी संग्रह में भूमिका नहीं लिखते। उनके विचार उनकी रचनाओं में ही समाहित रहते हैं- उन्हे खोजना पड़ता है। अगर डाॅ नीरज दइया के शब्दों में कहें तो ~ "मधु आचार्य के गद्य लेखन में जहाँ नाटकीय संवादों का बोलबाला है, वहीं पद्घ लेखन में अंतरंगता में समाहित भावों का उद्वेग और आत्मीयता प्रभावित करने वाली है।"
● मधु आचार्य की कविताएँ नए शिल्प और निराली भाषा में सहजता एवं सरलता के साथ यथार्थ की विश्वसनीय प्रस्तुति हैं। चिंतन के स्तर पर उनकी छोटी कविताएँ अधिक समर्थ एवं सशक्त हैं। ये कविताएँ बिना किसी उलझाव के सीधे सीधे ह्रदय से संवाद करने में सक्षम हैं। इन कविताओं में किसी विशेष काव्य कला का आरोपण न होना ही उनका कला वैशिष्ट्य है।
● मधु आचार्य हर बार परंपरागत रूढ़ ढाँचे से खुद को निकालने का प्रयास करते हुए नई दिशाओं और रास्तों की तलाश करते हैं। जिस तरह गद्य में उनका विशिष्ट अवदान कोलाज माना जा सकता है, वैसे ही कविताओं में भी वे कोलाज पर कोलाज एक व्यापक वितान का निर्माण करते हैं।
● मधु आचार्य के लेखन के प्रति पाठकों में उत्सुकता का भाव है। उन्हें प्रतीक्षा रहती है कि इस बार क्या नवीन आने वाला है। लेखन में जहाँ उनके विपुल लेखन को लेकर चर्चाएं हैं, वहीं उनकी आगामी योजनाओं को लेकर भी पर्याप्त कौतूहल है।
● समानधर्मियों के लिए आवश्यकता इस बात की है कि वे उनके लेखन के भीतर प्रवेश कर कुछ सैद्धांतिक और प्रायोगिक बातों तक पहुँचें। जो अब तक ऐसा प्रवेश नहीं कर सके हैं, वे बहुत पीछे रह गए हैं।
●● डाॅ नीरज दइया की स्पष्ट स्वीकारोक्ति है कि ~ मधु आचार्य 'आशावादी' के संपूर्ण लेखन का किसी भी प्रकार समग्र मूल्यांकन का यहाँ कोई दावा नहीं है। यहाँ स्वयं को मधु आचार्य की पुस्तकों का पहला पाठक मानते हुए उनके साहित्य पर कुछ अपनी प्रतिक्रियाएं व्यक्त करने का प्रयास किया है।
● पाठक और आलोचक का तात्विक अंतर यही है कि पाठक किसी रचना के बीच में कहीं भी अपना मत, पक्ष या विपक्ष में रखते हुए रचना को अधूरा छोड़ सकता है, जबकि आलोचना में ये विकल्प नहीं है ~ समग्र रचना ही किसी मूल्यांकन का आधार बनती है।
● डाॅ नीरज दइया ने इस आलोचना पुस्तक में एक अभिनव प्रयोग किया है, जो आमतौर पर आलोचना या समीक्षा की पुस्तकों में नहीं होता है। वह प्रयोग है- आलोच्य रचनाकार मधु आचार्य 'आशावादी' का साक्षात्कार। इस साक्षात्कार में डाॅ नीरज दइया ने अपनी कुशाग्र आलोचनात्मक बुद्धि के सहारे मधु आचार्य के मुँह से तमाम ऐसी बातें उगलवा लीं हैं, जो मधु आचार्य के रचना संसार में पढ़ने को नहीं मिलेंगी।
● मधु आचार्य का मानना है कि ~ " पुरस्कार किसी रचना की श्रेष्ठता का पैमाना नहीं, फिर भी एक ऐसा घटक है, जिससे रचना और रचनाकार को पहचान मिलती है। सर्व प्रथम मेरी पहचान एक नाट्य लेखक के रूप में हुई और आज उपन्यासकार के रूप में "गवाड़" से राष्ट्रीय पहचान मिली है। ••••• आलोचना के खाते यदि पुस्तक समीक्षा को शामिल करें, तो मैंने समीक्षाएँ पहले खूब लिखी हैं।
⚫ यह संयोग है कि मधु आचार्य 'आशावादी' का जन्म 27 मार्च 1960 को विश्व रंगमंच दिवस के दिन हुआ। यह भी संयोग है कि विद्यासागर आचार्य के आँगन में हुआ, जिन्होंने नाटक के लिए अपने दोनों बेटों को समर्पित कर दिया। संभवतः इसी कारण और अपनी लगन के बल पर मधु आचार्य ने नाटक, रंगमंच, पत्रकारिता और साहित्य में ऐसा मुकाम हासिल किया, जिस पर देश और दुनिया की नजर है।
● शिक्षा और साहित्य के वातावरण में पले बढ़े छात्र मधु ने जीवन में अनेक मुकाम पार करते हुए राजनीति विज्ञान से एम ए तथा एल एल बी की शिक्षा ग्रहण की अध्ययन के दौरान गुरु मार्गदर्शक के रूप में भवानीशंकर शर्मा का सानिध्य मिला। विभिन्न मंचों पर अनेक नाटकों में कलाकार और निर्देशक की भूमिकाओं का सफल निर्वाह करने वाले मधु आचार्य ने कभी किसी काम से गुरेज नहीं किया। •••• इसी यात्रा में आपने 75 नाटकों का निर्देशन और 200 से अधिक नाटकों में अभिनय कर एक कीर्तिमान स्थापित किया। साहित्य सृजक के रूप में वर्ष 1990 से जुड़ाव हुआ। तब से अब तक विविध विधाओं में निरंतर लिख पढ़ रहे हैं। "स्वतंत्रता आन्दोलन में बीकानेर का योगदान" विषय पर शोध कार्य भी किया है।
● साहित्य लेखन की यात्रा का आगाज राजस्थानी नाटक "अंतस उजास" (1995) से हुआ। अब तक हिन्दी में विविध विधाओं में 26 पुस्तकें और राजस्थानी भाषा में 10 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। संयोग है कि राजस्थानी उपन्यास "गवाड़" पर उन्हें जहाँ राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी का "मुरलीधर व्यास राजस्थानी कथा पुरस्कार" अर्पित किया गया और इसी कृति पर वर्ष 2015 का साहित्य अकादेमी पुरस्कार भी अर्पित किया गया। अन्य पुरस्कार और सम्मान हैं ~ राजस्थान संगीत नाटक अकादमी जोधपुर से राज्य स्तरीय नाट्य निर्दशक अवार्ड, शंभू शेखर सक्सेना विशिष्ट पत्रकारिता पुरस्कार, सादूल राजस्थानी रिसर्च इन्स्टीट्यूट बीकानेर से तैस्मितोरी अवार्ड एवं नगर विकास न्यास द्वारा भी पुरस्कृत-सम्मानित राजस्थान संगीत नाटक अकादमी के आप उपाध्यक्ष रहे और साहित्य अकादेमी नई दिल्ली के राजस्थानी भाषा परामर्श मंडल के सदस्य के रूप में उल्लेखनीय सहभागिता है। आपकी अनेक रचनाओं के विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनुवाद प्रकाशित हुए हैं। ••••• नित्य बेहद सरल, सीधे, मिलनसार आत्मीय मधु आचार्य अपने पत्रकारिता, साहित्यिक व्यक्तित्व के बिना किसी आवरण पाटों पर बैठे हथाई करते मिलते हैं।
● मधु आचार्य के बहुचर्चित उपन्यास "गवाड़" के लोकार्पण को अविस्मरणीय बताते हुए डाॅ नीरज दइया बताते हैं कि ~ साहित्य अकादेमी पुरस्कार "गवाड़" को मिलने पर बीकानेर में मधु आचार्य आशावादी का भव्य नागरिक अभिनंदन एक यादगार और बेजोड़ कार्यक्रम कहा जाएगा। वर्ष 2016 में 16 जुलाई का दिन विशेष महत्व का है। इस दिन ~ "जीवन एक सारंगी", "रेत से उस दिन मैने पूछा", "श से शब्द", "गई बुलेट प्रूफ में", चींटी से पर्वत बनी पार्वती", "खुद लिखें अपनी कहानी", तथा "सुनना, गुनना और चुनना" ~ एक साथ 7 हिंदी पुस्तकों का लोकार्पण समारोह हुआ। यह सिद्ध होता है कि मधु आचार्य आशावादी जिस जिद और जुनून से साहित्य लेखन और लोकार्पण से जुड़े, उनकी भाँति अब तक अन्य ना ही ऐसा कर सका और ना ही इतनी व्यवस्थाएं कर पाठकों, दर्शकों- श्रोताओं को जुटा सका है।
● मधु आचार्य आशावादी ठेठ जमीन से जुड़े लेखक हैं, उनके पास जो लोकभाषा है, उसमें विशेष बीकानेरी रंगत रेखांकित किए जाने योग्य है। नाटकों के मंचन-लेखन और पत्रकारिता की लंबी यात्रा के बाद सामने आए उपन्यास "गवाड़" को कई कारणों से बेहद सराहना मिलेगी। सर्वाधिक उल्लेखनीय तथ्य मेरी दृष्टि में इस उपन्यास की सजीव भाषा है। भाषा की बुनावट में शब्द शब्द से जैसे जैसे पंक्तियाँ दर पंक्तियाँ निर्मित हुईं हैं, वैसे-वैसे हमारे अंतस में गवाड़ अपने पंखो को खोल रंग प्रगट करने लगती है। आधुनिक भाषा और शिल्प के कारण उपन्यास यात्रा में गवाड़ एक यादगार उपन्यास समझा जाएगा। •••• इस सदी के श्रेष्ठ भारतीय उपन्यासों की श्रेणी में इसे रखा जा सकता है। यही वास्तविकता है कि "गवाड़" के समानांतर रखने योग्य अन्य कोई उपन्यास कम से कम राजस्थानी में तो नहीं है।
● वरिष्ठ कवि, नाटककार, आलोचक अर्जुन देव चारण ने तो इसे पहला उत्तर आधुनिक उपन्यास घोषित भी किया। पुस्तक की भूमिका में वे लिखते हैं कि ~ मधु आचार्य के रचना-कर्म का आकलन इसलिए भी जरूरी है कि वे एक ही समय में दो भिन्न भाषाओं में साहित्य की विभिन्न विधाओं में अपनी सक्रिय उपस्थिति दर्ज कराते हैं। कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, निबंध, व्यंग्य एवं बाल साहित्य के क्षेत्र में निरंतर लिखना और स्तरीय लिखना दो अलग-अलग बातें हैं। श्री मधु आचार्य के लेखन की विशेषता यही है कि वे दो भिन्न भाषाओं में इतनी साहित्यिक विधाओं में एक साथ सक्रिय रहते हुए भी अपने रचना-कर्म के साथ समझौता नहीं करते। ••• अपने समय को प्रश्नांकित करना, अपने समय से मुठभेड़ करना एवं उस मुठभेड़ को एक शाश्वत समय में प्रतिष्ठित करना किसी भी रचनाकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती होती है।
● श्री मधु आचार्य के सर्जनात्मक सरोकारों पर केन्द्रित यह पुस्तक तत्कालीन समाज के लिए एवं स्वयं रचनाकार के लिए एक आइने का काम करेगी, क्योंकि इस पुस्तक के लेखक डाॅ नीरज दइया अपनी इस पुस्तक में मधु आचार्य की रचनाओं में छुपी 'रचनात्मक दृष्टि' को समाज के सामने लाने का प्रयास करते हैं, जिसके कारण वे रचनाएँ एवं उन रचनाओं के माध्यम से स्वयं रचनाकार महत्वपूर्ण माना जाता है।
● 22 शीर्षकों में विभक्त इस आलोचना पुस्तक के "मधु आचार्य की प्रिय और प्रखर विधा •••" शीर्षक में डाॅ नीरज दइया असमंजस में हैं। वे बताते हैं कि~ यदि उन्हें (मधु आचार्य को) बेहतर गद्यकार कहा जाएगा, तो उनके कवि कर्म की उपेक्षा होगी। ••• मधु आचार्य के लेखन के विषय में सर्वाधिक प्रभावशाली बात यह भी है कि जब वे कवि के रूप में कविताएँ लिखते हैं, अपने कहानीकार और उपन्यासकार होने से मुक्त होकर लिखते हैं। कविताओं को देखते हुए कहीं कहीं तो उनकी कथात्मकता से उनके गद्यकार होने का आभास होता है, किंतु समग्र कविताएं अपना बड़ा काव्य वितान निर्मित करतीं हैं। यहाँ यह भी किसी विरोधाभास की भांति लगता है कि वह अपने उपन्यासों में धरती की बात करते हैं, तो कविताओं में उनका प्रिय विषय आकाश की बातें करना भी रहा है। विविधता परस्पर विरोधी नहीं, पूरक होते हुए एक व्योम बनाती है। •••• मधु आचार्य सभी रुपों में श्रेष्ठ-सर्वश्रेष्ठ हैं, फिर भी मैं उनके उपन्यासकार के रूप में दिए अवदान से उबरर नहीं पाता।
● "सामाजिक सरोकार और समय की संवेदना" शीर्षक में डाॅ नीरज दइया मानते हैं कि मधु आचार्य की काव्य भाषा किसी रूढ़ प्रचलित मुहावरे से अलग कवि प्रतीती की भाषा कही जानी चाहिए। भाषा में कोई बनावटीपन, दुरूहता या शब्द क्रम की किसी दिप्ति से दूर, बेहद शांत-संयत स्वर में कवि अपने उद्गगार प्रस्तुत करने का पक्षधर रहा है।
● "रंगकर्म के दिन और पत्रकारिता की रातें" शीर्षक के अनुसार मधु आचार्य 'आशावादी' जैसी प्रतिभाएं बहुत कम मिलेंगी, जो कि जिस किसी क्षेत्र में होते हैं, वही अपनी सामर्थ्य से विशिष्ट पहचान बना लेते हैं। उन्होंने रंग जगत में रंगकर्मी, निर्देशक, अभिनेता, नाटककार नाट्य विशेषज्ञ के रूप में अपनी पहचान से सम्मोहित किया है। उनके द्वारा मंचित नाटकों की धूम थी। उनकी पूरी रंग मंडली थी। मधु आचार्य के रंग अवदान पर अलग से कार्य की आवश्यकता है। मधु आचार्य ने साहित्यिक और सांस्कृतिक पत्रकारिता के क्षेत्र में नूतन आयाम दिए हैं।
● "कैसे बनता है कोई कारवाँ " शीर्षक से यह तथ्य उभरता है कि मधु आचार्य 'आशावादी' के लेखन का एक अलहदा मुकाम है। 'रास्ते हैं, चलें तो सही'। इस पुस्तक में मधु आचार्य ने जीवन प्रबंध की राहें सुझाते हुए कुछ आत्मीय संदेश देने का प्रयास किया है। हिम्मत और हौसले तथा जुनून से भरी इस किताब में जीवन जीने के लिए हमारी जानी समझी और सुनी हुई मार्मिक बातें तो हैं ही, साथ ही उनके लिए अनेक उदाहरण और प्रेरक प्रसंग के रूप में खुद के अनुभव भी समाहित हैं।
● "मुखौटों से मुठभेड़ करते धरातल के सच" में डाॅ नीरज दइया रेखांकित करते हैं कि~ •••• कहानियां सीधी सरल नहीं हैं, प्रत्येक कहानी में जीवन मर्म है। कहानी में गुत्थियां सुलझती सुलझती फिर उलझ जाती हैं। यही जीवन यथार्थ है।•••• समय, समाज और मनुष्यता की जटिलताएं पूर्णरूपेण परिभाषित नहीं की जा सकी हैं। इनमें भीतरी द्वंद और ऊहापोह है। सच कहा जाए, तो मनुष्य अंधकार में है। वह अपने भीतर बाहर अंधकार भोगने को विवश है।
● "जिसको भी देखना हो, कई बार देखना" शीर्षक के अनुसार ~ राजस्थानी कहानियों में मधु आचार्य आशावादी का अवदान कहा जाएगा कि वे जीवन संघर्षों एवं त्रासदियों को हमारे सामने भाषा में घटित होते हुए प्रस्तुत करते हैं। कहानियों में सांप्रदायिक सद्भाव, एकता अखंडता और भाईचारा भी उल्लेखनीय है।•••• मधु आचार्य की कई कविताएं मनुष्यता की दीवारों से उतरते रंग रोगन और तिस पर उनकी चुप्पी को निंदनीय बताती हुई हमें सावधान करती हैं।
● "नवीन शैल्पिक-अनुसंधान @ 24 घंटे" शीर्षक से खुलासा होता है कि ~ बंधे बंधाए किसी रूप की अपेक्षा मधु आचार्य की रचनाओं में नहीं की जानी चाहिए, वे हर बार नए प्रयोग को अंजाम देते हुए आलोचना के आयुधों को चुनौती देते हैं। आलोचना में कोई चयन बिना दृष्टिकोण के नहीं होता।••• ऐसा लगता है कि विधा के अनुशासन से जरूरी है मधु आचार्य के लिए रचना का मर्म है।
● "वर्तमान समय और सृजक का द्वंद्व" शीर्षक का निष्कर्ष ये है कि ~ मधु आचार्य आशावादी के बेहतरीन उपन्यासों की चर्चा में "इन्सानों की मंडी" का उल्लेख अवश्य किया जाना चाहिए। •••• हमारी संवेदना को जागृत करने वाले इस उपन्यास के पीछे गहन विचार मंथन और चिंतन शामिल है। यदि विविध कला के रूप हमें संस्कारित करते हैं, हमारे भीतर परिवर्तन लाते हैं, तो साहित्य के माध्यम से जीवन के मर्म को समझने का यह अनुष्ठानिक उपक्रम है। मधु आचार्य आशावादी की ही काव्य पंक्तियां हैं~ "आज कहता हूँ खुलकर/ हवाओं का रुख बदलना आता है मुझे"। यह उपन्यास आत्मसात करने के उपरांत हमें लगता है कि हमारे भीतर की हवाओं का रुख सचमुच बदल गया है, बदल दिया गया है।
● इसी क्रम में मधु आचार्य आशावादी के साक्षात्कार को पढ़ना भी बेहद जरूरी लगता है। वे खुद बताते हैं कि ~ मैं लिखते समय गिनती नहीं करता। ••• समस्या मूल्यांकन की है। मूल्यांकन समय पर आना चाहिए। आलोचकों का अकाल है। आलोचना विधा में बहुत काम होगा और उसे मिलाकर देखा जाएगा, तब एक पूरा परिदृश्य सामने आएगा। भारतीय भाषाओं में परस्पर अनुवाद के माध्यम से ही एक दूसरे के साहित्य को जाना समझा जा सकता है।
🎂 प्रस्तुत आलोचना पुस्तक ~ "मधु आचार्य 'आशावादी' के सृजन सरोकार" के लेखक डाॅ नीरज दइया का आज जन्मदिन है। उनको जन्मदिन की अनंत मंगल-कामनाएं समर्पित करते हुए उनके रचना कर्म एवं उपलब्धियों की चर्चा करना भी समीचीन होगा।
● 22 सितम्बर 1968 को जन्मे डाॅ नीरज दइया वर्तमान में केन्द्रीय विद्यालय संगठन में हिन्दी प्राध्यापक हैं। उनके प्रमुख प्रकाशन हैं ~ "उचटी हुई नींद"~ कविता संग्रह/ "बुलाकी शर्मा के सृजन सरोकार"~ आलोचना/ "मधु आचार्य 'आशावादी' के सृजन सरोकार"~ आलोचना/ पंच काका के जेबी बच्चे (व्यंग्य)/ "भोर सूं आथण तांईं" (लघुकथा संग्रह)/ "साख" (कविता संग्रह)/ देसूंटो (लंबी कविता)/ "आलोचना रै आंगणै" (आलोचना)/ "जादू रो पेन"(बाल साहित्य) / "पाछो कुण आसी" (कविता संग्रह) / "बिना हासलपाई" (आलोचना)।
● इसके अतिरिक्त आधा दर्जन से अधिक अनुवाद की पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी हैं।
● सम्मान और पुरस्कार ~ साहित्य अकादेमी का राजस्थानी बाल साहित्य पुरस्कार, राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर का अनुवाद पुरस्कार, सादूल राजस्थानी रिसर्च इन्स्टीट्यूट, बीकानेर का तैस्मितोरी अवार्ड, रोटरी क्लब बीकानेर द्वारा राजस्थानी गद्य साहित्य की उत्कृष्ट कृति पुरस्कार, नगर विकास न्यास और नगर निगम बीकानेर द्वारा साहित्य सम्मान, मनोहर मेवाड़ राजस्थानी साहित्य सम्मान, कांकरोली, राजसमंद आदि।
● मधु आचार्य 'आशावादी' एवं डाॅ नीरज दइया को असंख्य शुभकामनाएं और बधाई !
🌻 गोपाल गोयल ~ संपादक ~ "मुक्ति चक्र"