अगर भूख बाजारों में बिकती,
तो रोटियां केवल अमीरों के घर सिकती।
अगर प्यास भी बिकती बंद बोतलों में,
तो यह भी होता अमीरों के एक चोंचलों में।
अगर नींदो का भी होता व्यापार,
तो बिस्तर नही बिछते गरीबों के द्वार।
अगर हवा भी बहती केवल उँचे-ऊँचे मकानो मे,
तो झोपड़ीयों पे मँढराते नहीं खतरे तुफानो के।
अगर सूर्य के प्रकाश का भी देना होता हमे कर,
तो अंधेरा ही छाया होता गरीबो के घर ।
अगर बीमारीयाँ भी करती कुछ भेदभाव,
तो भरते कहाँ कीसी गरीब के घाँव ।
अगर काल को भी टाल सकता धन,
तो शमशानो पर जलते नहीं धनवानों के तन |
अगर पैसों का न कुछ खेला होता,
तो दुनीया न युँ अमीर-गरीब का मेला होता ।