जयप्रकाश मिश्रा जी जीवन के सतर बसंत देख चुके थे,,, चारों बेटों की शिक्षा और विवाह की जिम्मेदारियों से मुक्त हो चुके थे! बेटो को अच्छी शिक्षा प्राप्त करने विदेशों में पढ़ने भेजा! जिससे वहीं पर काम करने का मौका मिला! तो वह वहीं सेटल हो गए !
एक बेटा बेंगलुरु में और एक बेटा मुंबई में रहता था !छोटे से शहर आगरा में जयप्रकाश जी अपनी पत्नी के साथ अकेले रहते थे!
पति पत्नी दोनों ही एक दूसरे का सहारा थे, दोनों ही एक दूसरे को स्नेह और सुख - दुख के साथी थे!
बच्चों के पास मिलने तो जरुर जाते, लेकिन उनकी भागदौड़ भरी जिंदगी का हिस्सा नहीं बन पाते! ना उनके पास इतना पर्याप्त समय होता कि वह माता-पिता का कुछ खास ध्यान रखें! और ना ही माता-पिता अपने आपको वहां सहज महसूस करते थे!
इसलिए कुछ दिनों में वापस आ जाते थे,कहते हमारा दिल नहीं लगता है, हमें तो आगरा में ही अपने घर में अच्छा लगता है !
जयप्रकाश जी ने अपने कई बार बच्चों से कहा! कोई एक बेटा हमारे पास आकर रह ले! लेकिन चारों बेटों ने ही मना कर दिया !दो बड़े बेटे विदेश से नहीं आना चाहते थे!
दो छोटे बेटे जो भारत में तो रहते थे, लेकिन इतने बड़े शहरों में कि जहां से आना जाना उनके लिए हर महीने सम्भव नहीं था,,,,,
लेकिन! अपनी छोटी बहू सागरिका से उनको बहुत लगाव था! सागरिका की मां नहीं थी ,,पिता ने उसको पाल पोस कर बड़ा किया, और विवाह आदि कार्य संपन्न की थे, शायद वे इसलिए ही दोनों को माता-पिता स्वरूप ही प्यार करती थी हमेशा उनको ध्यान रखती और जब भी वह उनके पास आते तो सागरिका जी भर कर सेवा करती!
सागरिका को ऑफिस से जब भी छुट्टी मिलती तो अपनी छुट्टियां अधिकतर आगरा में ही बिताती थी, सागरिका का निश्चल प्रेम जयप्रकाश जी को और उनकी पत्नी का मन मोह लेता था !
कई बार तो वह यही कहते बेटे से ज्यादा तो हमें हमारी बहू प्यार करती है! बहू हमारी भावनाओं को ज्यादा अच्छे से समझती है!
जयप्रकाश जी की पत्नी के देहांत के बाद भी सागरिका ने आना-जाना जारी रखा! वह फोन पर भी बात करती, कभी वीडियो कॉल करती, लेकिन बाबू जी का पूरा ध्यान रखती थी!
अपने पति अमित से भी कई बार कहती पापा से बात कर लो उनको ध्यान रखो ! पापा इस वक्त मां के जाने के बाद बहुत अकेलापन महसूस कर रहे हैं!अगर उनसे बात करते रहेंगे तो उन्हें अच्छा लगेगा!
अमित गुस्से में इतना ही कहता! कितनी बार कहा है !आगरा का घर बेचकर यहां यह हमारे पास आ जाए, और आराम से रहे !हमें घर मिल जाएगा और उनकी सेवा भी होती रहेगी!
सागरिका यह सुनकर चुप रह जाती थी! और वह समझ गई ,कि यह चारों भाई पिता के अकेलेपन को समझ ही नहीं पा रहे हैं !इस उम्र में वह अपना घर छोड़कर नहीं आ सकते !उस घर में उनकी अनगिनत यादें हैं !अनगिनत पल जो अपनी पत्नी के साथ बिताए हुए हैं!
इस बार छुट्टियों में सागरिका पूरे एक महीने के लिए गई थी! ससुर जी के साथ पिता जैसा व्यवहार करना उसका स्वभाव था! इस महीने में उसने नोटिस किया! कि पापा साथ वाली सुधा आंटी से काफी लगाव महसूस करते हैं!
सुधा आंटी अकेली रहती है! उनकी इकलौती बेटी की एक कार दुर्घटना में मृत्यु हो गई है पति की तो बहुत पहले ही मृत्यु हो गई थी! अकेले ही संघर्ष करते हुए उसने अपने बेटी हर्षिता को पाला था! बेटी की मृत्यु के बाद उसके दामाद ने दूसरा विवाह कर लिया !और कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा! सुधा जी तब से अकेलेपन से जूझ रही थी!
सागरिका पापा के साथ रोज मॉर्निंग वॉक पर जाती थी! तो सुधा आंटी पार्क में मिल जाती !तीनों की बैठ कर बातें करते,,,, कभी योगा करते,, दोनों ही बुजुर्ग अपने जिंदगी के अनुभव सागरिका का को बताते!
एक दिन सागरिका ने सुधा आंटी को खाने पर बुलाया , और अपने मन की बात दोनों को बता दी! सागरिका की बात सुनकर दोनों ही एक साथ बोले !बहू तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है, तुमने ऐसा सोचा भी कैसे!
सागरिका ने बोली! आप मेरी बात ध्यान से सुनो पापा भी अकेले रहते हैं ,और आप भी अकेले रहते हो ! इनके चारों बेटों को फुर्सत नहीं है, वह अपनी जिंदगी में खुश है ,और आपका इस दुनिया में कोई नहीं है!
अगर आप दोनों शादी कर लेते हो, तो आप साथ रह सकते हो! मेरी बात को आप दोनों गंभीरता से सोचिए! आंटी आपकी बेटी अब मैं इस दुनिया से जा चुकी है! और दमाद आपका बेटा बनकर ध्यान नहीं रख पाया है!
मेरे ससुर साहब भी अकेले ही रहते हैं ,चार बेटे होने के बाद भी कोई बेटा इनके साथ नहीं है!
इस उम्र में शादी वैवाहिक सुख के लिए नहीं होती है! लेकिन आप दोनों को भी प्यार , सहानुभूति, देखभाल ,और बातचीत करने के लिए कोई तो चाहिए!
कोई ऐसा व्यक्ति जो आपका हमउम्र हो! जो आपकी पुरानी बातें सुनने में आपका साथ दे! अपने पुराने किस्से आपके साथ शेयर करें! जिंदगी में कई बार हमें तन से ज्यादा मन को महत्व देना चाहिए! कम से कम आप दोनों एक दूसरे का सुख दुख तो बांट सकते हो !
कभी बीमार पड़ने पर एक दूसरे की देखभाल कर सकते हो! और पापा यह सामाजिक रूप से भी बहुत अच्छा निर्णय होगा!
जयप्रकाश जी ने कहा !और चारों बेटों और बहूओ को क्या जवाब दूंगा! कि इस उम्र में मैं शादी कर रहा हूं! कुछ वर्षों बाद तो मेरे पोता पोती की शादी की उम्र हो जाएगी! इस उम्र में यह सब कुछ सागरिका बहू बिल्कुल गलत बात है! यह निर्णय में किसी भी हाल में नहीं ले सकता!
लेकिन तभी सुधा जी ने बोली!
जयप्रकाश जी मैं आपसे शादी करना चाहती हूं! सागरिका मेरी बेटी है !और मेरी बेटी मेरे लिए कभी ग़लत नहीं सोचेगी !अब आपकी राय क्या है आप बता दीजिए!
जयप्रकाश जी काफी देर सोच विचार में डूबे रहे और अंत में उन्होंने सागरिका को हा कर दी! कि तुम्हारी बेटी की बात सही है! जीवन के इन अंतिम वर्षों में हमे देखभाल और साथ की आवश्यकता है, वैवाहिक सुख कि नहीं! हम दोनों
साथ रहकर जीवन के अंतिम वर्षों को खुशहाली से बिता सकते हैं! प्रभु का स्मरण करते हुए उस समाजिक संस्थाओं से जुड़कर मिलकर काम कर सकते हैं!
जयप्रकाश जी बोले ! सागरिका तुम सही कहती कि विवाह वैवाहिक सुख तक सीमित नहीं होता है! कई बार हमें जीवन में अकेलेपन से लड़ने के लिए साथी चाहिए होता है!
अगले दिन ही सागरिका ने फेसबुक पर जयप्रकाश और सुधा जी की कोर्ट मैरिज की फोटो शेयर कर दी ! नीचे मैसेज लिख दिया !
"जिसे भी इस शादी से ऐतराज हो वह अपने परिवार सहित यहां आ कर मम्मी पापा की सेवा करें" वरना अपनी शुभकामनाएं और बधाइयां देकर इनकी खुशीयों में शामिल हो जाएं,,,,,,
चारों बेटों और तीनो बहुओं ने कुछ नहीं कहा !सभी ने शुभकामनाएं देकर मम्मी पापा का साथ दिया,,,,
आज सागरिका वापस मुंबई जा रही थी! आज का निश्चित थी पापा की देखभाल को लेकर उसे अब कोई तनाव नहीं था!
लेकिन! आज जयप्रकाश और सुधा जी ने सागरिका को बहू की तरह नहीं,,,,वरण बेटी की तरह से विदा किया!
सागरिका को लग रहा था ,कि जैसे आज उसे मम्मी और पापा दोनों का प्यार और आशीर्वाद मिल गया!
समाप्त 🙏
उमा शर्मा "अर्तिका "