अरे बेटा जल्दी से उठो, देखो कितना दिन चढ़ आया है।
क्या मां आप भी रोज सुबह मुझे ही क्यों परेशान करने आ जाते हो!
"दीदी को पहृले जागया करो, फिर मुझे उठने आया करो । अभिजीत ने तकिए में मुंह नीचे करते हुए बोला ।
तेरी दीदी आज जल्दी कालेज चली गई है। और तुम भी जल्दी से स्कूल के लिए तैयार हो जाओ।
" उसने मां का हाथ अपने हाथ में लेकर बोला, मम्मी आज स्कूल नही जाना है। बिल्कुल दिल नहीं कर रहा है।
" मां बोली !तेरा दिल तो रोज ही नहीं करता है,
यह कहकर नीलिमा बेटा के सिर पर हाथ फेरते हुए बोली! बेटा उठो और स्कूल के लिए तैयार हो जाओ, नहीं तो तुम्हारे पापा गुस्सा होंगे ।और कमरे से बाहर आ गई, और रसोई में काम करने में व्यस्त हो गई!
कुछ देर बाद अभिजीत तैयार हो डाइंग रूम में आ गया! और बोला! मां आज सच स्कूल जाने का मन नहीं कर रहा!
तभी आलोक यानि उसके पापा बोले! नहीं आज तुम्हारा क्लास टेस्ट है, आज स्कूल जाओगे,कल पक्का छुट्टी कर लेना!
तभी आटो रिक्शा वाले ने आवाज लगाई, और अभिजीत गुस्से में घर से बाहर निकल आया और आटो रिक्शा में बैठ कर चला गया।
आज उसने गुस्से में मां को बाय बाय भी नहीं किया ।
नीलिमा ने आलोक को टिफिन देते हुए कहा, पता नहीं आज क्यों मन भारी भारी सा लग रहा है।
"अरे तबीयत ठीक नहीं है क्या ?
नीलिमा ने कहा! तबीयत तो ठीक है, बस दिल उदास है ! पता नहीं क्यों!
ओह,, ओह,,, आज तुम्हारा लाडला बाय बाय, बोल कर नहीं गया ।
दोनों पति-पत्नी जोर से हंस पड़े ।अरे आज दिन में आराम कर लेना , ठीक लगेगा।
अच्छा तुम दरवाजा बंद कर लो,मैं ओफिस जा रहा हूॅ !
नीलिमा ने जल्दी जल्दी घर काम खत्म किया , और कुछ देर के लिए आराम करने सोफे पर ही लेटी और उसे गहरी नींद आ गई!
"फोन की घंटी की आवाज़ से नीलिमा की नींद खुली !
"तभी दरवाजे पर दस्तक हुई !
नीलिमा फोन बजता छोड़कर, पहले दरवाजा खोलने चली गई, जैसे ही दरवाजा खोला!
"आस पास के लोग घर के बाहर खड़े थे, कि भाभी जी जल्दी चालिए, अभिजीत का स्कूल के बहार एक्सीडेंट हो गया है!
"यह सुनकर नीलिमा चक्कर खाकर वहीं गिर पड़ी, साथ में खड़ी, मिश्रा आन्टी ने उन्हें संभालते हुए अपनी बहू विमला को पानी लाने के लिए कहा,
मुंह पर छींटे डाले तब कहीं नीलिमा को होश आया !
"वह तुरंत नंगे पैर ही दौड़ पड़ी !
नीलिमा कुछ दूर ही चली थी ,कि आलोक गेट पर ही मिल गए ,और जल्दी से कार में बैठने को कहा!
जब तक वह दोनों वहां पहुंचे,तब तक अभिजीत को पास के अस्पताल में भर्ती करवा दिया था, और वह अपने जीवन की अंतिम सांसें गिन रहा था ।
जैसे अपने मम्मी पापा को देखा! और मां ने उसका हाथ अपने हाथों में लेकर रोने लगी, और बोली! बेटा काश आज मैं तेरी बात मान लेती,,! तो ये हादशा नहीं होता, और तू बिल्कुल ठीक होता,!
अभिजीत ने बहुत धीमी आवाज में मां से कहा !कि मां मैं वादा करता हूॅ! मैं वापस आऊंगा, और मां के हाथों से उसका हाथ छूट गया, अभिजीत की सांसें थम चुकी थी!
नीलिमा ने अभिजीत को अपनी बाहों में भर लिया! अपने लाडले को अपनी छाती से लगाकर फूट -फूट कर रोने लगी, और पश्चाताप करने लगी ,काश उस ने आज अभिजीत की बात मान ली होती ,मेरा लाडला मुझे ऐसे छोड़कर नहीं जाता!
ईश्वर आपको ज़रा भी दया नहीं आई,मेरे मासूम बच्चे को इस निर्दयता से ले जाते हुए, नीलिमा को विलाप करते हुए देख सभी का ह्रदय दुखी हो रहा था! इतनी छोटी सी उम्र में अभिजीत का प्रभु के चरणों में ग्रीन हो जाना किसी को भी बर्दाश्त नहीं हो रहा था!
कई बार दुर्घटनाएं हमारे जीवन की सबसे अनमोल सदस्य को हमेशा के हमसे छीन लेती है, जैसे नीलिमा के जीवन से उसके बेटे को छीन लिया!
लेकिन मौत के सामने किसी की भी नहीं चलती, मृत्यु ऐसा सत्य है,जिसे ना चहाते हुए भी हमें स्वीकार करना पड़ता है और कभी ना कभी हर किसी को अपने जीवन में अपने किसी प्रिय व्यक्ति के जाने के बाद इस दुःख को सहन करना ही पड़ता है।
लेकिन इतनी अल्पायु में अपने बेटे को खोने का दुःख नीलिमा के लिए असहनीय था!
आलोक ने खुद को संभाला और नीलिमा को गले लगा कर चुप कराने की कोशिश करने लगा।
आलोक की आंखों से अश्रु धारा बहे जा रही थी। लेकिन वह फिर भी नीलिमा को गले लगा कर चुप कराने का प्रयास कर रहा था।
अभिजीत की बड़ी बहन को जैसे ही पता चला,वह पागलों की तरह कालेज से बिना अपनी स्कूटी लिए पदैल चल रही थी।
"तभी उसकी सहेली आकांशा ने अपनी स्कूटी पर उसे बैठकर घर तक पहुंचा दिया,
"वह का हाल देखकर आकांशा का दिल दहल गया! कि हे , ईश्वर ये सब क्या हो गया!
"कैसे हंसता खिलता परिवार बिखर गया, और वह अपनी सहेली सुगंधा को गले लगा कर उसे चुप कराने लगी,आस पास सारे में हड़कंप मच गया!
इतनी भयानक दुर्घटना ने सभी का दिल दहला दिया था!
रोते-रोते आलोक और नीलिमा ने अपने दुलारे, लाडले बेटे को धरती मां की गोद में हमेशा-हमेशा के लिए सुला दिया, और रोते-रोते ही खाली हाथ अपने घर के आंगन में बैठकर रोते रहे।
नीलिमा को किसी के भी समझने से सब्र नहीं आ रहा था। सभी को पता था। नीलिमा को इस वक़्त कुछ भी समझ नहीं आएगा,
"मिश्रा आन्टी बोली !इसे जी भर कर रोने दो, नहीं तो सारा गुबार इसके भीतर ही रह जाएगा।
ये तो सारी उम्र भर का दुःख नीलिमा को मिल गया है, वो मरते दम तक इस दुखदाई घटना को भुला नहीं पाएंगी।
एक एक करके सभी अपने अपने घरों में चले गए । आज ऐसा लग रहा था कि सारी सोसाइटी में मातम छा गया हो जिस तक भी यह खबर पहुंची, उस व्यक्ति का मन दुखी हो जाता था।
"इस बुरे वक्त में आस पास के पड़ोसी , मित्रों और सभी रिश्तेदारों ने सहानुभूति प्रकट करते हुए जो सम्भव हो वह किया,
लेकिन जिस मां ने अपना बेटा खोया हो उसे किसी की भी सहानुभूति पूर्ण बातें भी उसका दुःख कम नहीं कर सकती थी!
मिश्रा आन्टी ने नीलिमा को हौसला देते हुए कहा! नीलिमा हम सब उस ईश्वर के आगे मजबूर हैं,ईश्वर के आगे किसी की भी नहीं चलती हैं, हम सब तो माटी के पुतले हैं जब उसका का दिल करता है किसी भी पुतले को मिट्टी में मिला देता है,
और इंसान कुछ भी नहीं कर सकता सिवाय रोने के,,,और नीलिमा को अपने गले लगा लिया।
मिश्रा आन्टी ने नीलिमा को समझाया , कि अब अभिजीत हमारे बीच नहीं रहा, ईश्वर हमें खेलने के लिए खिलौने देता है, और जब उसका दिल चाहता है ,वह वापस ले लेता है।
ईश्वर की इच्छा के आगे हम सब लाचार हो जाते हैं।
नीलिमा चुप हो जाओ ।और सुगंधा की तरफ देखो ,इतने दिनों से तुमने इसकी सुध तक नहीं ली है।
नीलिमा को बेटा खोने का इतना सदमा लगा था, कि अपनी बेटी की सुध नहीं ली थी।
नीलिमा ने उठकर अपनी बेटी को गले लगाया और मां बेटी एक दुसरे को संभालते हुए एक साथ बोली, हमें मिलकर इस दुखदाई घटना को भुला कर आगे बढ़ना होगा ।
बहार खड़ा आलोक ये नजारा देख रहा था, और उम्मीद कर रहा था, शायद कुछ समय बाद सब कुछ ठीक हो जायेगा। और अब तो सिर्फ समय ही हमारे जख्मों को भर सकता है ।
कुछ महीनों बाद सब कुछ ठीक हो रहा था। नीलिमा भी धीरे धीरे सामान्य हों रही थी ।
लेकिन उसे एक बात बहुत परेशान कर रही थी। और वह किसी को अपने मन की बात बता भी नहीं रहीं थीं।
लेकिन आज उसने सोच लिया था, कि वह आलोक को सब कुछ बता देंगी!
जैसे ही आलोक आया, नीलिमा ने सुगंधा को चाय बनाने के लिए बोल दिया , और आलोक हाथ मुंह धोकर सोफे पर आ कर बैठ गया ।
सुगंधा चाय देकर वापस अपने कमरे में चली गई,और आलोक और नीलिमा बात करने लगे !
नीलिमा ने कहा !आलोक मुझे रोज रात को सोते समय सपने में अभिजीत दिखाई देता है, और बार बार एक ही बात कहता है,
" कि मम्मी मुझे आपके पास आना है आपके साथ रहना, मैंने आपसे वादा किया था , मुझे अपना वादा निभाना है, मां अपने सारे रास्ते बंद कर दिए है अब मां मैं कैसे आपके पास आऊं!
यह कहकर नीलिमा की आंखों से अश्रु बहाने लगे!
"आलोक ने कहा !नीलिमा ये सब तुम्हारा भ्रम है। तुम अभिजीत को बहुत ज्यादा प्यार करती थी। इस लिए तुम शाय़द उसके बारे में सोचती रहती हों, तभी तुम्हें ऐसा महसूस हो रहा है।
"लेकिन नीलिमा बोली ये सच है कि मैंने रास्ता बंद कर रखा है,
"आलोक चुप था।
क्योंकि दोनों की सहमति से अभिजीत के जन्म लेने के बाद नीलिमा ने अपना आपरेशन करवा लिया था! कि हमारे दो बच्चे ही बहुत है।छोटा परिवार सुखी परिवार ।
आलोक सोच में डूबा हुआ था। और नीलिमा बोले जा रही थी। कि मुझे कल डाक्टर किरण से सलाह करके अपने बेटे को वापस लाना है!
आलोक जोर से बोला !नीलिमा तुम पागल हो गई हों क्या ?
"हमारी १८साल की बेटी है सब क्या कहेंगे !
"सोचो तो ज़रा !
"नीलिमा बोली मुझे नहीं पता।
आलोक सुनो ना अगर कल डाक्टर किरण ने हां कर दी तो क्या तुम मेरा साथ दोगे ।
आलोक नीलिमा को क्या जवाब दें यही सोच रहा था, क्योंकि कि आलोक जानता था ,कि नीलिमा ने बहुत मन्नतों के बाद अभिजीत को पाया था ।
आलोक समझ गया कि नीलिमा डिप्रेशन में है। आलोक ने इस समय हां करना ही सही समझा । और नीलिमा को भरोसा दिलाया कि कल डाक्टर किरण से सलाह करके फिर फैसला लेंगे।
रात का खाना खा कर सभी सो गए! लेकिन !
आलोक की आंखों से नींद गायब थी।वह जब भी सोने की कोशिश करता अभिजीत का मुस्कुराता चेहरा सामने आ जाता!
अगली सुबह नीलिमा ने जल्दी से सारा काम खुद ही कर लिया!
"और आलोक को जगाते हुए कहा ,सुनो आप आज अपने आफिस से छुट्टी ले लेना !
पता नहीं वह हमें कितना समय लगेगा।
"आलोक ने कहा ठीक है!
सुगंधा को कालेज भेजकर नीलिमा और आलोक डाक्टर किरण के क्लीनिक में पहुंच गए, और अपनी बारी का इंतजार करने लगे। कुछ देर में उनकी बारी आ गई। डाक्टर किरण उन दोनों को निजी रूप से भी जानती थी!
"डाक्टर किरण ने बैठने को कहा और पूछा ?
" नीलिमा भाभी सबकुछ ठीक है ना !
नीलिमा ने डॉ किरण को सारी बात विस्तार से बता दी, और सलाह मशविरा करने लगी !
आलोक चुप चाप सारी बातें बहुत ध्यान से सुन रहा था। डॉ किरण ने नीलिमा को सारी जानकारी बहुत ही अच्छी तरह समझते हुए कहा!कि जो नसबंदी ऑपरेशन नीलिमा ने करवाया था ,वह दुबारा खुलवा सकती है ,और दुबारा मां भी बन सकतीं हैं !
"किरण ने कहा! मैं आपको पूरा सहयोग करेंगी!क्योंकि! डॉ किरण भी जानती थी, कि नीलिमा ने अपने बेटे को कितनी मन्नतों से पाया था ,और उसे खोने के बाद नीलिमा की सारी दुनिया ही सुनी हो गई थी ! डॉ किरण को लगा शायद अगर ट्रीटमेंट सही रहा तो नीलिमा डिप्रेशन से
बाहर आ जाएगी!
आलोक ने कहा! डाक्टर किरण क्या इस उम्र में यहीं सब सम्भव है,
"जी हां , नीलिमा की जांच मैंने कर ली है!
"आप दोनों आपस में सलाह मशविरा कर लीजिए , और मुझे बता दीजिए!
नीलिमा बहुत खुश थी, आज आलोक ने बहुत समय बाद नीलिमा के चहेरे मुस्कान देखी थी !
आलोक ने वहां बैठे बैठे ही निर्णय ले लिया, और डॉ किरण को हां कर दी !
अलोक ने पूछा! कि कब इलाज शुरू करवा सकते हैं !
डाक्टर किरण ने कहा !कल आप मेरे क्लीनिक दुबारा आ जाना,
दोनों ने डॉ किरण को धन्यवाद कहा और घर वापस आ गए ।
आज नीलिमा बहुत सुकून से सो रही थी और आलोक उसे देख कर बहुत खुश था !
सुगंधा ने मम्मी और पापा की सारी बातें सुन लीं थीं ,और वह भी मन ही मन बहुत खुश थी, सुगंधा बहुत समझदार,सुलझी हुई लड़की है,वह भी अपने माता-पिता को सुखी देखना चाहतीं हैं।वह भी अपने छोटे प्यारे भाई की कमी महसूस करतीं है और उसे भी अभिजीत की बहुत याद आती है।
सुगंधा को याद आ रहा था,कि अभिजीत कैसे उसकी स्कूटी पर बैठ जाता था ,और स्कूल छोड़ने की ज़िद करने लगता था, कि आटो रिक्शा में नहीं जाना है
"प्लीज़ दीदी आज जल्दी से आप स्कूल छोड़ने चलो!
और उसकी स्कूटी पर पीठ लगा कर बैठ जाता, और कहता आप सामने देखकर ध्यान से चलाओ,
मैं तो सड़क की तरफ़ मुंह करके बैठ हूॅ, मुझे ऐसे ही बैठना अच्छा लगता है, और जोर से हंसने लगता था ।
सुगंधा की आंखों से आंसू बहाने लगें , और यहीं सब सोचते सोचते वह कब सो गई, उसे पता ही नहीं चला !
नीलिमा ने डॉ किरण की देखरेख में अपना सारा इलाज करवाना लिया था! और ईश्वर से प्रार्थना करने लगी । प्रभु सबकुछ अपकी कृपा से ही मिलता है, और मैं आप पर ही विश्वास करती हूं,जो होगा वह अच्छा ही होगा!
कुछ महीनों बाद नीलिमा फिर से गर्भवती हो गई , और ईश्वर के प्रति उसका विश्वास और भी दृढ़ हो गया,
वहीं नीलिमा की बेटी सुगंधा ने मां की सेवा करने में कोई कमी नहीं छोड़ी, पड़ोस वाली मिश्रा आन्टी को पता चला, उन्होंने भी नीलिमा के सिर पर हाथ फेरते हुए आशीर्वाद 🙌 दिया। भगवान करे तेरा अभिजीत तेरी कोख से दोबारा जन्म लेकर वापस आ जाए!
अब सब नीलिमा का बहुत घ्यान रखते, आलोक भी नीलिमा की घर और बाहर के सभी कामों में मदद करता, समय तो अपनी गति से आगे बढ़ता रहता है।नौ महीने जैसे पंख लगा कर उड़ गए और अब वह खुशी की घड़ी भी आ गई, जिसका सभी को इन्तजार था!
आज नीलिमा ने प्रातःकाल एक बेटे को जन्म दिया, आलोक और बेटी सुगंधा दोनों ही अस्पताल के बाहर खड़े थे!जैसे ही पता चल आलोक और बेटी सुगंधा दोनों बच्चे को देखने के लिए नीलिमा के कमरे में पहुंच गए!
"सुगंधा अपने छोटे भाई को देख कर आंखों से खुशी के आंसू बहा निकले!
"आलोक तो देखते ही रह गए !
हू - ब- हू अभिजीत की शक्ल और सूरत , वहीं मुस्कान, उन्होने बच्चे को गोद में उठाकर माथा चूमा और आलोक ने नीलिमा को दिखाया देखो तुम्हारा अभिजीत वापस आ गया है!
तुम सच कहती थी !कि तुम्हारा लाडला अभिजीत वापस आएगा, और अपनी मां से किया वादा पूरा करेगा, आज एक मां का विश्वास जीत गया सच में मां बेटे का रिश्ता बड़ा अनमोल होता है और अभिजीत ने अपनी मां को दिया हुआ वादा निभा दिया!
नीलिमा की नार्मल डिलीवरी होने से नीलिमा को जल्दी ही छुट्टी मिल गई,आस पड़ोस में सभी ने मिलजुलकर नीलिमा का स्वागत किया!
मिश्रा आन्टी ने नीलिमा को आशीर्वाद 🙌 दिया,कि मां बेटे का प्यार सदैव बना रहे ।
सुगंधा की सहेली आकांशा आज परिवार को पूरा होते देख बहुत खुश थी ,और ईश्वर का धन्यवाद 🙏 कर रही थी।
पंडित जी ने हवन करने के बाद बच्चे का नाम करण किया और आलोक एवं नीलिमा को" अ" अक्षर से नाम रखने को कहा ,
तभी नीलिमा ने कहा अभिजीत यहीं नाम रखना है ।
मेरे बेटे ने सपने में मुझसे वापस आने का वादा किया ,और वापस आ कर अपना वादा निभाया है! ये मेरा बेटा अभिजीत ही है !
सुगंधा बोली!ये मेरा छोटा भाई अभिजीत ही है !
पंडित जी ने कहा! ठीक है आज से बच्चे का नाम अभिजीत है!
"आकांशा प्लीज़ हम सब की एक फोटो तो क्लीक करना!
आकांशा ने कहा फोटो नहीं सेल्फी मेरा भी तो छोटा-सा प्यारा भाई आया है,
सभी जोर से हंसने लगे,मिश्रा आन्टी ने भी नीलिमा और बच्चे को प्यार और आशीर्वाद दिया। और अभिजीत के हाथों में काला धागा बांध दिया!
आज सभी बहुत खुश थे, बहार खड़ी डाक्टर किरण ये नजारा देख मुस्कुराई और नीलिमा की गोद में बच्चे को देख कर बोली!
हे ईश्वर इस परिवार को ऐसे ही हंसता खिलता रखना!
एक बेटे ने दुबारा जन्म लेकर अपना वादा निभाया है, इस बच्चे पर सदैव कृपा बनाए रखना!
किरण ने बच्चे को गोद में लेकर आयुष्मान भव: का आशीर्वाद दिया!
✍️उमा शर्मा"अर्तिका "