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महामारी (भाग–1)

10 अक्टूबर 2021

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भाग–1


सन् 1870………….
भारत में ब्रिटिश राज का समय…………..

जागीरदार सूबे सिंह, जिनकी जागीर बहुत दूर तक फैली हुई थी। उनकी पत्नी को गुजरे हुए काफी वक़्त बीत चुका था। उनकी एक ही बेटी थी मधुरिमा जिसका रिश्ता गांव के ही एक डॉक्टर सूर्यकांत से हुआ था जो फिलहाल अभी के लिए गांव से बाहर शहर में प्रैक्टिस कर रहे थे। जागीरदार सूबे सिंह का अपने क्षेत्र में बहुत रुतबा था। ब्रिटिश अधिकारी अक्सर उनके इलाके में शिकार खेलने आते थे और उनकी मेहमान नवाजी का लुत्फ उठाते थे।

किशनगढ़……...उनकी ही जागीर का एक गांव।

खेतों पर काम करते हुए सुरेन्द्र की अचानक तबीयत बिगड़ गई। वो वहीं पछाड़ खा कर गिर पड़ा। आवाज़ सुन कर वहां और भी लोग आ गए। अरे देखो सुरेन्द्र को क्या हो गया है। लगता है कि इसके सांप ने काट लिया है। जितने लोग उतनी बातें। सुरेन्द्र नीचे गिरा तड़प रहा था और उसकी आंखें लाल हो गईं थी। चलो इस उठा कर वैद्य जी के पास ले चलते हैं, सभी लोगों ने कहा और सुरेन्द्र को उठाने लगे कि तभी सुरेन्द्र एक दम सामान्य हो गया। क्या हुआ था मुझे? उसने उठते ही बाकी लोगों से पूछा। शायद तुम्हें दौरा पड़ गया था, किसी ने बताया। पानी, पानी चाहिए मुझे, बहुत प्यास लगी है, सुरेन्द्र ने होठों पर जीभ फेरते हुए कहा। किसी ने उसे पानी दिया। पानी की सिर्फ एक बूंद ही उसके गले से नीचे उतरी थी कि वो अपना गला पकड़ कर तड़पने लगा और थोड़ी देर में ही शांत हो गया। अरे भाई देखो इसे शायद फिर से दौरा पड़ा है। एक आदमी ने सुरेन्द्र को उठाने की कोशिश की तो देखा उसका जिस्म बुरी तरह अकड़ कर ठंडा पड़ गया था। ये तो मर चुका है, उसने चौंक कर कहा। 
सुरेन्द्र की लाश का अंतिम संस्कार करने की तैयारियां हो रहीं थीं। उसकी पत्नी और 17 साल के एक बेटे का रो रो कर बुरा हाल था। गांव के अधिकतर लोग उसके अंतिम संस्कार में आए थे। बड़ा ही अच्छा आदमी था, एक ने कहा। हां देखो लेकिन पता नहीं कि एक दम से अचानक क्या हो गया, दूसरे ने कहा। मैंने सुना था कि इसे खेत पर काम करते हुए अचानक से हवा ने दबा लिया, सुना था कि आंखें भी पूरी लाल हो गईं थीं और मरने के तुरंत बाद वो पूरी तरह अकड़ गया था, तीसरे ने कहा। भगवान ऐसे दिन किसी को ना दिखाए, वो हवा कोई तगड़ी ही थी, हमें चौकस हो कर खेत पर जाना चाहिए, पहले ने कहा। बाकी सब भी उसकी हां में हां मिलाने लगे। गांव के मुनीम जी भी शमशान घाट पहुंच गए थे। सुरेन्द्र का बेटा वहीं मूर्ति बना हुआ जलती हुई चिता की अग्नि देख रहा था कि तभी मुनीम जी भी वहीं पहुंच गए। उसने मुनीम जी को देख कर धीरे से गर्दन हिलाई। मुझे बहुत खेद हो रहा है कि तुम्हारे पिता जी नहीं रहे, बड़े भले आदमी थे, उधार का पैसा भी समय से चुकाते रहते थे। देखो बेटा बुरा मत मानना लेकिन दुनिया है तो वो तो ऐसे ही चलती रहती है, अब तुम्हे उनकी जिम्मेदारी उठानी है। ये उनका हिसाब किताब है कुल मिलाकर 11 रुपए 5 आने उन पर उधार चल रहे हैं और पिछले महीने का ब्याज भी उन्होंने नहीं दिया था तो उसे भी जोड़ कर 11 रुपए 92 पैसे का हिसाब समझ लो, ये कह कर उन्होंने हिसाब का पर्चा उसे दे दिया। उसने चुपचाप से वो पर्चा पकड़ लिया। और हां बेटा अगर कुछ और पैसों की जरूरत पड़े तो बता देना, तुम्हारे पिता जी सेठ जी के बहुत पुराने मिलने जुलने वाले थे, मुनीम जी ने ये कहते हुए उसके कंधे पर हाथ रखा और वहां से चले गए। वो लड़का बहुत देर तक मुनीम जी को जाते हुए देखता रहा।
उसी रात गांव में 4 लोग और मर गए। वो चारों लोगों अलग अलग तरीके से मरे थे। पहला आदमी दम घुटने से मरा, दूसरा आदमी उल्टी और दस्त से, तीसरा आदमी बुखार से और चौथा आदमी भयानक पेट दर्द से। गांव में मातम फैल गया था। 
अगले दिन उन सभी का अंतिम संस्कार करने के बाद, गांव में पंचायत बैठ गई। इस पंचायत को इसलिए रखा गया है क्योंंकि एकदम से इतने लोगों की मौत हो जाना गांव के लिए एक अच्छा संकेत नहीं है, हम सभी को इसके निवारण के लिए कुछ सोचना होगा, तो मैं सभी से राय लेना चाहता हूं, सरपंच जी ने कहा। ये मौतें, सीधा संकेत दे रहीं है कि यहां कोई बीमारी फैल रहीं है, मास्टर जी ने कहा। क्या बात करते हो मास्टर जी, बीमारी होती तो सबको एक जैसी होती लेकिन यहां तो सब अलग अलग तरीके से बीमार हो कर मरें हैं, एक आदमी ने कहा। मैंने रात सपने में देखा कि संत्या काकी की लड़की फुलवा गांव की पोखर के किनारे बैठी हुई कह रही थी कि मुझे इस गांव के लोगों ने मारा है तो मैं बदला लेने आईं हूं, एक आदमी ने कहा तो सभी गांव वालो में खुसरपुसर शुरू हो गई। वैद्य जी, एक ही दिन में 5 मौतें हो गईं है गांव में, आपका इस बारे में क्या कहना है, सरपंच जी ने वैद्य जी से पूछा। बहुत ही अजीब बात है, पांचों की मौत का कारण एक जैसा नहीं है, अगर ये कोई बीमारी ही होती तो सब पर एक जैसे परिणाम दिखते लेकिन यहां तो कहानी ही कुछ और बन रही है, वैद्य जी कहा। लोगों में फिर से खुसरपुसर शुरू हो गई। मैं अभी भी कह रहा हूं कि जागीरदार साहब से बात करी जाए, उनसे प्रार्थना करेंगे तो वो जरूर ही हम लोगों के लिए कोई अच्छे से डॉक्टर का इंतजाम करेंगे, मास्टर जी ने कहा। नहीं, ये सब उसका ही किया धरा है, मर कर भी हमें चैन नहीं लेने दे रही है, हमें गांव का शुद्धिकरण करवाना होगा, एक आदमी ने कहा तो सब उसकी हां में हां मिलाने लगे। ठीक है, आप सब लोग शांत हो जाइए, पंचायत का भी यहीं फैसला है, कल सुबह पुराने मंदिर पर एक हवन कराया जाएगा। 
उस रात गांव में कोई मौत नहीं हुई लेकिन कुछ लोग अलग अलग बीमारियों से बिस्तर पर जरूर पड़ गए थे।
सुबह को हवन बहुत जोर शोर से चल रहा था। अब सब आहुति देंगे, पंडित जी ने कहा। सब थोड़ी थोड़ी हवन सामग्री ले कर अग्नि में चढ़ाने लगे कि तभी एक आदमी नीचे गिरा, उसके मुंह से झाग निकाल कर रहे थे। कुछ ही देर में वो शांत हो गया।


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महामारी
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कहानी एक ऐसी बीमारी की जिसने बहुत जल्दी ही महामारी का रूप ले लिया।

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