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अजय बाबू मौर्य के बारे में

पत्रकार, कवि, लेखक

पुरस्कार और सम्मान

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दैनिक लेखन प्रतियोगिता2023-04-21
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दैनिक लेखन प्रतियोगिता2023-01-14

अजय बाबू मौर्य की पुस्तकें

बीते हुए लम्हे

बीते हुए लम्हे

प्रस्तुत पुस्तक ‘बीते हुए लम्हे’ गुजरे हुए वक्त की वो अमानत है, जो वर्षों तक डायरीनुमा तिजोरी में बंद रही. अब पुस्तक की शक्ल में आप तक पहुंचने को बेताब है. स्कूल के दिनों में बालपन को पीछे छोड़ किशोरावस्था की ओर जाते हुए गुनगुनाई पंक्तियों को कभी कलम

12 पाठक
43 रचनाएँ

निःशुल्क

बीते हुए लम्हे

बीते हुए लम्हे

प्रस्तुत पुस्तक ‘बीते हुए लम्हे’ गुजरे हुए वक्त की वो अमानत है, जो वर्षों तक डायरीनुमा तिजोरी में बंद रही. अब पुस्तक की शक्ल में आप तक पहुंचने को बेताब है. स्कूल के दिनों में बालपन को पीछे छोड़ किशोरावस्था की ओर जाते हुए गुनगुनाई पंक्तियों को कभी कलम

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यादें

यादें

यह पुस्तक अपने प्यार के चले जाने के बाद उसकी यादों में खोए रहने और उसके साथ बिताए हुए पलों को दोबारा जीने की कोशिश है.....

2 पाठक
6 रचनाएँ
1 लोगों ने खरीदा

ईबुक:

₹ 105/-

यादें

यादें

यह पुस्तक अपने प्यार के चले जाने के बाद उसकी यादों में खोए रहने और उसके साथ बिताए हुए पलों को दोबारा जीने की कोशिश है.....

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अजय बाबू मौर्य के लेख

प्यार....

19 मई 2023
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प्यार.... तुझे लगा छोड़ने से टूट जाऊंगा याद रख लौटकर जरूर आऊंगा बेवफा न अहसान फरामोश हूं हर कर्ज का बदला चुकाऊंगा दोस्ती के लायक तेरी हो जाऊंगा  मिलने का ख्याब तुझमें जगाऊंगा  मुझसे मिलन

ख्वाब...

19 मई 2023
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 ख्वाब... सुना था स्वर्ग है यहां धरती पर कहीं किसी को पता नहीं ढूंढा कहां-कहां पाया यहीं  खामोशी उसकी  होले से गुनगुनाई आंखों में उसकी  मैंने दुनिया पाई खूबसूरती सारे जहां की  उसमें थी समाई

यादें.....

19 मई 2023
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यादें..... शामियाने शाम के गहराने लगे हैं बचपन वाले दिन याद आने लगे हैं  दादी की बातें वो दादा के किस्से नानी और नाना भी याद आने लगे हैं। स्कूल से आकर बस्ता फेंकना घर में झांकना, यहां-वहां द

मेरी चाहत

25 अप्रैल 2023
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तुम्हें भेजे हुए नगमे गुनगुनाती हो क्या सोचकर मुझे तुम मुस्कुराती हो गया  सेाचता हूं तुम्हें तो ख्यालों में खो जाता हूं तुम भी मेरी तरह कहीं खो जाती हो क्या सुना है प्यार रुह से किया जाता है जिस्

सिसकियां.....

23 अप्रैल 2023
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खामोश सिसकियां सुन लेता हूं पर कहता नहीं ।  भरोसा नहीं है कि  तुम अपना समझते होगे। यकीन मानो जिन दिन यकीन हो जाएगा,  कि तुम्हें यकीन है मुझ पर  उस दिन  पुरानी सिसकियों से छुड़ा लूंगा नई सिसकि

यादों में तुम...

23 अप्रैल 2023
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पता नहीं  कितनी आकांक्षाएं कितने स्वप्न अपने में ही  सिमटकर रह गए पता नहीं क्या है जो कांटे सा चुभता है सोने नहीं देता रात-रात भर एकांत बन जाता है  जिंदगी का अटूट सिलसिला विवशता बनती है जिंदग

कलुआ....

23 अप्रैल 2023
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कल कलुआ पर लिखी कविता  आज छपी थी जिस अखबार में  दिनभर की थकान मिटाने के लिए  दो पैक पीने के बाद  खाने वाले चने बंधे थे कलुआ के हाथ में उसी अखबार में  क्षितिज के पार तक  कोई संबंध नहीं था कलुआ क

अतृप्त लेखनी...

23 अप्रैल 2023
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मानवीय संवेदनाओं को  अपनी अतृप्त लेखनी से  व्यक्त कर समेटता हूं  ढेर सारी शाबाशी खुश होता हूं  पाकर प्रशस्ति-पत्र गड़गड़ाहट सुन तालियों की  प्रफुल्लित  होता हूं लेकिन  कोई नहीं सोचता  सोता था

आस में हूं...

20 अप्रैल 2023
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सबेरा होगा इस आस में हूं नहीं कोई संदेह विश्वास में हूं अंधेरों से घिरा रहा बेशक अब तक उजालों के लेकिन बहुत पास में हूं जिंदगी में रही मुश्किलें बहुत मुश्किलों के बीच उल्लास में हूं बंदिशो

तुमसे मिलन...

20 अप्रैल 2023
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जानता हूं तुम्हारा प्रवेश  जीवन में  उन प्रेम रचनाओं सा है  जो तुम्हारे ख्यालों में डूबकर  हृदय में उत्पन्न भावों को  पन्नों पर उतारकर  रची हैं फिर भी समस्याओं के बांध से  मुक्ति मिले इस जीव

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