आखिर क्यों मारा गोडसे ने गाँधी को सच जाने
विभाजन की पीड़ा.. गाँधी वध
की वास्तविकता और ... हुतात्मा गोडसे ... कैसे
उतरेगा भारतीय जनमानस से गोडसे जी का कर्ज
......
क्या थी विभाजन की पीड़ा ?
विभाजन के समय हुआ क्या क्या ?
विभाजन के लिए क्या था विभिन्न राजनैतिक
पार्टियों का दृष्टिकोण ?
क्या थी पीड़ा पाकिस्तान से आये हिन्दू
शरणार्थियों की ... मदन लाल पाहवा और विष्णु
करकरे
की?
क्या थी गोडसे की विवशता ?
क्या गोडसे नही जानते थे की आम
आदमी को मरने में और एक कथित
राष्ट्रपिता को मरने में
क्या अंतर है ?
क्या होगा परिवार का ?
कैसे कैसे कष्ट सहने पड़ेंगे परिवार और
सम्बन्धियों को और
मित्रों को ?
क्या था गांधी वध का वास्तविक कारण ?
क्या हुआ 30 जनवरी की रात्री को ... पुणे के
ब्राह्मणों के साथ ?
क्या था सावरकर और हिन्दू
महासभा का चिन्तन ?
क्या हुआ गोडसे के बाद नारायण राव आप्टे का ..
कैसी नृशंस
फांसी दी गयी उन्हें ?
यह लेख पढने के बाद कृपया बताएं कैसे
उतारेगा भारतीय
जनमानस हुतात्मा पंडित नाथूराम गोडसे
जी का कर्ज....
आइये इन सब सवालों के उत्तर खोजें ....
पाकिस्तान से दिल्ली की तरफ
जो रेलगाड़िया आ रही थी, उनमे हिन्दू इस
प्रकार बैठे थे जैसे माल की बोरिया एक के ऊपर एक
रची जाती हैं.अन्दर ज्यादातर मरे हुए
ही थे, गला कटे हुए रेलगाड़ी के छप्पर पर
बहुत से लोग बैठे हुए थे, डिब्बों के अन्दर सिर्फ सांस
लेने भर
की जगह
बाकी थी बैलगाड़िया ट्रक्स हिन्दुओं से भरे
हुए थे, रेलगाड़ियों पर लिखा हुआ था,,"
आज़ादी का तोहफा " रेलगाड़ी में जो लाशें
भरी हुई।
थी उनकी हालत कुछ
ऐसी थी की उनको उठाना मुश्किल
था, दिल्ली पुलिस को फावड़ें में उन
लाशों को भरकर
उठाना पड़ा ट्रक में भरकर किसी निर्जन स्थान पर
ले
जाकर, उन पर पेट्रोल के फवारे मारकर उन
लाशों को जलाना पड़ा इतनी विकट हालत
थी उन मृतदेहों की... भयानक बदबू......।
सियालकोट से खबरे आ
रही थी की वहां से हिन्दुओं
को निकाला जा रहा हैं, उनके घर,
उनकी खेती, पैसा-अडका, सोना-
चाँदी, बर्तन सब मुसलमानों ने अपने कब्जे में ले लिए
थे
मुस्लिम लीग ने सिवाय कपड़ों के कुछ भी ले
जाने पर रोक लगा दी थी.
किसी भी गाडी पर हल्ला करके
हाथ को लगे उतनी महिलाओं-
बच्चियों को भगाया गया.बलात्कार किये
बिना एक भी हिन्दू
स्त्री वहां से वापस नहीं आ
सकती थी ... बलात्कार किये बिना.....?
जो स्त्रियाँ वहां से जिन्दा वापस आई
वो अपनी वैद्यकीय जांच करवाने से डर
रही थी....
डॉक्टर ने पूछा क्यों ???
उन महिलाओं ने जवाब दिया... हम
आपको क्या बताये हमें
क्या हुआ हैं ?
हमपर कितने लोगों ने बलात्कार किये हैं हमें
भी पता नहीं हैं...उनके सारे
शारीर पर चाकुओं के घाव थे.
"आज़ादी का तोहफा"
जिन स्थानों से लोगों ने जाने से मना कर दिया, उन
स्थानों पर हिन्दू
स्त्रियों की नग्न यात्राएं (धिंड)
निकाली गयीं, बाज़ार सजाकर
उनकी बोलियाँ लगायी गयीं और
उनको दासियों की तरह खरीदा बेचा गया।
1947 के बाद दिल्ली में 400000 हिन्दू निर्वासित
आये,
और इन हिन्दुओं को जिस हाल में
यहाँ आना पड़ा था,
उसके बावजूद पाकिस्तान को पचपन करोड़ रुपये देने
ही चाहिए ऐसा एक
रंडी की ओउलाद हराम का जना मोहनदास
करमचंद गाँधी का आग्रह था..।
विधि मंडल ने विरोध किया, पैसा नहीं देगे....और
फिर
बिरला भवन के पटांगन में महात्मा जी अनशन पर बैठ
गए.....पैसे दो, नहीं तो मैं मर जाउगा....एक तरफ
अपने
मुहँ से ये कहने वाले तथाकथित महात्मा जी,
हिंसा उनको पसंद नहीं हैं दूसरी तरफ
जो हिंसा कर रहे थे उनके लिए अनशन पर बैठ गए...
क्या यह
हिंसा नहीं थी .. अहिंसक आतंकवाद
की आड़ में।
दिल्ली में हिन्दू निर्वासितों के रहने की कोई
व्यवस्था नहीं थी, इससे
ज्यादा बुरी बात ये थी की दिल्ली में
खाली पड़ी मस्जिदों में हिन्दुओं ने शरण
ली तब बिरला भवन से महात्मा जी ने भाषण
में कहा की दिल्ली पुलिस को मेरा आदेश हैं
मस्जिद जैसी चीजों पर हिन्दुओं का कोई
ताबा नहीं रहना चाहिए । निर्वासितों को बाहर
निकालकर
मस्जिदे
खाली करे..क्योंकि महात्मा जी की दृष्टी में
जान सिर्फ मुसलमानों में थी हिन्दुओं में
नहीं..।
अब सवाल तो सबसे बड़ा ये है
की दिल्ली पुलिस को आदेश देने वाला ये कुत्ते
की औलाद सरकार में था क्या ? असल में नेहरु
इसका सिर्फ मोहरा था सरकार पर कब्ज़ा इस कुत्ते
का ही था।
जनवरी की कडकडाती ठंडी में
हिन्दू महिलाओं और छोटे छोटे बच्चों को हाथ
पकड़कर पुलिस ने
मस्जिद के बाहर निकाला, गटर के किनारे
रहो लेकिन छत के निचे
नहीं क्योकि... तुम हिन्दू हो....।
4000000 हिन्दू भारत में आये थे, ये सोचकर की ये
भारत हमारा हैं. हिन्दू भोले होते ये सब जानते है
दुश्मन और
दोस्त में फर्क नहीं पहचानते इसलिए ये सब
निर्वासित
गांधी उर्फ सूवर जो हिन्दुओ का सबसे बड़ा दुश्मन
था से
मिलने बिरला भवन जाते थे तबसूवर की ओउलाद
माइक पर
से कहता था क्यों आये यहाँ अपने घर जायदाद बेचकर,
वहीँ पर अहिंसात्मक प्रतिकार करके मर
जना चाहिए
था ??
यही अपराध हुआ तुमसे
अभी भी वही वापस
जाओ..और ये महात्मा किस आशा पर पाकिस्तान
को पचपन करोड़
रुपये देने निकले थे ?
कैसा होगा वो मोहनदास करमचन्द गाजी उर्फ़
गंधासुर ...
कितना महान ...
जिसने बिना तलवार उठाये ... 35 लाख हिन्दुओं
का नरसंहार करवाया।
2 करोड़ से ज्यादा हिन्दुओं का इस्लाम में धर्मांतरण
हुआऔर उसके
बाद यह संख्या 10 करोड़ भी पहुंची।
10 लाख से ज्यादा हिन्दू
नारियों को खरीदा बेचा गया।
20 लाख से ज्यादा हिन्दू नारियों को जबरन
मुस्लिम बना कर अपने
घरों में रखा गया, तरह तरह की शारीरिक
और मानसिक यातनाओं के बाद।
ऐसे बहुत से प्रश्न, वास्तविकताएं और सत्य तथा तथ्य
हैं
जो की 1947 के समकालीन लोगों ने
अपनी आने वाली पीढ़ियों से
छुपाये, हिन्दू कहते हैं की जो हो गया उसे भूल जाओ,
नए कल की शुरुआत करो ..
परन्तु इस्लाम के लिए तो कोई कल नहीं .. कोई आज
नहीं ...वहां तो दार-उल-हर्ब को दार-उल-इस्लाम
में
बदलने का ही लक्ष्य है पल.. प्रति पल।
विभाजन के बाद एक और विभाजन का षड्यंत्र ...
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आपने बहुत से देशों में से नए देशों का निर्माण
देखा होगा, U S S R
टूटने के बाद बहुत से नए देश बने, जैसे ताजिकिस्तान,
कजाकिस्तान
आदि ... परन्तु यह सब देश जो बने वो एक
परिभाषित अविभाजित
सीमा के अंदर बने।
और जब भारत का विभाजन हुआ .. तो क्या कारण
थे
की पूर्वी पाकिस्तान और
पश्चिमी पाकिस्तान बनाए गए...
क्यों नही एक ही पाकिस्तान बनाया गया...
या तो पश्चिम में बना लेते या फिर पूर्व में।
परन्तु ऐसा नही हुआ .... यहाँ पर
उल्लेखनीय है की मोहनदास करमचन्द ने
तो यहाँ तक कहा था की पूरा पंजाब पाकिस्तान
में
जाना चाहिए, बहुत कम लोगों को ज्ञात है
की 1947 के
समय में पंजाब
की सीमा दिल्ली के नजफगढ़
क्षेत्र तक होती थी ..
यानी की पाकिस्तान का बोर्डर
दिल्ली के साथ होना तय था ... मोहनदास
करमचन्द के
अनुसार।
नवम्बर 1968 में पंजाब में से दो नये राज्यों का उदय
हुआ ..
हिमाचल प्रदेश और हरियाणा।
पाकिस्तान जैसा मुस्लिम राष्ट्र पाने के बाद
भी जिन्ना और
मुस्लिम लीग चैन से नहीं बैठे ..
उन्होंने फिर से मांग की ...
की हमको पश्चिमी पाकिस्तान से
पूर्वी पाकिस्तान जाने में बहुत समस्याएं उत्पन्न
हो रही हैं।
1. पानी के रास्ते बहुत लम्बा सफर हो जाता है
क्योंकि श्री लंका के रस्ते से घूम कर जाना पड़ता है।
2. और हवाई जहाज से यात्राएं करने में
अभी पाकिस्तान
के मुसलमान सक्षम नही हैं इसलिए .... कुछ मांगें
रखी गयीं इसलिए हमको भारत के
बीचो बीच एक Corridor बना कर
दिया जाए....
2. जो लाहोर से ढाका तक जाता हो ... (NH - 1)
3. जो दिल्ली के पास से जाता हो ..
4. जिसकी चौड़ाई कम से कम 10 मील
की हो ... (10 Miles = 16 KM)
5. इस पूरे Corridor में केवल मुस्लिम लोग ही रहेंगे।
30 जनवरी को गांधी वध यदि न होता,
तो तत्कालीन परिस्थितियों में बच्चा बच्चा यह
जानता था की यदि मोहनदास करमचन्द 3
फरवरी, 1948 को पाकिस्तान पहुँच गया तो इस
मांग
को भी ...मान लिया जायेगा।
तात्कालिक परिस्थितियों के अनुसार
तो मोहनदास करमचन्द
किसी की बात सुनने की स्थिति में
था न ही समझने में ...और समय
भी नहीं था जिसके कारण हुतात्मा नाथूराम
गोडसे जी को गांधी वध जैसा अत्यधिक
साहसी और शौर्यतापूर्ण निर्णय लेना पडा।
हुतात्मा का अर्थ होता है जिस आत्मा ने अपने
प्राणों की आहुति दी हो ....
जिसको की वीरगति को प्राप्त
होना भी कहा जाता है।
यहाँ यह सार्थक चर्चा का विषय होना चाहिए
की हुतात्मा पंडित नाथूराम गोडसे जी ने
क्या एक बार
भी नहीं सोचा होगा की वो क्या करने
जा रहे हैं ?
किसके लिए ये सब कुछ कर रहे हैं ?
उनके इस निर्णय से उनके घर, परिवार, सम्बन्धियों,
उनकी जाती और उनसे जुड़े संगठनो पर
क्या असर पड़ेगा ?
घर परिवार का तो जो हुआ सो हुआ .... जाने
कितने जघन्य प्रकारों से
समस्त परिवार और सम्बन्धियों को प्रताड़ित
किया गया।
परन्तु ..... अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले मोहनदास
करमचन्द के कुछ
अहिंसक आतंकवादियों ने 30 जनवरी, 1948
की रात को ही पुणे में 6000
ब्राह्मणों को चुन चुन कर घर से निकाल निकाल कर
जिन्दा जलाया।
10000 से ज्यादा ब्राह्मणों के घर और दुकानें जलाए
गए।
सोचने का विषय यह है की उस समय संचार माध्यम
इतने उच्च कोटि के नहीं थे, विकसित
नही थे ... फिर कैसे 3 घंटे के अंदर अंदर
इतना सुनियोजित तरीके से इतना बड़ा नरसंहार कर
दिया गया ....
सवाल उठता है की ... क्या उन अहिंसक
आतंकवादियों को पहले से यह ज्ञात
था की गांधी वध होने वाला है ?
जस्टिस खोसला जिन्होंने गांधी वध से सम्बन्धित
केस
की पूरी सुनवाई की... 35
तारीखें पडीं।
अदालत ने निरीक्षण करवाया और
पाया हुतात्मा पंडित
नाथूराम गोडसे जी की मानसिक
दशा को तत्कालीन चिकित्सकों ने एक दम
सामान्य घोषित
किया पंडित जी ने अपना अपराध स्वीकार
किया पहली ही सुनवाई में और
अगली 34 सुनवाइयों में कुछ नहीं बोले ...
सबसे आखिरी सुनवाई में पंडित जी ने अपने
शब्द कहे ""
गाँधी वध के समय न्यायमूर्ति खोसला से नाथूराम ने
अपना वक्तव्य स्वयं पढ़ कर सुनाने
की अनुमति मांगी थी और उसे
यह अनुमति मिली थी नाथूराम गोडसे का यह
न्यायालयीन वक्तव्य भारत सरकार
द्वारा प्रतिबंधित कर
दिया गया था इस प्रतिबन्ध के विरुद्ध नाथूराम
गोडसे के भाई
तथा गाँधी वध के सह अभियुक्त गोपाल गोडसे ने ६०
वर्षों तक वैधानिक लडाई लड़ी और उसके फलस्वरूप
सर्वोच्च न्यायलय ने इस प्रतिबन्ध
को हटा लिया तथा उस वक्तव्य
के प्रकाशन की अनुमति दे दी। नाथूराम गोडसे
ने न्यायलय के समक्ष गाँधी वध के जो १५० कारण
बताये
थे उनमें से प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं -
1. अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोली काण्ड
(1919) से
समस्त देशवासी आक्रोश में थे तथा चाहते थे कि इस
नरसंहार के खलनायक जनरल डायर पर अभियोग
चलाया जाए।
गाँधी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने
से
मना कर दिया।
2. भगत सिंह व उसके साथियों के मृत्युदण्ड के
निर्णय से सारा देश
क्षुब्ध था व गाँधी की ओर देख
रहा था कि वह हस्तक्षेप कर इन देशभक्तों को मृत्यु
से बचाएं,
किन्तु गान्धी ने भगत सिंह
की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए जनसामान्य
की इस माँग को अस्वीकार कर दिया।
क्या आश्चर्य कि आज भी भगत सिंह वे अन्य
क्रान्तिकारियों को आतंकवादी कहा जाता है।
3. 6 मई 1946 को समाजवादी कार्यकर्ताओं
को अपने
सम्बोधन में गाँधी ने मुस्लिम लीग
की हिंसा के समक्ष अपनी आहुति देने
की प्रेरणा दी।
4.मोहम्मद
अली जिन्ना आदि राष्ट्रवादी मुस्लिम नेताओं
के विरोध को अनदेखा करते हुए 1921 में गाँधी ने
खिलाफ़त आन्दोलन को समर्थन देने
की घोषणा की। तो भी केरल के
मोपला में मुसलमानों द्वारा वहाँ के हिन्दुओं
की मारकाट
की जिसमें लगभग 1500 हिन्दु मारे गए व 2000 से
अधिक को मुसलमान बना लिया गया। गाँधी ने इस
हिंसा का विरोध नहीं किया, वरन् खुदा के बहादुर
बन्दों की बहादुरी के रूप में वर्णन किया।
5.1926 में आर्य समाज द्वारा चलाए गए
शुद्धि आन्दोलन में लगे
स्वामी श्रद्धानन्द
जी की हत्या अब्दुल रशीद
नामक एक मुस्लिम युवक ने कर दी,
इसकी प्रतिक्रियास्वरूप गाँधी ने अब्दुल
रशीद को अपना भाई कह कर उसके इस कृत्य
को उचित
ठहराया व शुद्धि आन्दोलन को अनर्गल राष्ट्र-
विरोधी तथा हिन्दु-मुस्लिम एकता के लिए
अहितकारी घोषित किया।
6.गाँधी ने अनेक अवसरों पर
छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप व गुरू
गोविन्द सिंह
जी को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा।
7.गाँधी ने जहाँ एक ओर काश्मीर के हिन्दु
राजा हरि सिंह को काश्मीर मुस्लिम बहुल होने से
शासन छोड़ने व काशी जाकर प्रायश्चित करने
का परामर्श
दिया, वहीं दूसरी ओर हैदराबाद के निज़ाम के
शासन का हिन्दु बहुल हैदराबाद में समर्थन किया।
8. यह गाँधी ही था जिसने मोहम्मद
अली जिन्ना को कायदे-आज़म
की उपाधि दी।
9. कॉंग्रेस के ध्वज निर्धारण के लिए
बनी समिति (1931) ने सर्वसम्मति से चरखा अंकित
भगवा वस्त्र पर निर्णय लिया किन्तु
गाँधी कि जिद के कारण
उसे तिरंगा कर दिया गया।
10. कॉंग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष
चन्द्र
बोस को बहुमत से कॉंग्रेस अध्यक्ष चुन
लिया गया किन्तु
गाँधी पट्टभि सीतारमय्या का समर्थन कर
रहा था, अत: सुभाष बाबू ने निरन्तर विरोध व
असहयोग के कारण
पदत्याग कर दिया।
11. लाहोर कॉंग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से
चुनाव
सम्पन्न हुआ किन्तु गाँधी की जिद के कारण
यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया।
12. 14-15 जून, 1947 को दिल्ली में आयोजित
अखिल
भारतीय कॉंग्रेस समिति की बैठक में भारत
विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था,
किन्तु
गाँधी ने वहाँ पहुंच प्रस्ताव का समर्थन करवाया।
यह
भी तब जबकि उन्होंने स्वयं ही यह
कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश पर
होगा।
13. मोहम्मद अली जिन्ना ने गाँधी से
विभाजन के समय हिन्दु मुस्लिम
जनसँख्या की सम्पूर्ण
अदला बदली का आग्रह किया था जिसे
गाँधी ने अस्वीकार कर दिया।
14. जवाहरलाल की अध्यक्षता में
मन्त्रीमण्डल ने सोमनाथ मन्दिर
का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव
पारित किया,
किन्तु गाँधी जो कि मन्त्रीमण्डल के सदस्य
भी नहीं थे ने सोमनाथ मन्दिर पर
सरकारी व्यय के प्रस्ताव को निरस्त करवाया और
13
जनवरी 1948 को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार
पर
दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी खर्चे
से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला।
15. पाकिस्तान से आए विस्थापित हिन्दुओं ने
दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब
अस्थाई शरण ली तो गाँधी ने उन उजड़े
हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध, स्त्रियाँ व बालक अधिक थे
मस्जिदों से से
खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर
किया गया।
16. 22 अक्तूबर 1947 को पाकिस्तान ने काश्मीर
पर
आक्रमण कर दिया, उससे पूर्व माउँटबैटन ने भारत
सरकार से
पाकिस्तान सरकार को 55 करोड़ रुपए
की राशि देने
का परामर्श दिया था। केन्द्रीय मन्त्रीमण्डल
ने आक्रमण के दृष्टिगत यह राशि देने को टालने
का निर्णय
लिया किन्तु गाँधी ने उसी समय यह
राशि तुरन्त दिलवाने के लिए आमरण अनशन किया-
फलस्वरूप यह
राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत
दे
दी गयी।
उपरोक्त परिस्थितियों में नथूराम गोडसे नामक एक
देशभक्त सच्चे
भारतीय युवक ने गाँधी का वध कर दिया।
न्य़यालय में चले अभियोग के परिणामस्वरूप गोडसे
को मृत्युदण्ड
मिला किन्तु गोडसे ने न्यायालय में अपने कृत्य
का जो स्पष्टीकरण दिया उससे प्रभावित होकर
उस
अभियोग के न्यायधीश श्री जे.
डी. खोसला ने अपनी एक पुस्तक में लिखा-
"नथूराम का अभिभाषण दर्शकों के लिए एक
आकर्षक दृश्य था।
खचाखच भरा न्यायालय इतना भावाकुल हुआ
कि लोगों की आहें और सिसकियाँ सुनने में
आती थीं और उनके गीले नेत्र
और गिरने वाले आँसू दृष्टिगोचर होते थे। न्यायालय
में उपस्थित उन
प्रेक्षकों को यदि न्यायदान का कार्य
सौंपा जाता तो मुझे तनिक
भी संदेह नहीं कि उन्होंने अधिकाधिक
सँख्या में यह घोषित किया होता कि नथूराम
निर्दोष है।"
तो भी नथूराम ने भारतीय न्यायव्यवस्था के
अनुसार एक व्यक्ति की हत्या के अपराध का दण्ड
मृत्युदण्ड के रूप में सहज ही स्वीकार
किया। परन्तु भारतमाता के विरुद्ध जो अपराध
गाँधी ने किए,
उनका दण्ड भारतमाता व
उसकी सन्तानों को भुगतना पड़
रहा है। यह स्थिति कब बदलेगी?
प्रश्न यह भी उठता है की पंडित नाथूराम
गोडसे जी ने तो गाँधी वध किया उन्हें पैशाचिक
कानूनों के द्वारा मृत्यु दंड दिया गया परन्तु
नाना जी आप्टे
ने तो गोली नहीं मारी थी ...
उन्हें क्यों मृत्युदंड दिया गया ?
नाथूराम गोडसे को सह अभियुक्त नाना आप्टे के
साथ १५ नवम्बर
१९४९ को पंजाब के अम्बाला की जेल में मृत्यु दंड दे
दिया गया। उन्होंने अपने अंतिम शब्दों में कहा था...
यदि अपने देश के प्रति भक्तिभाव रखना कोई पाप
है तो मैंने वो पाप
किया है और यदि यह पुन्य है तो उसके
द्वारा अर्जित पुन्य पद
पर मैं अपना नम्र अधिकार व्यक्त करता हूँ
– हुतात्मा पंडित नाथूराम गोडसे अमर रहें।
हे आर्यावर्त के वीर सपूतों मैं
मरा नहीं,आप में ही तो हूँ
मैं,पहचानो आप..मेरा शरीर नष्ट हुआ
है,मेरी आत्मा नहीं।
# GreatGodse अमर रहें ...!! अखण्ड भारत जय
आर्यावर्त !!