हर इलाके, हर देश व हर धर्म के अपने खास नियम होते हैं और वे कुछ खास परंपराएं निभाते हैं, जो दूसरों के लिए नाराजगी भरी हो सकती हैं। मगर यूलिन ग्रीष्म संक्रांति त्योहार, जो इस हफ्ते के आखिरी दिनों 21 व 22 जून को मनाया जाने वाला है, एक पारंपरिक त्योहार है जिसमें 10,000 से भी ज्यादा कुत्तों व बिल्लियों को उनके मांस के लिए हर साल काटा जाता है। क्या आपको अफसोस नहीं हुआ। हम एक ऐसे मुल्क में रहते हैं जहां हम खुद भी मुर्गियों, सूअरों, बकरियों को इसी वजह से काटते हैं। इस त्योहार के बारे में ऐसी हैरान कर देने वाली क्या बात है जो आपकी आंखों में आंसू ला दे:
बिल्लियों और कुत्तों को अवैध तौर पर जुटाया जाता है
त्योहार की शुरूआत ज्यादा से ज्यादा मुमकिन कुत्तों व बिल्लियों को इकटठा करने से होती है। ये कुत्ते व बिल्लियां चुराए हुए पालतू जानवर होते हैं या देहाती परिवारों की रखवाली करने वाले कुत्ते होते हैं। ये या तो अवैध तौर पर हासिल किए जाते हैं या गलियों से आवारा के तौर पर उठा लिए जाते हैं। ज्यादातर कुत्ते जो मारे, सताए व खाए जाते हैं वे चुराए हुए होते हैं। बहुत से कुत्ते व पालतू जानवर जिंदा जलाए जाते हैं व अपने मालिकों के द्वारा पहनाए गए पट्टों समेत तले जाते हैं। सैकड़ों पालतू जानवर अपने परिवारों से फिर कभी न मिल सकने के लिए चुरा लिए जाते हैं।
पकाने से पहले उन्हें पीट पीट कर मार डाला जाता है
रात के भोजन की मेज पर सजाने से पहले बिल्लियों व कुत्तों को पीट पीट कर मार डाला जाता है। उन्हें तंग पिंजरों में, ठूंस ठूंस कर रखा जाता है, जिनमें ये मासूम जानवर परेशान हो जाते हैं और दूसरे कुत्ते व बिल्लियों का गला कटते हुए, शरीर कटते हुए, उन्हें जिंदा भुनते हुए व तलते हुए देखने को मजबूर होते हैं। उन्हें जिंदा ही खूंटियों से लटका कर खौलते तेल में डुबोया जाता है और ये सारी भयानक हरकतें गलियों में पूरे जोर शोर से चलती हैं।
इनमें से कुछ कुत्ते बीमार व यहां तक कि रेबीज से संक्रमित भी होते हैं
अब, सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि इनमें से कुछ कुत्ते व बिल्लियां रेबीज संक्रमित होते हैं और उन्हें भी खाने के लिए पकाया जाता है। 2002 से 2006 के बीच यूलिन में रेबीज के 338 मामले दर्ज किए गए थे। इस बीमारी से संक्रमित सभी लोग मर गए थे। बाजार में बिकने वाले कुत्ते बीमार व मरने वाले जानवर होते हैं। एक राज्य से दूसरे राज्य की लंबी दूरी के सफर के दौरान वे कष्टकारी हालातों से गुजरते हैं। चीन में कुत्तों के फार्म नहीं हैं। वहां पर कुत्तों के मांस की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए कोई भी राष्ट्रीय या क्षेत्रीय मानदंड नहीं हैं, क्योंकि वहां पर भोजन के लिए कुत्तों को पाला ही नहीं जाता। परिवहन, मांस की कटाई, व भोजन की तैयारी के दौरान बीमार या दूषित कुत्ते इंसानों में बीमारी फैला सकते हैं।
मगर, यह हरेक कल्चर में होता है। जब जानवर किसी भी वजह से काटे जाते हैं तो हर तरह की मांस कटाई में, हिंसा की एक समान मात्रा होती है। इसलिए, क्या यूलिन त्योहार में होने वाले कुत्तों व बिल्लियों के कत्लेआम पर सवाल उठाना जायज है, क्योंकि हम अपने कल्चर में तो कुत्तें व बिल्लियों को नहीं मारते? नहीं, बिल्कुल नहीं! इसलिए हो सकता है कि जिसे हम अहिंसा कहे वह दूसरे धर्मों व कल्चर में हिंसा हो। किसी भी तौर पर कत्ल तो दर्दनाक ही है।