उज्जवल भविष्य की खातिर आगे की ओर “देखने” की हमारी कठिन लड़ाई में, हम अक्सर वे चीजें नहीं “देखते” जो वाकई में मायने रखती हैं…
यह 50 साल के दिलीप जैन की कहानी है। दिलीप एक अपंग हैं, वह मुश्किल से ही बात कर सकते हैं, मगर वह अक्षम होने से कोसों दूर हैं। एक ऐसे समाज में जहां पर बदकिस्मती भीख मांगने की ओर ले जाती है, दिलीप एक सूटकेस में रोजमर्रा की चीजें रखकर बेचते हैं और अपना गुजारा चलाते हैं। उन्हें आपसे पैसा लेना भी कबूल नहीं है, बशर्ते आप उनसे कोई चीज खरीद न लें और वे आपके बकाया की आखिरी कौड़ी तक आपको वापस कर देंगे, जो भले ही आप उनको “बख्शीश” के तौर पर देना चाहते हों।
मैं उनके पास से पूरे एक साल तक खुद को यह समझाते हुए गुजरता रहा, “कल; आज मुझे काम पर पहुंचने में देर हो गई है, मैं यकीनन कल इनसे कुछ न कुछ जरूर खरीद लूंगा” मगर वो कल कभी नहीं आया। फिर एक बोझिल दिन, जब मैं अपने काम की बची हुई जिम्मेवारियों के बारे में नहीं “सोच” रहा था, मैंने दिलीप को “देखा”, वे भरी गर्मी में एक मुस्कुराहट के साथ जो उनके चेहरे से कभी ओझल नहीं होती थी, किसी को तलाश रहे थे, जो उनका सामान खरीद सके! मैं अब, इससे पहले कभी न रूकने के लिए, बहुत पछता रहा था!
मेरी सबसे पहली चाहत थी कि मैं उनके द्वारा दी जाने वाली हरेक चीज खरीद लूं, मगर इससे उनकी ज़िंदगी का मकसद ही खत्म हो जाता और मुझे यकीन है कि खुद्दार इंसान होने के नाते, जो कि वे हैं, दिलीप, सहजता से इसे नकार देते। इसके बजाए, मैं किसी और मेहनती इंसान की ही तरह, उन्हें, उनकी खुद की ज़िंदगी जीने की लड़ाई, जारी रखने के लिए हिम्मत देना चाहता था। तो यही मेरी आप सब लोगों से भी विनती है:
दिलीप गोरेगांव रेलवे स्टेशन के नए प्लेटफार्म पुल पर हर रोज सुबह से शाम तक बैठते हैं। वे पैन, रूमाल, कंघी, दस्तावेज रखने वाले कवर आदि बेचते हैं। जिनकी कीमत 5 रुपए से लेकर 20 रुपए तक होती है। अगर आप कभी उनके पास से गुजरें, तो कृप्या कोई न कोई चीज खरीदकर उनकी कोशिशों को मजबूती जरूर दें, फिर चाहे भले ही वह थोड़ी महंगी क्यों न हो। मैं आपका इस ओर ध्यान दिलाना चाहता हूं कि दिलीप न सिर्फ खुद के गुजारे के लिए काम करते हैं, बल्कि अपनी बहन को भी संभालते हैं! (उनके लिए हमारी आंखों में सम्मान बस बढ़ता ही जा रहा है)
हमारी दुनिया में लाखों दिलीप जैन हैं, जिन्होंने भीख मांगने की बजाए ज़िंदगी से लड़ना कबूला है। उनकी लड़ाई में हाथ बंटाने के लिए हमारी ओर से दिया गया छोटा सा सहारा, उनकी ज़िंदगी बदल सकता है और हमें एक बेहतर इंसान बना सकता है। मैं बड़ी शिद्दत से आप लोगों से यह उम्मीद करता हूं कि आप अपनी ज़िंदगी के एक या दो पल किसी और की ज़िंदगी बेहतर बनाने में लगाएं, खासतौर से तब जब ऐसे लोग खुद की खातिर इसे बेहतर बनाने के लिए अपना जी जान लगा रहे हों…
उन सभी लोगों के लिए जो गोरेगांव स्टेशन पर रूकें या सफर के दौरान वहां से आएं जाएं, कृपया इस बात को फैलाएं! ताकि दिलीप के चेहरे से मुस्कान कभी गायब न हो!
और इस जज्बे को कायम रखने के लिए व ज़िंदगी के प्रति इतनी खूबसूरत व हिम्मतवर सोच रखने के लिए हम दिलीप जैन को सलाम करते हैं।