सर्प एक ऐसा प्राणी है जो सदियों से मानव मात्र के लिये उत्सुकता व भय का केन्द्र रहा है।जहां एक ओर सर्प बहुत अधिक आर्थिक महत्व के हैं वहीं सर्पदंश से होने वाली मौतों की बड़ी संख्या के चलते आम आदमी के मन में अनजाना सा भय समाया रहता है। सर्प के संबंध में बहुत सी किवदंतियां व अंधविश्वासजुड़े हुए हैं जो वर्षो से सुनाये जा रहे हैं। बरसात के आरंभ से ही सर्पदंश के मामले सामने आते हैं जिसमें से बहुतायत की मृत्यु सही समय पर सही उपचार न होने के कारण हो जाती है क्योंकि सर्प दंश के उपचार के संबंध में अभी भी काफी भ्रामक मान्यताएं है। इसलिए ग्रामीण अंचल में जनता झाड़-फूंक व तंत्र मंत्र पर भरोसा करती है। जबकि सर्प दंश से पीड़ित व्यक्ति को जितनी जल्दी अस्पताल पहुंचाया जाय उसके स्वस्थ होने की संभावना उतनी अधिक रहती है जबकि झाड़ फूंक, मंत्र के फेर में जितनी देर की जायेगी, मरीज की हालत उतनी खराब होती जाती है।
सर्पदंश के आंकड़े:
भारत में प्रतिवर्ष करीब 2 लाख सर्प दंश के मामले सामने आते हैं। सर्पदंश के प्रकरण ग्रामीण अंचल, खेतों, बाड़ियाँ, जगल में अपेक्षाकृत अधिक होते है। शहरी क्षेत्रों मे सर्प बहुत कम मिलते है इसलिए सर्पदंश के मामले भी कम होते है। सर्पदंश के मामलों में ६६ प्रतिशत पुरूष व ३४ प्रतिशत महिलाएं दंशित होते है, क्योंकि पुरुष बाहर काम पर जाते हैं व शिकार बन जाते है। सर्पदंश के मामलों के अध्ययन में यह भी पाया गया है शरीर के खुले हिस्से में दंश अधिकांश होता है। 73 प्रतिशत मामलों में पैरों मे, 25 प्रतिशत हाथ व 2 प्रतिशत सिर में दंश होता है। ग्रामीण क्षेत्रों में जहां लोग जमीन पर सोते हैं उन स्थानों में सर्पदंश के मामले ज्यादा होते हैं खाट में सोने से सर्प दंश से लोग बच सकते है। हालांकि कभी कभी कुछ सांप खाट पर भी चढ़ जाते हैं ..
सांपों से खिलवाड़:
नागपंचमी के दूसरे दिन कुछ समाचार पत्रों में प्रकाशित एक खबर अंचल में जनचर्चा का विषय बनी, व समाचार चैनल में भी लगातार दिखायी जाती रही। बात यह थी कि रायपुर के एक मोहल्ले में एक युवक ने सर्प का जहर पीने का प्रदर्शन सार्वजनिक रूप से किया। उस युवक ने सर्प के मुँह से निकलने वाले द्रव को मुख खोलकर निगल लिया इस दृश्य को अनेक लोगों ने देखा। सर्प का विष पीने वाले युवक के इस हैरत अंगेज कारनामे की चर्चा फैलने लगी। लोगों में आश्चर्य इस बात को लेकर रहा कि सांप का जहर पीने के बाद भी युवक पर जहर का असर क्यों नहीं हुआ। जब उस युवक से पूछा गया तब उसने बताया यह कला उसने अपने गुरू से सीखी है व साधना का परिणाम है।
इस घटना के कुछ समय पहले ही भिलाई से खबर आयी कि वहां एक सांप पकड़ने वाले युवक मोहन को सांप पकड़ने के लिए बुलवाया गया था उसने सांप पकड़ने के बाद उससे खिलवाड़ करते हुए, अपने गले में लिपटा कर घूमता रहा। कुछ देर के बाद उसने सांप के मुँह को दबाते हुए उसके मुँह को अपने मुँह में डालकर चूस लिया। ऐसा उसने दो बार किया जब तीसरी बार मोहन ने सांप के मुँह को दबाते हुए मुँह में डाला तो सर्प फिसल गया व उसके मुँह में ही अपने विषदंत गड़ा लिये। दंश का अहसास होते ही मोहन ने सांप को वापस छोड़ दिया। तब तक सांप का जहर मोहन के शरीर में फैलने लगा, आधे घंटे के भीतर वह गिर पड़ा। उसके गुरू ने आकर उसकी झाड़ फूंक भी की पर कुछ देर बाद मोहन की मृत्यु हो गई। इन दोनों मामलों को लेकर लोगों में उत्सुकता बढ़ गई थी कि एक व्यक्ति जो सांप का जहर स्वयं पी रहा है व उसे कुछ नहीं हुआ, वह स्वस्थ है वहीं दूसरा व्यक्ति जो सपेरा है, सांप पकड़ने की कला जानता है, सांप का मुँह चूसने के प्रयास में एक ही दंश में मारा गया। दूसरे दिन भी ये दोनों घटनाएं चर्चामें रही। शाम को एक न्यूज चैनल ने मुझसे इन घटनाओं पर मत मांगा।
सर्प विष कैसे काम करता है?
सर्प का विष पीने से मृत्यु नहीं होने व सर्प दंश से मृत्यु हो जाने के पीछे निहित वैज्ञानिक कारणों को समझाते हुए मैंने कहा, सर्प के शरीर में विष उसके शरीर में पाये जाने वाली विष ग्रंथि में होता है। जो विषदंत से जुड़ी होती है, जिस प्रकार हमारे शरीर में लार ग्रंथि होती है उसी प्रकार सर्प के शरीर में भी लार ग्रंथि होती है जो विष ग्रंथि के रूप में परिवर्तित हो जाती है। सर्प के शरीर में बनने वाला विष उसकी विष ग्रंथि में बनने वाला द्रव है जो सर्प के द्वारा खाये गये पदार्थो से बनता है इसलिए वह एक प्रकार का जैविक प्रोटीन ही होता है। यदि कोई व्यक्ति इस विष(प्रोटीन) को मुख से ग्रहण करता है तो वह विष उसके आमाशय में चला जाता है तथा हमारे शरीर के अमाशय में मौजूद अम्ल व पाचक एन्जाइम उस प्रोटीन को पचा ले जाते है तथा वह आहार नाल से धीरे-धीरे शरीर से बाहर हो जाता है तथा रक्त में नहीं घुल पाने के कारण विष शरीर पर प्रभाव नहीं डाल पाता है।
पर यदि सर्प का यही विष, किसी मनुष्य या अन्य प्राणी के शरीर में विषदन्त द्वारा पहुंच जाता है तब तो वह प्राणघातक हो जाता है! विष खून में मिलकर मांस पेशियों, तंत्रिका तंत्र, रक्त संचरण, हृदय पर, श्वसनतंत्र पर अपना प्रभाव डालता है क्योंकि खून में ऐसे पाचक एन्जाइम व अम्ल नहीं होते जो विष के प्रोटीन को पचा सके। मैंनें कहा, इसीलिए सर्प विष की प्रतिरोधक दवा एन्टी स्नेक वेनम भी नस के जरिये खून में पहुंचा दी जाती है। यदि एन्टी स्नेक वेनम को टेबलेट या सिरप के रूप में बनाया जावेगा तो वह भी प्रभावी नहीं होगा, वह पेट में पहुंचकर प्रभावहीन हो जाएगा। जबकि इंजेक्शन के रूप में लगाने पर वह सर्प विष के प्रभाव को खत्म करती है।
कभी सर्प विष को मुख से निगलने का कोई प्रदर्शन कर रहा हो उसे यह ध्यान रखना चाहिए उस व्यक्ति के मुँह में जीभ में व पेट में छाले या अल्सर न हो अन्यथा छाले के कारण विष अवशोषित होकर रक्त में मिल जाएगा जिससे विष पान का प्रदर्शन करने वाले व्यक्ति की जान खतरे में पड़ सकती है। सर्प विष को मुँह में जाने से कोई प्रभाव नहीं पड़ता यह बात पहले भी लोगों को मालूम थी इसलिए पहले भी सर्प दंश होने पर प्राथमिक चिकित्सा के लिए उस दंशित स्थान को मुँह से चूस-चूस कर जहर खींचने की व थूंकने की विधि उपयोग में लायी जाती रही। सर्प दंश से पीड़ित व्यक्ति के दंशित स्थान को मुँह से चूस-चूसकर विष हटाने का काम कुछ अंचलों में अभी भी होता है। क्योंकि उन्हें मालूम रहता है कि मुँह में यदि छाले नहीं है तो जहर का असर नहीं होगा।
सांपों से संबंधित कपोल कल्पनाएं:
सर्प के संबंध में अभी बहुत सी काल्पनिक मान्यताएं हैं जैसे कुछ लोग इच्छाधारी सर्प का अस्तित्व मानते हैं जबकि प्राणीशात्रियों ने ऐसी किसी बात से इंकार किया है। कोई भी प्राणी सर्प से मनुष्य, मनुष्य से सर्प या अन्य किसी भी प्राणी में इच्छानुसार नहीं बदल सकता है। यह धारणा एक अंधविश्वास ही है कि सांप युवती में बदल गया या युवक में बदल गया। सांप के मंत्र पढ़कर बुलाने, बीन बजाकर दूर से बुलाने की बात भी उसी प्रकार अवैज्ञानिक है क्योंकि वैज्ञानिकों के अनुसार सर्प के कान व श्रवणेन्द्रियां नहीं होती है। वह मंत्र, बीन की आवाज नहीं सुन सकता। वह कंपन, स्पर्श के प्रति संवेदनशील होता है, इसलिए सपेरा उसे बीन सुनाने के पहले झपकी मार कर, हिलाकर उसे बाहर निकालता है तथा बीन के घुमाने से सांप प्रतिरक्षात्मक व्यवहार में सिर हिलाता है।
सर्पदंश और झाड़फूंक:
सर्पदंश के मामलों में कुछ बैगा-ओझा, मृत व्यक्ति को तंत्र मंत्र के सहारे पुर्नजीवित करने के प्रयास के मामले भी राजनांदगांव, बिलासपुर, तिल्दासहित अनेक स्थानों से आये जिसमें लाश जगाने के लिए बैगा ने तंत्र-मंत्र से पुर्नजीवित करने असफल प्रयास किया। भिलाई में सर्पदंश से पीड़ित मोहन को उसके गुरू ने झाड़ फूंक से ठीक करने का प्रयास किया, भोपाल में सर्प का खेल दिखाने वाली इमराना सहित सैकड़ों व्यक्ति समय पर उचित इलाज न मिलने से दंश के कारण मौत के मुँह में चले गये। विष के प्रभाव से यदि तंत्रिकातंत्र, मांसपेशियां, हृदय श्वसन की गतिविधियां रूक जाएं, तो कोई भी तंत्र-मंत्र या अंधविश्वास मृतक के प्राण वापस नहीं ला सकता इसलिए समय रहते उचित चिकित्सा करवाना ही सर्प दंश का एकमात्र उपचार है। बचते वे हैं जिन्हें विषहीन सर्प जैसे धामिन आदि काटते हैं .
(लेखक डा. दिनेश मिश्र छत्तीसगढ़ के जाने माने नेत्र विशेषज्ञ हैं और अंधविश्वास के खिलाफ लम्बे समय से अलख जगा रहे हैं।)