Image Source
भारत में स्त्री-पुरुषों के संबंधों में जितना बदलाव पिछले दस सालों में आया है उतना शायद पिछले तीन हज़ार सालों में भी नहीं हुआ है. सेक्स अब रज़ाइयों के दायरे से निकल कर बैठकों की दहलीज़ को छू रहा है.
संबंधों का पुराना फ़ार्मूला था पहले शादी, फिर सेक्स और उसके बाद प्यार. नए फ़ार्मूले में सबसे पहले सेक्स आता है, फिर प्यार और सबसे बाद में शादी.
×Also on the web
100 Most Epic Cosplay Of 2013
Ads By PicRecकोलंबिया विश्वविद्यालय से एमबीए कर चुकी इरा त्रिवेदी अपनी किताब “इंडिया इन लव मैरिज एंड सेक्सुअलिटी इन ट्वेंटिएथ सेंचुरी”, में कहती हैं कि भारत एक बड़ी सामाजिक क्रांति की दहलीज़ पर बैठा हुआ है. अरेंज्ड शादियाँ कम हो रही हैं, तलाक की दर बढ़ रही रही है, सेक्स और संबंधों के नए प्रतिमानों की न सिर्फ़ खोज हो रही है बल्कि उन पर रोज़ नए-नए परीक्षण भी हो रहे हैं.
इरा का मानना है कि इसके पीछे कई कारण हैं. वे कहती हैं, “सबसे बड़ा कारण आर्थिक है. भारत में जो आर्थिक उदारवाद और उपभोक्तावाद आया है यह तो उसके पीछे है ही. साथ ही सेक्सुलिटी और विवाह से संबंधित कई कानूनों में भी बदलाव हुए हैं. बाहर के भी प्रभाव पड़े हैं…चाहे वो इंटरनेट हो…या एम टीवी हो. भारत का बहुत तेज़ी से वैश्वीकरण हो रहा है. भारत में जो विदेशी कंपनियां आ रही हैं, वे न सिर्फ़ नौकरियाँ ला रही हैं बल्कि बहुत सारे सांस्कृतिक बदलाव भी ला रही हैं.”
प्रीमैरिटल सेक्स कोई नई चीज़ नहीं
डॉक्टर संजय श्रीवास्तव इंस्टीट्यूट ऑफ़ इकॉनॉमिक ग्रोथ में समाजशास्त्र विभाग के प्रमुख हैं जिन्होंने भारतीय सेक्सुअलिटी पर ख़ासा काम किया है.
उन्होंने बताया, “पहले की फ़िल्मों के बारे में अगर आप सोचें तो पहले हीरो की एक गर्लफ़्रेंड हुआ करती थी, जो उसकी पत्नी नहीं बन सकती थी, क्योंकि पत्नी की छवि एक सती सावित्री जैसी होती थी. अब वह स्थिति नहीं है. कम से कम शहरी इलाकों में अगर लड़की शादी से पहले ब्वॉय फ़्रेंड के साथ रहती है तो उसे ज़िंदगी भर के लिए कलंक नहीं माना जाता. फ़िल्मों में भी अब वैंप का रोल एक तरह से ख़त्म हो गया है क्योंकि जो काम वो पहले किया करती थी वह अब पत्नी करने लगी है… जैसे रेस्तराँ जाना, डांस करना, शराब पीना, सिगरेट पीना… वगैरह-वगैरह.”
एक अध्ययन के अनुसार भारत में विवाह पूर्व यौन संबंधों में ज़बरदस्त उछाल देखने में आ रहा है. शैफाली संध्या, “लव विल फ़ॉलो: वाई द इंडियन मैरिज इज़ बर्निंग” में लिखती हैं कि एक अनुमान के मुताबिक शहरी भारत में 18 से 24 वर्ष के एज ब्रैकेट में 75 फ़ीसदी लोगों ने शादी से पूर्व सेक्स का अनुभव किया है.
Image Source
भारत के जानेमाने सेक्सोलॉजिस्ट डॉक्टर प्रकाश कोठारी का भी मानना है, “विवाह से पूर्व सेक्स कोई नई बात नहीं है. प्राचीन भारत में भी इसके उदाहरण मिलते हैं. मैंने मुंबई में केईएम अस्पताल में सेक्सुअल मेडिसिन विभाग स्थापित किया था. अब तक मैं पचास हज़ार से ज़्यादा मरीज़ देख चुका हूँ और अपने अनुभव के आधार पर कह सकता हूँ कि प्रीमैरिटल सेक्स शहरी भारत के साथ-साथ ग्रामीण भारत में भी है. शहरी भारत में शायद थोड़ा ज़्यादा है.”
वे कहते हैं, “एक ज़माना था कि लोग समझते थे कि मोहब्बत की आखिरी मंज़िल हमबिस्तरी हो सकती है और हमबिस्तरी की आख़िरी मंज़िल मोहब्बत होना ज़रूरी नहीं है. अब इस विचार में काफ़ी बदलाव आ चुका है…यानि मोहब्बत कम और उससे आगे की चीज़ ज़्यादा…”
पोर्न देखने में भी भारतीय पीछे नहीं
गूगल के एक सर्वेक्षण के अनुसार ऑनलाइन पोर्नोग्राफ़ी देखने में भारत का स्थान दुनिया में छठा है. इंडिया टुडे के सेक्स सर्वे के अनुसार अहमदाबाद में जबसे ज़्यादा 78 फ़ीसदी लोग (महिला और पुरुष दोनों) ऑनलाइन पोर्न देखते हैं.
कुछ साल पहले भारत में एक कॉमिक सीरीज़ सविता भाभी काफ़ी लोकप्रिय हुई थी जिस पर बाद में भारत सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया था. इरा त्रिवेदी का मानना है कि सविता भाभी की सफलता का मूल कारण था कॉमिक का लोकल फ़्लेवर होना जिससे लोग अपने आप को रिलेट कर पाते थे.
Image Source
वह कहती हैं, “जो सविता भाभी थीं वो गुजराती हाउसवाइफ़ थीं. छोटे शहर में रहती थीं. अपने पति, सास-ससुर और रिश्तेदारों का ख़्याल रखती थीं लेकिन उनकी ज़बर्दस्त सेक्स ड्राइव भी थी. उनके अलग-अलग यौन संबंध होते थे आसपास के लोगों के साथ…किराने वाले के साथ, ब्रा बेचने वाले के साथ…घर आने वाले मेहमानों के साथ…उनका एक पति भी है जो बहुत बोरिंग हैं…हर समय काम करता रहता है. दूसरी तरफ सविता भाभी में काफ़ी सेक्सुअल लिबीडो है.”
इरा कहती हैं कि इस कॉमिक सीरीज़ को देखकर कुछ लोग फ़ेंटेसाइज़ ज़रूर करते होंगे लेकिन वास्तव में ये सीरीज़ अधिकतर भारतीयों के सेक्स के प्रति उनके संकोची और असहज दृष्टिकोण का मज़ाक उड़ाती है.
देह व्यापार
समाजशास्त्री केके मुखर्जी और सुतापा मुखर्जी ने 10,000 यौनकर्मियों के बीच किए गए सर्वेक्षण में पाया कि भारत में यौनकर्मियों की संख्या तीस लाख से बढ़कर पचास लाख हो गई है और ये आंकड़े 2006 के हैं.
भारत में वेश्यावृत्ति का पुराना इतिहास रहा है. वीना ओल्डेनबर्ग अपनी किताब ‘लाइफ़स्टाइल ऐज़ रेज़िज़टेंस : द केस ऑफ़ कोर्टिज़ांस इन लखनऊ’ में लिखती हैं, “1857 के ग़दर में हर चार में से एक ब्रिटिश सैनिक गुप्त रोग से पीड़ित था और इस दौरान लड़ाई से ज़्यादा सैनिक गुप्त रोगों से मरे थे.”
Image Source
इमिग्रेशन अधिकारियों का आकलन है कि हर साल मध्य एशियाई देशों से भारत के लिए जारी किए गए 50,000 वीज़ा में से कम से कम 5000 वीज़ा का संबंध देह व्यापार से होता है.
साल 2011 में जब भारत सरकार ने इन देशों में अपने दूतावासों को दिशा-निर्देश जारी किए कि इस देश से वीज़ा का आवेदन करने वाली 15 से 40 वर्ष का महिलाओं को वीज़ा देते समय बहुत सावधानी बरती जाए, तो कीव में टॉपलेस महिलाओं ने भारतीय दूतावास के सामने बाक़ायदा प्रदर्शन किया.
‘अच्छी’ लड़की बनाम ‘बुरी’ लड़की
भारत में आमतौर से लड़कियों के बारे में धारणा है कि वे या तो ‘अच्छी’ होती हैं या ‘बुरी’. कहा जाता है कि ‘अच्छी’ लड़कियाँ ‘सेक्सुअली फ़ोर्थकमिंग’ या सक्रिय नहीं होतीं. इरा त्रिवेदी कहती हैं कि भारतीय पुरुष इन तथाकथित ‘बुरी’ लड़कियों से सेक्स संबंध तो बनाना चाहता है लेकिन जब शादी की बात आती है तो वह तथाकथित ‘अच्छी’ लड़कियों को ही चुनता है.
डॉक्टर संजय श्रीवास्तव का कहना है कि लोग चाहते हैं कि उनकी पत्नियाँ काम करने वाली भी हों. वह इतना कमाएं कि घर में फ़्रिज हो, गाड़ी हो, एयरकंडीशनर हो… लेकिन वो इतना भी न कमाएं कि बिल्कुल स्वतंत्र हो जाए…या पति से ज़्यादा ही कुछ बन जाएं. भारतीय लोगों को सबसे ज़्यादा वह शादियाँ पसंद हैं जो लव कम अरेंज्ड मैरिज हों. वो घबराते भी हैं कि उन्हें ऐसी पत्नी न मिल जाए जो उन पर हावी हो जाए.
Image Source
महिला-पुरुष संबंधों में आ रहे बदलाव के बावजूद कुछ चीज़ें ऐसी हैं जिन्हें कोई नहीं बदल सकता. इस विषय पर डॉक्टर प्रकाश कोठारी की राय सबसे अलग है. कोठारी कहते हैं, “मर्द प्यार देता है सेक्स पाने के लिए जबकि औरत सेक्स देती है प्यार पाने के लिए.”
डॉक्टर प्रकाश कोठारी कहते हैं, “सेक्स के मामले में भारतीय बहुत भोले हैं. उनकी दिक्कत है कि वे अंधविश्वासों को बहुत तवज्जो देते हैं और सेक्स करते समय बहुत बड़ा मानसिक बोझ लेकर जाते हैं. उनकी सेक्स समस्याएं दो कानों के बीच की हैं न कि दो पैरों के बीच की!”
भारतीय पुरुष अपने शयन कक्ष में कई प्रयोग कर रहा है. डॉक्टर संजय श्रीवास्तव कहते हैं, “वह प्रयोग ज़रूर कर रहा है लेकिन उसे यह डर भी है कि कहीं उसकी पत्नी को इसमें आनंद न आने लगे. अगर ऐसा है तो क्या सचमुच वह ऐसी महिला है जिसे मेरी पत्नी होना चाहिए. उसे आनंद भी चाहिए लेकिन उसे इस बात से परेशानी भी है कि इस चक्कर में उसकी मर्द होने की हैसियत कहीं कम न हो जाए. उसे इस बात की भी आशंका है कि उसकी पत्नी कहीं ऐसी औरत न निकल जाए जिसे उसकी गर्लफ़्रेंड होना चाहिए था.”
शादी के विज्ञापनों की भाषा
Image Source
जहाँ तक शादी की बात है, ताज़ा ट्रेंड जानने हों तो शादी के लिए दिए जाने वाले विज्ञापनों को देखिए. इनके गढ़ने का अंदाज़ और इनकी शब्दावली अलग से एक शोध का विषय हो सकता है.
इरा त्रिवेदी ने कई मैरिज ब्रोकरों को बहुत नज़दीक से काम करते देखा है. वह कहती हैं, “शादी के विज्ञापनों में एक अजीब तरह का विरोधाभास दिखाई देता है. लोग कंज़रवेटिव के साथ-साथ आधुनिक लड़की की मांग करते हैं. अकेले पुत्र होने का मतलब होता है, संपत्ति का उत्तराधिकारी होना. लोग ब्रोकरों से शादी के बारे में इस तरह बात करते हैं जैसे वो कार खरीदने जा रहे हों. पहले जाति पर आधारित बहुत विज्ञापन आते थे लेकिन अब डॉक्टर इंजीनियर और एमबीए जैसे प्रोफ़ेशन भी एक तरह की जाति हो गई है.”
लिव-इन संबंध
तमाम बदलावों के बावजूद अविवाहित जोड़ों का साथ रहना अभी भी आम बात नहीं हो पाया है. साल 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फ़ैसले में लिव-इन संबंधों को वैध घोषित किया था. अदालत का कहना था कि अगर दो विपरीत सेक्स के लोग बिना विवाह किए एक छत के नीचे रहना चाहें तो यह अपराध नहीं है.
Image Source
लेकिन अभी भी इस चलन को भारतीय अभिभावकों की मान्यता नहीं मिली है. यह सही है कि लोग अपने संबंधों में कई प्रयोग कर रहे हैं.
एक अंग्रेज़ी पत्रिका द्वारा कराए गए सर्वेक्षण में कहा गया है कि 94 फ़ीसदी भारतीय अपने संबंधों से “ख़ुश” ज़रूर हैं, लेकिन इनमें से अधिकतर लोगों का कहना है कि अगर उन्हें दोबारा विकल्प दिया गया तो वह उसी व्यक्ति से शादी करना या किसी से भी शादी करना पसंद नहीं करेंगे.
कहना शायद ग़लत नहीं होगा कि मध्यम वर्ग की सोच में हो रहे बदलाव के कारण पुरुष-महिला संबंधों के नए प्रतिमान गढ़े जा रहे हैं.
by Sumit Kumar - jindgi plus