लेखक: भारत डोगरा
जीएम (जेनेटिकली मॉडिफाइड) फसलों के विरोध का एक मुख्य आधार यह रहा है कि यह स्वास्थ्य व पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित नहीं हैं तथा यह असर सेजेटिक प्रदूषण के माध्यम से अन्य सामान्य फसलों व पौधों में फैल सकता है। इस विचार को इंडिपेंडेंट साइंस पैनल नेबहुत सारगर्भित ढंग से व्यक्त किया है। इस पैनल में एकत्र हुए विश्व के अनेक देशों के प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों व विशेषज्ञों ने जीएम फसलों पर एक महत्वपूर्ण दस्तावेज तैयार किया, जिसके निष्कर्ष में उन्होंने कहा है- जीएम फसलों के बारे में जिन लाभों का वायदा किया गया था, वे प्राप्त नहीं हुए हैं व ये फसलें खेतों मेंबढ़ती समस्याएँ उपस्थित कर रही हैं। अब इस बारे में व्यापक सहमति है कि इन फसलों का प्रसार होने पर ट्रांसजेनिक प्रदूषण से बचा नहीं जा सकता है। अत: जीएम फसलों व गैर जीम फसलों का सह अस्तित्व नहीं हो सकता है।
सबसे महत्वपूर्ण यह है कि जीएम फसलों व गैर जीएम फसलों की सुरक्षा या सेफ्टी प्रमाणित नहीं हो सकी है। इसके विपरीत पर्याप्त प्रमाण प्राप्त हो चुके हैं, जिनसे इन फसलों की सुरक्षा सम्बंधी गंभीर चिंताएं उत्पन्न होती हैं। यदि इनकी उपेक्षा की गयी तो स्वास्थ्य व पर्यावरण की क्षति होगी, जिसकी पूर्ति नहीं हो सकती है।
इन फसलों से जुड़े खतरे का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष कई वैज्ञानिकों ने यह बताया है कि जो खतरे पर्यावरण में फैलेंगे, उनपर हमारा नियंत्रण नहीं रह जाएगा व दुष्परिणाम सामने आने पर भी हम इनकी क्षतिपूर्ति नहीं कर पाएँगे। जानी-मानी बायोकेमिस्ट व पोषण विशेषज्ञ प्रोफेसर सूसर बारडोक्ज ने कहा है- अब तक की सब तकनीकें ऐसी थीं, जो नियंत्रित हो सकती थीं। पर मानव इतिहास में जीएम पहली तकनीक है, जिससे खतरा उत्पन्न हो गया, तो इस क्षति को रोका नहीं जा सकता है। इसके मनुष्व व अन्य जीवों के स्वास्थ्य पर गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
यह ध्यान में रखना बहुत जरूरी है कि जीएम फसलों का थोडा-बहुत प्रसार व परीक्षण भी घातक हो सकता है। सवाल यह नहीं है कि उन फसलों को थोड़ा-बहुत उगाने से उत्पादकता बढ़ने के नतीजे मिलेंगे या नहीं, मूल मुद्दा यह है कि इनसे जो सामान्य फसलें हैं, वो भी कान्टेमिनेट हो सकती हैं।
निष्ठावान वैज्ञानिकों के अथक प्रयासों से जीएम फसलों के गंभीर खतरों को बताने वाले दर्जनों अध्ययन उपलब्ध हैं। जैफरी एम. स्मिथ की पुस्तक ‘जेनेटिक रूलेट’ के 300 से अधिक पृष्ठों में ऐसे दर्जनों अध्ययनों का सार-संक्षेप या परिचय उपलब्ध है। इनमें चूहों पर हुए अनुसंधानों में पेट, लीवर औ आँत जैसे विभिन्न महत्वपूर्ण अंगों के बुरी तरह से क्षतिग्रस्त होने की चर्चा है साथ ही जेनेटिक उत्पादों से मनुष्यों में भी गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का भी वर्णन है।
भारत में जीएम फसलों के विस्तृत अध्ययनों से जुड़े रहे पीवी सतीश ने हाल ही में लिखा है कि आंध्र प्रदेश में उनके अध्ययनों से बीटी कॉटन की विभिन्न स्तरों पर विफलता की जानकारी मिली व सैकड़ों भेड़ें बीटी कॉटन खेतों में चरने के बाद मर गईं। पर वर्ष 2006 में बीच का केन्द्रीकरण कर ऐसी स्थिति उत्पन्न की गयी, जिसमें ऐसा संकरित बीज बाजार में मिलना कठिन हो गया, जो जीएम मुक्त हो।(साभार: जनसंदेश टाइम्स)