भगवान शिव के 10 रुद्रावतार ( Bhagwan Shivji ke 10 Rudra Avtar)
ब्रह्मा, विष्णु और शिव में विष्णु और शिव के दर्जनों अवतारों के बारे में पुराणों में मिलता है। विष्णु के 24 अवतार हैं तो शिव के 28 अवतार। लेकिन उनमें भी जो
प्रमुख है उसी की चर्चा की जाती है। जैसे विष्णु के 10 अवतार और शिव के 10 अवतार।
हनुमान, अश्वत्थामा, दुर्वासा, पिप्पलाद, वृषभ (जैन धर्म के पहले तीर्थंकर) आदि सभी भी शिव के अवतार हैं, लेकिन यहां प्रस्तुत है शिव के दस रुद्रावतार के बारे में जानकारी।
वेदों में शिव का नाम ‘रुद्र’ रूप में आया है। रुद्र का अर्थ होता है भयानक। रुद्र संहार के देवता और कल्याणकारी हैं। विद्वानों के मत से उक्त शिव के सभी प्रमुख अवतार
व्यक्ति को सुख, समृद्धि, भोग, मोक्ष प्रदान करने वाले एवं व्यक्ति की रक्षा करने वाले हैं।
1. महाकाल- शिव के दस प्रमुख अवतारों में पहला अवतार महाकाल को माना जाता है। इस अवतार की शक्ति मां महाकाली मानी जाती हैं। उज्जैन में महाकाल नाम से
ज्योतिर्लिंग विख्यात है।
उज्जैन में ही गढ़कालिका क्षेत्र में मां कालिका का प्राचीन मंदिर है और महाकाली का मंदिर गुजरात के पावागढ़ में है।
2. तारा- शिव के रुद्रावतार में दूसरा अवतार तार (तारा) नाम से प्रसिद्ध है। इस अवतार की शक्ति तारादेवी मानी जाती हैं।
पश्चिम बंगाल के वीरभूम में स्थित द्वारका नदी के पास महाश्मशान में स्थित है तारा पीठ। पूर्वी रेलवे के रामपुर हॉल्ट स्टेशन से 4 मील दूरी पर स्थित है यह पीठ।
3.बाल भुवनेश- देवों के देव महादेव का तीसरा रुद्रावतार है बाल भुवनेश। इस अवतार की शक्ति को बाला भुवनेशी माना गया है।
दस महाविद्या में से एक माता भुवनेश्वरी का शक्तिपीठ उत्तराखंड में है। उत्तरवाहिनी नारद गंगा की सुरम्य घाटी पर यह प्राचीनतम आदि शक्ति मां भुवनेश्वरी का
मंदिर पौड़ी गढ़वाल में कोटद्वार सतपुली-बांघाट मोटर मार्ग पर सतपुली से लगभग 13 किलोमीटर की दूरी पर ग्राम विलखेत व दैसण के मध्य नारद गंगा के तट पर
मणिद्वीप (सांगुड़ा) में स्थित है।
इस पावन सरिता का संगम गंगाजी से व्यासचट्टी में होता है, जहां भगवान वेदव्यासजी ने श्रुति एवं स्मृतियों को वेद पुराणों के रूप में लिपिबद्ध किया था।
4. षोडश श्रीविद्येश- भगवान शंकर का चौथा अवतार है षोडश श्रीविद्येश। इस अवतार की शक्ति को देवी षोडशी श्रीविद्या माना जाता है। ‘दस महा-विद्याओं’ में तीसरी
महा-विद्या भगवती षोडशी है, अतः इन्हें तृतीया भी कहते हैं।
भारतीय राज्य त्रिपुरा के उदरपुर के निकट राधाकिशोरपुर गांव के माताबाढ़ी पर्वत शिखर पर माता का दायाँ पैर गिरा था। इसकी शक्ति है त्रिपुर सुंदरी और भैरव को
त्रिपुरेश कहते हैं।
5. भैरव- शिव के पांचवें रुद्रावतार सबसे प्रसिद्ध माने गए हैं जिन्हें भैरव कहा जाता है। इस अवतार की शक्ति भैरवी गिरिजा मानी जाती हैं।
उज्जैन के शिप्रा नदी तट स्थित भैरव पर्वत पर मां भैरवी का शक्तिपीठ माना गया है, जहां उनके ओष्ठ गिरे थे। किंतु कुछ विद्वान गुजरात के गिरनार पर्वत के सन्निकट
भैरव पर्वत को वास्तविक शक्तिपीठ मानते हैं। अत: दोनों स्थानों पर शक्तिपीठ की मान्यता है।
6. छिन्नमस्तक- छठा रुद्र अवतार छिन्नमस्तक नाम से प्रसिद्ध है। इस अवतार की शक्ति देवी छिन्नमस्ता मानी जाती हैं। छिनमस्तिका मंदिर प्रख्यात तांत्रिक पीठ है।
दस महाविधाओं में से एक मां छिन्नमस्तिका का विख्यात सिद्धपीठ झारखंड की राजधानी रांची से 75 किमी दूर रामगढ़ में है। मां का प्राचीन मंदिर नष्ट हो गया था अत:
नया मंदिर बनाया गया, किंतु प्राचीन प्रतिमा यहां मौजूद है।
दामोदर-भैरवी नदी के संगम पर स्थित इस पीठ को शक्तिपीठ माना जाता है। ज्ञातव्य है कि दामोदर को शिव व भैरवी को शक्ति माना जाता है।
7. द्यूमवान- शिव के दस प्रमुख रुद्र अवतारों में सातवां अवतार द्यूमवान नाम से विख्यात है। इस अवतार की शक्ति को देवी धूमावती माना जाता हैं।
धूमावती मंदिर मध्यप्रदेश के दतिया जिले में स्थित प्रसिद्ध शक्तिपीठ ‘पीताम्बरा पीठ’ के प्रांगण में स्थित है। पूरे भारत में यह मां धूमावती का एक मात्र मंदिर है जिसकी
मान्यता भी अधिक है।
8. बगलामुख- शिव का आठवां रुद्र अवतार बगलामुख नाम से जाना जाता है। इस अवतार की शक्ति को देवी बगलामुखी माना जाता है।
दस महाविद्याओं में से एक बगलामुखी के तीन प्रसिद्ध शक्तिपीठ हैं- 1. हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में स्थित बगलामुखी मंदिर, 2. मध्यप्रदेश के दतिया जिले में स्थित
बगलामुखी मंदिर और 3. मध्यप्रदेश के शाजापुर में स्थित बगलामुखी मंदिर। इसमें हिमाचल के कांगड़ा को अधिक मान्यता है।
9. मातंग- शिव के दस रुद्रावतारों में नौवां अवतार मातंग है। इस अवतार की शक्ति को देवी मातंगी माना जाता है।
मातंगी देवी अर्थात राजमाता दस महाविद्याओं की एक देवी है। मोहकपुर की मुख्य अधिष्ठाता है। देवी का स्थान झाबुआ के मोढेरा में है।
10. कमल- शिव के दस प्रमुख अवतारों में दसवां अवतार कमल नाम से विख्यात है। इस अवतार की शक्ति को देवी कमला माना जाता है।
शिव के अन्य ग्यारह अवतार- कपाली, पिंगल, भीम, विरुपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, आपिर्बुध्य, शम्भू, चण्ड तथा भव का उल्लेख मिलता है।
अन्य अंशावतार- इन अवतारों के अतिरिक्त शिव के दुर्वासा, हनुमान, महेश, वृषभ, पिप्पलाद, वैश्यानाथ, द्विजेश्वर, हंसरूप, अवधूतेश्वर, भिक्षुवर्य, सुरेश्वर, ब्रह्मचारी,
सुनटनतर्क, द्विज, अश्वत्थामा, किरात और नतेश्वर आदि अवतारों का उल्लेख भी ‘शिव पुराण’ में हुआ है।
शिव के बारह ज्योतिर्लिंग भी अवतारों की ही श्रेणी में आते हैं।
बारह ज्योतिर्लिंग
1. सौराष्ट्र में ‘सोमनाथ’,
2. श्रीशैल में ‘मल्लिकार्जुन’,
3. उज्जयिनी में ‘महाकालेश्वर’,
4. ओंकार में ‘अम्लेश्वर’,
5. हिमालय में ‘केदारनाथ’,
6. डाकिनी में ‘भीमेश्वर’,
7. काशी में ‘विश्वनाथ’,
8. गोमती तट पर ‘त्र्यम्बकेश्वर’,
9. चिताभूमि में ‘वैद्यनाथ’,
10. दारुक वन में ‘नागेश्वर’,
11. सेतुबंध में ‘रामेश्वर’ और
12. शिवालय में ‘घुश्मेश्वर’।