हिन्दू धर्म में ईश्वर की सामान्य परिकल्पना (COMMON CONCEPT OF GOD IN HINDUISM)
अगर किसी सामान्य हिन्दू जन से यह पूछेंगे कि वो कितने भगवान् में विश्वाश रखता है तो कुछ कहेंगे तीन, कुछ कहेंगे हज़ारों और कुछ कहेंगे तैतीस करोड़ (330 million). लेकिन वहीँ अगर यही सवाल किसी पढ़े-लिखे (हिन्दू धर्म के ज्ञाता, धार्मिक रूप से) हिन्दू जन से पूछेंगे तो उसका जवाब होगा; ईश्वर केवल एक ही है, और वह एक ईश्वर में ही विश्वास रखता है.
आईये जाने कि हिन्दू धर्म की प्रमुख धार्मिक पुस्तकें कौन कौन सी हैं और उनमें ईश्वर की परिकल्पना किस प्रकार से करी गयी है. हिन्दू धर्म की वह प्रमुख धार्मिक पुस्तकें हैं जिनमें ईश्वर की परिकल्पना ओ जाना जा सकता है; वेद, उपनिषद, पुराण, भगवद गीता हैं.
उपनिषद (UPANISHAD)
छन्दोग्य-उपनिषद्, अध्याय 6, भाग 2, श्लोक 1:
“एकम् एवाद्वितियम” अर्थात 'वह केवल एक ही है'
श्वेताश्वतारा उपनिषद्, अध्याय 4, श्लोक 9:
"नाकस्या कस्किज जनिता न काधिपः" अर्थात "उसका न कोई माँ-बाप है न ही खुदा".
श्वेताश्वतारा उपनिषद्, अध्याय 4, श्लोक 19:
"न तस्य प्रतिमा अस्ति" अर्थात "उसकी कोई छवि (कोई पिक्चर,कोई फोटो, कोई मूर्ति) नहीं हो सकती".
श्वेताश्वतारा उपनिषद्, अध्याय 4, श्लोक 20:
"न सम्द्रसे तिस्थति रूपम् अस्य, न कक्सुसा पश्यति कस कनैनम" अर्थात "उसे कोई देख नहीं सकता, उसको किसी की भी आँखों से देखा नहीं जा सकता".
भगवद गीता (BHAGWAD GEETA)
भगवद गीता हिन्दू धर्म में सबसे ज्यादा पवित्र और मान्य धार्मिक ग्रन्थ है.
"....जो सांसारिक इच्छाओं के गुलाम हैं उन्होंने अपने लिए ईश्वर के अतिरिक्त झूठे उपास्य बना लिए है..." (भगवद गीता 7:20)
"वो जो मुझे जानते हैं कि मैं ही हूँ, जो अजन्मा हूँ, मैं ही हूँ जिसकी कोई शुरुआत नहीं, और सारे जहाँ का मालिक हूँ." (भगवद गीता 10:3)
यजुर्वेद (YAJURVEDA)
वेद हिन्दू धर्म की सबसे प्राचीन किताबें हैं. ये मुख्यतया चार हैं: ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद.
यजुर्वेद, अध्याय 32, श्लोक 3:
"न तस्य प्रतिमा अस्ति" अर्थात "उसकी कोई छवि (कोई पिक्चर,कोई फोटो, कोई मूर्ति) नहीं हो सकती."
इसी श्लोक में आगे लिखा है; वही है जिसे किसी ने पैदा नहीं किया, और वही पूजा के लायक़ है.
यजुर्वेद, अध्याय 40, श्लोक 8:
"वह शरीर-विहीन है और शुद्ध है"
यजुर्वेद, अध्याय 40, श्लोक 9:
"अन्धात्मा प्रविशन्ति ये अस्संभुती मुपस्ते" अर्थात "वे अन्धकार में हैं और गुनाहगार हैं, जो प्राकृतिक वस्तुओं को पूजते हैं"
*प्राकृतिक वस्तुएं-सूरज, चाँद, ज़मीन, पेड़, जानवर आदि.
आगे लिखा है;
"वे और भी ज्यादा गुनाहगार हैं और अन्धकार में हैं जिन्होंने सांसारिक वस्तुओं को पूजा"
*सांसारिक वस्तुएं- जिन्हें मनुष्य खुद बनता हैं. जैसे टेबल, मेज़, तराशा हुआ पत्थर आदि.
अथर्ववेद, किताब २०, अध्याय 58 श्लोक 3:
"देव महा ओसी" अर्थात "ईश्वर सबसे बड़ा, महान है"
ऋग्वेद (यह सबसे पुराना वेद है) RIGVEDA
ऋग्वेद किताब 1, अध्याय 164 श्लोक 46:
"एकम् सत् विप्र बहुधा वदन्ति" अर्थात विप्र लोग (Sages, learned Priests) मुझे कई नाम से बुलाते हैं."
ऋग्वेद किताब 8 अध्याय 1 श्लोक 1:
"मा चिदंयाद्वी शंसता" अर्थात "किसी की भी पूजा मत करो सिवाह उसके, वही सत्य है और उसकी पूजा एकांत में करो."
ऋग्वेद, किताब 5 अध्याय 81 श्लोक 1:
"वही महान है जिसे सृष्टिकर्ता का गौरव प्राप्त है."
ऋग्वेद, किताब VI, अध्याय 45, श्लोक 16:
"या एका इत्तामुश्तुही" अर्थात "उसी की पूजा करो, क्यूंकि उस जैसा कोई नहीं और वह अकेला है."
वेदान्त का ब्रह्म सूत्र भी पढ़ लीजिये:
"एकम् ब्रह्म, द्वितीय नास्ते, नेह-नये नास्ते, नास्ते किंचन"
"भगवान एक ही है, दूसरा नहीं हैं. नहीं है, नहीं है, ज़रा भी नहीं है."
“There is only one God, not the second, not at all, not at all, not in the least bit"
इस तरह से हम देखते हैं कि उपरलिखित श्लोक आदि ईश्वर के एक होने के बारे में कह रहें हैं.मैं सैकडों और श्लोक यहाँ लिख सकता हूँ जिसमें ईश्वर के एक होने की बात कहीं गयी हैं....
इस तरह से जब हम हिन्दू धर्म की किताबों का गहन अध्ययन करते हैं तो पातें हैं कि सभी किताबोब में ईश्वर एक एक होने की पुष्टि होती है."
-प्रस्तुति: सलीम खान