ईश्वर और ईश्वर के बनाए हुए ब्रह्मांड के नियमों को जानने वाला व्यक्ति ऐसी अनिश्चित बातें नहीं करता क्योंकि ईश्वर के नियम अटूट हैं, निश्चित हैं तो मृत्यु का सत्य भी निश्चित है। मृत्यु नियमों से घटित होती है, मनमर्जी से नहीं
जब से धरती पर मानव जीवन का अवतरण हुआ है तब से मृत्यु अत्यंत रहस्य, भ्रम, अज्ञानता एवं भय का विषय बना हुआ है। बड़े से बड़ा महात्मा हो, वैज्ञानिक हो या डॉक्टर हो-- सब एक सुर से यही कहते हैं कि मृत्यु ईश्वर के हाथ है। उसकी मर्जी है- कब, कहां, किसको उठा ले- इसे कोई नहीं जानता।
तो क्या सचमुच मृत्यु ईश्वर के हाथ है? क्या उसकी कोई मर्जी चलती है? यानी ईश्वर नियम को महत्व नहीं देता। निश्चय ही, हमारे संत-महात्मा, डॉक्टर, वैज्ञानिक आदि ब्रह्मांड के किसी बहुत बड़े अटल नियम से, अब तक भी, इतनी आधुनिक प्रगति और सूचनाओं के बावजूद, अपरिचित हैं तभी ये सभी ऐसी अनिश्चित भाषा का प्रयोग करते हैं कि ईश्वर की मर्जी- ईश्वर जाने।
सच्चाई यह है कि ईश्वर और ईश्वर के बनाए हुए ब्रह्मांड के नियमों को जानने वाला व्यक्ति ऐसी अनिश्चित बातें नहीं करता क्योंकि ईश्वर के नियम अटूट हैं, निश्चित हैं तो मृत्यु का सत्य भी निश्चित है। मृत्यु नियमों से घटित होती है, मनमर्जी से नहीं। सदियों से मानव रोग और प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव में आकर यही मान्यता विकसित कर रहा है कि ऊपर आसमान में कोई शक्ति बैठी है जो अपनी मर्जी से मृत्यु को नियंत्रित करती है। यही मान्यता आज तक प्रचलित है और पक्की बनी हुई है। पूरी धरती पर शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति मिलेगा जो ‘मृत्यु ईश्वर के हाथ में है’ ऐसा नहीं माने।
क्या हमारे दिमाग में कभी इस तरह के प्रश्न पैदा हुए कि क्यों ईश्वर आपको असमय मारना चाहेगा? क्यों किसी भी प्राणी को अपनी संपूर्ण क्षमता, आयु तक वह जीने नहीं देना चाहता? क्या उसे किसी भी प्राणी के संपूर्ण क्षमता में विकसित होने में ऐतराज है और यदि है तो फिर कुछ लोगों पर यह ऐतराज क्यों नहीं है? क्या वह भेदभाव करता है? क्या विशेष लोगों को चुनता है? क्यों वह एक तरफ जीव का पूर्ण निर्माण करता है और पैदा होते ही उसे मार देता है और अगर ईश्वर को मारना ही है तो एक्सीडेंट और प्राकृतिक विपदाओं द्वारा क्यों मारता है? आराम से मौत क्यों नहीं देता? क्या ईश्वर निर्दयी है जो इतनी भी दया नहीं करता कि किसी का पूरा परिवार उजड़ रहा है, जीवन नर्क हो रहा है जबकि उसे तो दया का अवतार कहा जाता है। आइए, कुछ अटल सत्य एवं नियमों को जानें और ईश्वर को दोष देना बंद करें :
प्रकृति में जो भी चीजें पैदा होती हैं उनका प्राकृतिक नियम है। अपनी पूर्ण क्षमता में विकसित होना और निर्धारित आयु के अनुसार क्षय हो जाना, चाहे वह मानव हो, पेड़-पौधे हों, जीव-जंतु हों या खनिज तत्व या फिर ग्रह-तारे हों।
ईश्वर कानून बनाकर हमेशा के लिए सो गया। वह कुछ भी नहीं करता, न वह मारता है, न तारता है। इस संसार में सब कुछ नियम से चल रहा है। यहां नियम काम कर रहे हैं, ईश्वर नहीं। यहां पर हर पल ठीक नियमों के अनुसार फलित होता है।
ईश्वर व्यक्ति नहीं, संपूर्ण ब्रह्मांड की अभिव्यक्ति है। सारा ऐश्वर्य, सारी भगवत्ता, हर अणु जिस ऊर्जा से संचालित है, वही ईश्वर है। चूंकि ईश्वर व्यक्ति नहीं है, इसलिए उसको आपके जीने- मरने, सुख-दुख,गरीबी-अमीरी, रोग-स्वास्थ्य में कोई रुचि नहीं है। स्वास्थ्य, शांति, जीवन शरीर का मूल स्वभाव है। आप अपनी अज्ञानता से दुख, रोग और अशांति अर्जित करते हैं। जाने-अनजाने में चुनाव आपका है।
साभार: राष्ट्रीय सहारा