प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुनियाभर में चिल्ला-चिल्लाकर कह रहे हैं कि मुझे तो छोटे-छोटे काम करने हैं। घर-घर शौचालय बनवाना है। लेकिन हकीकत यह है कि जमीन पर शौचालयों के लिए आ रहा पैसा अधिकारी हजम कर रहे हैं। सतना में जब कलेक्टर ने मुस्तैदी दिखाई तो बड़ा घपला सामने आया। यह स्थिति तो एक जिले की है। बाकी जिले भी अछूते नहीं हैं। तभी हर जिले में सैकड़ों गांवों में शौचालय ही नहीं है। लोग खुले में शौच के लिए मजबूर है। वैसे, इस भ्रष्टाचार में लोग भी पीछे नहीं है। वह भी अपना अंशदान बचाने के लिए कुछ भी करने को तैयार दिखते हैं
गबन की ऐसे खुली पोल
निर्मल भारत अभियान में सतना जिले में करोड़ों के घोटाले की पोल तब खुली जब जिला पंचायत के तत्कालीन मुख्य कार्यपालन अधिकारी (सीईओ) अभिजीत अग्रवाल ने जिले के सभी जनपदों के सीईओ को निर्देश देकर इस आशय के ब्यौरे तलब किए कि निर्मल भारत अभियान (एनबीए) के तहत शौचालय निर्माण में राशि आहरण (व्यय), मूल्यांकन उपियोगिता और कार्यपूर्णता की अपडेट स्थिति क्या है? जब रिपोर्ट सामने आई तो पता चला कि निर्मल भारत मद में केंद्र से आए अनुदान में करोड़ों का गोलमाल हुआ है। मझगवां जनपद की 76 पंचायतों में बगैर काम के 1.66 करोड़ रुपए की राशि निकाल ली गई। जिला पंचायत के सीईओ को कमोबेश सभी जनपद सीईओ की ओर से भेजे गए प्रतिवेदनों में भी इस तथ्य को स्वीकार किया गया है कि निरंतर फोन पर, भ्रमण के दौरान, लिखित-मौखिक और बैठकों में भी सरपंच-सचिवों से अद्यतन रिपोर्ट मांगी गर्इं लेकिन प्रतिवेदन नहीं मिले। ज्यादातर जनपद सीईओ ने भी अपनी रिपोर्ट में माना है कि अनुदान राशि का निजी मद में दुरुपयोग करते हुए ऐसी गंभीर अनियमितताएं की गर्इं जो गबन की श्रेणी में आती हैं।
भ्रष्टाचार की आ गई बाढ़
निर्मल भारत अभियान के तहत केंद्रीय अनुदान के भुगतान के तहत रकम जिला पंचायत द्वारा आरटीजीएस के माध्यम से जनपदों के जरिए सीधे पंचायतों के खाते में भेजी जाती है। पंचायतों के इन बैंक खातों का संचालन साझा तौर पर सरपंच और सचिव करते हैं। सरपंच और सचिवों की साठगांठ के कारण ही जिले में भारी पैमाने पर गफलत हुई। सतना जिले के मझगवां जनपद में निर्मल भारत अभियान के तहत भ्रष्टाचार का मामला सामने के बाद से तो जैसे भ्रष्टाचार की बाढ़ आ गई। एक-एक कर कई जिलों की रिपोर्ट सामने आते ही पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग ने जब प्रदेशभर के पंचायतों की प्रोग्रेस रिपोर्ट का जायजा लिया और उससे मैदानी रिपोर्ट का मिलान किया तो उसमें अरबों रुपए के भ्रष्टाचार का मामला सामने आया है। मुरैना जिले में 2003 में ग्राम पंचायतों के माध्यम से गांव-गांव सर्वे कराकर कुल तीन लाख 76 हजार 398 परिवारों को इस योजना के लिए चुना गया था। इन सभी के लिए 2018 तक शौचालय बनाने का लक्ष्य रखा गया था। आज 12 साल होने को हैं लेकिन अब तक जिले में कुल एक लाख 49 हजार 195 शौचालय ही बन सके हैं। भौतिक सत्यापन में इनमें से कितने काम करते मिलेंगे यह जांच का विषय है। अपने शुरुआती साल से ही यह अभियान कभी अपना लक्ष्य हासिल नहीं कर सका। 2013-14 के जो आंकड़े उपलब्ध हैं उनमें उस साल 122 ग्राम पंचायतों में 35267 शौचालय बनाए जाने थे जिनमें से 22017 को मंजूरी मिली। उनमें से भी पूरे साल में कुल 9672 यानी लगभग 27 फीसदी शौचालय ही बन सके। इस वित्तीय वर्ष के लिए 63437 शौचालय बनाने का लक्ष्य रखा गया लेकिन अब तक कुल 3380 शौचालय बन सके हैं। कागज पर दर्ज आंकड़ों की अपेक्षा शौचालयों की मैदानी स्थिति ज्यादा खराब है। बने हुए शौचालयों में से ज्यादातर अनुपयोगी हैं उनकी दीवारें अधूरी हैं उनसे छत गायब हैं। कमोड मिट्टी में दबा दिया गया है। उसका किसी सैप्टिक टैंक से कनेक्शन ही नहीं है। पानी की कैसी भी कोई सुविधा नहीं है। ऐसे हजारों आधे शौचालय पूरे जिले में मौजूद है। जिनके घर में शौचालय बने हैं उन्होंने अपना 900 रुपए का अंशदान बचा लिया तो बाकी पैसा ठेकेदार, पंच, सरपंच और इस योजना की देखरेख करने वाली एजेंसी जिला पंचायत के अधिकारी-कर्मचारी खा-पी गए। लोग आज भी खुले में शौच कर रहे हैं।
कागजों पर ही बना दिए गए शौचालय
शौचालय बनाने की योजना में कई नामी नेताओं के इलाके में भी गड़बड़झाले हुए हैं। मसलन खुद पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव के इलाके रहली में भी गड़बडिय़ां सामने आई हैं। विभाग ने भी सख्ती बरतना शुरू कर दिया है। पाई-पाई का हिसाब पंचायतों और अन्य अधिकारियों से लिया जा रहा है ताकि भ्रष्टाचार पर लगाम लगाया जा सके। लेकिन मानसिकता को बदलना इतना आसान नहीं है। शौचालयों की स्थिति तो यह है कि पंचायतों के पदाधिकारियों के घर तक में शौचालयों का अभाव है। जनप्रतिनिधि ही खुले में शौच कर रहे हैं।
इसी तरह रहली में भी निर्मल भारत अभियान में भ्रष्टाचार सामने आया है। शासन की इस महत्वपूर्ण योजना को निर्माण एजेंसी द्वारा जमकर चूना लगाया जा रहा है। रहली ब्लाक में शौचालयों का निर्माण पंचायतों के माध्यम से किया जा रहा है लेकिन अधिकांश पंचायतों में राशि का दुरुपयोग कर शासन की मंशा पर पानी फेरा जा रहा है। निर्मल भारत अभियान में लाखों का घोटाला प्रमाणित होने के बाद भी संबंधित अधिकारियों द्वारा दोषियों के खिलाफ कठोर कार्यवाही नहीं की जा रही है। सिर्फ कागजी घोड़े दौड़ाकर औपचारिकता पूरी की जा रही है। ब्लॉक के दस सरपंचो एवं सचिवों द्वारा शौचालयों के निर्माण की लाखो रुपए की राशि आहरित कर शौचालयों का निर्माण नहीं कराया गया है। जनपद द्वारा कई बार सरपंच-सचिव को नोटिस जारी किए गए परन्तु इसके खिलाफ कार्यवाही नहीं किया जाना संदिग्ध है। विभागीय सूत्रों के अनुसार इस गड़बड़ी में संबंधित अधिकारी भी भागीदार है। इसी कारण सरपंचों सचिवों पर कार्रवाई नहीं की जा रही है।
ब्लॉक की इकलौती पंचायत जरिया खिरिया के सरपंच सचिव पर ही एफआईआर दर्ज कराई गई है बाकी दोषी सरपंचों पर कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही इसका जवाब देने को कोई तैयार नहीं है। ग्राम पंचायत सागौनी बुदेला, खैराना, रमखिरिया, चौका गढाकोटा, बोरई, बसारी, उदयपुरा, छपरा, पटना बुर्जग के सरपंचो-सचिवो को लगभग डेढ़ माह पूर्व नोटिस जारी कर सात दिवस के अंदर राशि जमा करने के निर्देश जारी किए गए थे। राशि जमा नहीं करने पर एफ आईआर दर्ज करने की चेतावनी दी गई थी परन्तु सरपंचों-सचिवों द्वारा समयसीमा गुजर जाने के बाद भी न तो राशि जमा कराई गई है और ना ही शौचालयों का निर्माण कराया गया है। उक्त पंचायतों में पांच-पांच लाख रूपए से अधिक का फर्जीवाड़ा किया गया है। समग्र स्वच्छता अभियान के ब्लाक समन्वयक अनुपम सराफ का कहना है कि नोटिस के बाद भी सरपंच-सचिवों ने राशि जमा नहीं कराई है। सब इंजीनियर के साथ मौका मुआयना कर रिपोर्ट तैयार की जा रही है शीघ्र ही एफआईआर दर्ज कर कार्रवाई की जाएगी।
सरकार ने पंचायतों से वापस मंगाई राशि: प्रदेश में यह अपनी तरह का पहला मामला है जब एक बार राशि आवंटित होने के बाद सरकार ने उसे वापस बुलाया है। अब गांवों में होने वाले कामों का फिर से सर्वे कराकर यह राशि दी जाएगी। प्रदेश सरकार इस समय स्वच्छता अभियान पर खासा जोर दे रही है। सरकार ने गांवों में रहने वाले गरीब लोगों को घरों में शौचालय बनवाने के लिए बीपीएल कार्डधारकों को 12 हजार रुपए देने का तय किया है। इसके अलावा प्रत्येक ग्राम में सार्वजनिक शौचालय बनवाने की भी सरकार की योजना है।
पिछले महीने 475 करोड़ की राशि ग्राम पंचायतों के लिए जारी की गई थी। यह राशि ग्राम पंचायतों में पहुंचते ही सरपंच इस राशि से शौचालय बनवाने की जगह दूसरे कामों में खर्च करने लगे। इसकी भनक जैसे ही पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव को लगी उन्होंने सभी जिला पंचायतों के मुख्य कार्यपालन अधिकारियों को निर्देश दिए कि सात दिन के भीतर सभी पंचायतों से सख्ती से राशि बुलाकर उसे सरकारी खजाने में जमा किया जाए। मंत्री के आदेश मिलते ही सीईओ सक्रिय हुए और पंचायतों से राशि वापस बुला ली। अब यह राशि जिला पंचायतों के खाते में जमा है। सतना कलेक्टर संतोष मिश्रा कहते हैं कि रिकवरी की एनओसी की बाध्यता के अच्छे नतीजे आए हैं। अकेले शौचालय निर्माण मद में फंसी 9 करोड़ रुपए की वसूली कराई गई है। पर यह रकम पर्याप्त नहीं है। जल्द ही सख्त अभियान चला कर दोषियों से वसूली की जाएगी। जरूरत पड़ी तो पुलिस कार्रवाई भी की जाएगी। विभाग के आदेश के बाद भी राशि न लौटाने वाली एक सौ दस पंचायतों के खिलाफ दंडात्मक कार्यवाही की तैयारी कर ली गई है। इन पंचायतों को आरआरसी के तहत रिकवरी के नोटिस जारी किए गए हैं। नोटिस के बाद भी राशि न लौटने पर सरपंच की संपत्ति की कुर्की कर राशि वसूल की जाएगी।
अरबों का होगा खुलासा
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरूण यादव कहते हैं, ‘यदि प्रदेश के सभी पंचायतों की ऑडिट हो तो वित्तीय अनियमितताओं के जो मामले सामने आएंगे, उनमें अरबों रुपये के भ्रष्टाचार का खुलासा होगा। सरकार का विकास से कोई लेना-देना नहीं है। वह यात्राओं में उलझी हुई है। इसका फायदा मैदानी अमला उठा रहा है। विकास कार्यों एवं मनरेगा के लिए मिलने वाली राशि में भारी भ्रष्टाचार हो रहा है
।\विनोद कुमार उपाध्याय