दिनचर्या की तुलना में आहार में बदलाव कर हम कहीं अधिक पानी बचा सकते हैं । जहाँ एक किलो गेहूँ के उत्पादन के लिये औसतन 1000 लिटर पानी की आवश्यकता होती है वहीं एक किलो जौ के लिये 700 लिटर, एक किलो चने के लिये 600 लिटर और एक किलो मक्का या बाजरे के लिये 300 लिटर पानी ही चाहिये जब कि एक किलो चाँवल के लिये 3500 लिटर पानी चाहिये। इन सबकी तुलना में आपको यह जान कर आश्चर्य होगा कि एक किलो माँस के लिये15,500 लिटर पानी की आवश्यकता होती है। पानी की ऐसी बचत के एक उदाहरण के तौर पर यदि एक लाख लोग खालिस गेहूँ के बजाय गेहूँ, जौ और चने का मिश्रित अन्न (औसत 75 – 20 -5 अनुपात में) खाएं तो इस लेख में दिये विवरण के अनुसार एक साल में 48 करोड़ लिटर पानी बचाया जा सकता है । पूरा लेख आगे पढ़िये ।
आज विश्व में हम 7 अरब लोग हैं जिसमें से लगभग 1 अरब लोग अपनी भूख को प्रयास करने पर भी शांत नहीं कर पाते हैं । सन्2050 तक विश्व में 2 अरब लोगों की और वृद्धि होने का अनुमान है तब अपनी उदरपूर्ति न कर पाने वाले लोगों की संख्या कितनी होगी यह अनुमान लगाना भयावह है ।
विश्व में संयुक्त राष्ट्र संघ के झंडे तले सभी राष्ट्र “जल एवं आहार सुनिश्चितता” (Water and Food Security) पर बहुत विचार मंथन कर रहे हैं । ऐसे विचार मंथन से यह बात उभर कर आई है कि हम में से प्रत्येक को रोज़ मात्र 2 से 4 लिटर पानी पीने के लिये और 100 से 150 लिटर पानी नहाने धोने जैसे कामों के लिये चाहिये परंतु जो आहार हम रोज़ लेते हैं, उसे तैयार करने में काम आने वाली सामग्री जैसे अनाज, मांस, सब्ज़ी, फल, आदि के प्रतिशत व किस्म के आधार पर 2000 से 5000 लिटर पानी की खपत हो जाती है। पानी की खपत के इस अनुमान में आहार में काम आने वाली सामग्री को उत्पादित करने में लगने वाले पानी की मात्रा भी शामिल है। उदाहरण के लिये यह उल्लेख करना है कि जहाँ एक किलो गेहूँ के उत्पादन के लिये औसतन1000 लिटर पानी की आवश्यकता होती है वहीं एक किलो जौ के लिये 700 लिटर, एक किलो चने के लिये 600 लिटर पानी ही चाहिये जबकि एक किलो चाँवल के लिये 3500 लिटर पानी चाहिये। इन सबकी तुलना में आपको यह जान कर आश्चर्य होगा कि एक किलो माँस के लिये 15,500 लिटर पानी की आवश्यकता होती है।
भारत में पानी की कुल खपत का 70% भाग खेती के लिये, 15% भाग उद्योगों के लिये, 10% भाग पेय जल और घरेलू उपयोग के लिये व शेष 5% विविध उपयोग में आता है। पानी का घरेलू उपयोग घटाने पर तो चर्चा होती रहती है लेकिन खेती में इसके उपयोग में कमी लाने पर अभी तक विशेष ज़ोर नहीं दिया गया है ।
उपरोक्त से स्पष्ट है कि आहार परिवर्तन से हम काफ़ी पानी बचा सकते हैं और यह सोच वर्ष 2012 के विश्व जल दिवस के लिये संयुक्त राष्ट्र संघ के “यू एन वॉटर” घटक द्वारा घोषित विशेष विषयवस्तु (थीम) भी रही है । आहार से जुड़ी पानी की खपत में कमी के प्रयास अन्य घरेलू खपत में कमी के प्रयासों की तुलना में अधिक व्यापक और प्रभावी हो सकते हैं।
सुपुष्ट अनुमानों के अनुसार उत्पादित अन्न का 30% भाग खाने के काम नहीं आ पाता है क्योंकि यह परिवहन, संग्रहण, वितरण के दौरान या पके हुए भोजन की झूठन के रूप में बरबाद हो जाता है । इस बर्बादी के साथ पानी की बर्बादी भी जुड़ी है । यदि आप 100 ग्राम अन्न बचाते हैं तो इसके साथ ही अप्रत्यक्ष रूप से औसत 100 लिटर पानी भी बचा रहे होते हैं । अगर आप 100 ग्राम पका भोजन सब्ज़ियाँ बचाते हैं तो इसके साथ ही अप्रत्यक्ष रूप से औसत 250 लिटर पानी भी बचा रहे होते हैं ।
आप इस महान काम में निम्नलिखित रूप से भागीदार हो सकते हैं –
चाँवल और गेहूँ जैसे अधिक पानी की खपत वाले अन्नों का उपयोग घटावें व इसके बजाय मक्का, जौ, बाजरे, चने जैसे मोटे अनाजों का वर्ष के कुछ माहों में या सप्ताह में कुछ दिन उपयोग करें अथवा सदा ही मिश्रित अन्नों वाले आटे (उदाहरणार्थ – गेहूँ – 70-75%, जौ – 15-20% व चना – 5-10%) का उपयोग करें ।
वर्षा ऋतु में नगण्य सिंचाई से पैदा होने वाली तिल्ली के तेल का उपयोग बढ़ावें व सर्दी में रबी फ़सल के तौर पर न्यूनतम 2से 3 सिंचाई से पैदा होने वाली सरसों के तेल का उपयोग घटावें। मूँगफली आंशिक रूप से वर्षा ऋतु में और आंशिक रूप से रबी में पैदा होती है और इसे 1 या 2 सिंचाई की आवश्यकता होती है इसलिये इसकी प्राथमिकता तिल्ली व सरसों के बीच की होनी चाहिये।
बेलों पर लगने वाली सब्ज़ियों (जैसे सेम, कद्दू, लौकी, तुरई, करेले आदि) के उत्पादन में पौधे पर लगने वाली सब्ज़ियों (जैसे भिंडी, गोभी, मटर, टिंडे आदि) या ज़मीन के नीचे लगने वाली सब्ज़ियों (जैसे मूली आदि) की तुलना में काफ़ी कम पानी चाहिये इसलिये भोजन में आवश्यक हरी सब्ज़ियों में बेलीय सब्ज़ियों का प्रतिशत बढ़ावें।
बिना सिंचाई के पैदा होने वाली खाद्य सामग्री (जैसे कांगणी, सामा, कैर-साँगरी, आदि) का उपयोग बढ़ावें।
माँसाहार के बजाय शाकाहार को प्राथमिकता दें।
खाद्य सामग्री व पके हुए भोजन की बरबादी न हो, यह प्रयास करें ।
ये सभी वैकल्पिक अनाज भी पौष्टिक हैं और रेशे की मात्रा अधिक होने से मधुमेह जैसे रोगों के नियंत्रण के लिये लाभकारी भी हैं । कुछ ही वर्षों पहले तक अच्छे अच्छे घरों में चाँवल अमावस पूनम को ही बनाए जाते थे और सर्दी में मक्की शौक से खाई जाती थी और तब भूजल के इतने दोहन की समस्या भी नहीं थी ।
विभिन्न अन्नों में पानी की खपत का आधार
वर्षा ऋतु की फ़सलों, जैसे मक्का आदि में सिंचाई नहीं के बराबर करनी पड़ती है लेकिन रबी की फ़सलों में गेहूँ के लिये 5 पाण,जौ के लिये 3 पाण और चने में 2 पाण सिंचाई की आवश्यकता सामान्यतः रहती है । एक पाण कम से कम 7.5 सेंटीमीटर गहराई का होता है । एक हेक्टर में 100 गुणा 100 यानि 10,000 वर्गमीटर होते हैं और 7.5 सेंटीमीटर गहराई देखते हुए कुल 750 घन मीटर यानि 7,50,000 लिटर पानी एक पाण में चाहिये तो पाँच पाण में 37,50,000 लीटर पानी काम आ जाता है एक हेक्टर में औसत 37.5 क्विंटल गेहूँ का उत्पादन होता है तो एक क्विंटल के लिये 1,00,000 लिटर, यानि कि एक किलो के लिये 1000लिटर पानी काम आ जाता है ।
इस गणना में जल प्रवाह प्रणाली की छीजत शामिल नहीं है क्योंकि यह मान लिया जाता है कि छीजत जितना पानी खेतों में की गई सिंचाई से भूजल के रूप में पुनर्भरित भी हो जाता है ।
ऐसी ही गणित के आधार पर एक किलो जौ के लिये 700 लिटर और एक किलो चने के लिये 600 लिटर औसत पानी चाहिये । मक्की सामान्यतः बरसात के पानी से ही पकती है लेकिन व्यवस्था हो तो एक पाण पानी देने से उत्पादन सही होता है, इसे देखते हुए एक किलो मक्की के लिये 300 लिटर पानी की खपत मानी गई है। चाँवल के लिये पानी की खपत 3500 लिटर प्रति किलो है।
यानि कि गेहूँ के बदले जौ खाने पर 300 लिटर, चना खाने पर 400 लिटर, मक्की खाने पर 700 लिटर और चाँवल के बजाय गेहूँ खाने पर 2500 लिटर पानी प्रति किलो बचाया जा सकता है ।
बिना सिंचाई के पैदा होने वाली खाद्य सामग्री (जैसे कांगणी, सामा, कैर-साँगरी, आदि) का उपयोग बढ़ाने से यह बचत और ज्यादा होगी ।
पानी की संभावित बचत का गणित
एक व्यक्ति एक वर्ष में औसत 60 किलो अन्न खाता है यानि प्रति एक लाख लोग 60 लाख किलो अन्न की खपत होती है । अगर ये सब खालिस गेहूँ खोने के बजाय 75% गेहूँ, 20% जौ और 5% चने का मिश्रित अनाज खावें तो गेहूँ के बजाय 12 लाख किलो जौ और 3 लाख किलो चने की खपत होने लगेगी और ऊपर लिखे आधार पर जौ खाने से 36 करोड़ लिटर और चने खाने से 12 करोड़ लिटर यानि कुल 48 करोड़ लिटर पानी प्रति वर्ष बच सकता है । मक्की खाने पर यह गणित और भी गहरा हो जाता है । यदि बारह महिनों में से तीन महिने मक्का या बाजरा खाया जाय तो एक लाख की आबादी के लिये 15 लाख किलो गेहूँ के बजाय मक्का या बाजरे की खपत होगी और 105 करोड़ लिटर पानी बचेगा।
– ज्ञान प्रकाश सोनी
नोट – लेख में प्रयुक्त अधिकांश आँकड़े संयुक्त राष्ट्र संघ के एक घटक विश्व खाद्य एवं कृषि संगठन (Food and Agricutural Organisation – FAO) एवं वॉटर फुटप्रिंट नामक संस्था के प्रकाशनों पर आधारित हैं।