आज कम्पुटर के युग में जबकि मनुष्य विज्ञान के सहारे चाँद पर उतरने में सफल हो गया कदाचित जब से दुनिया बनी हैं उसने अब पहली बार स्थिति से भौतिक शरीर के साथ उड़कर चांदनी की बारिश करने वाले चाँद जैसे नक्षत्र में जाकर उसका रहस्योंदघाटन किया हैं पर क्या कारण हैं कि एक बात जो सबके जीवन में घटती है जो सदा के लिए मनुष्य के प्यारे सगे सम्बन्धियों को छिनकर एक अज्ञात अँधेरे में धकेल देती हैं ऐसी वे मृत्यु क्यों इस विज्ञान के युग में अभी तक एक पहेली बनी हुई हैं l
मृत्यु के बाद मनुष्य का कुछ बाकी रहता हैं या नहीं यदि रहता हैं तो किस अवस्था में और कहाँ रहता हैं ..? परलोक किसे कहते हैं और वह कहाँ हैं ….? क्या हम अपने मृत्युग्रस्त ईष्टमिर्त्रों तथा सम्बन्धियों से भी मिल सकते हैं अथवा सब कुछ समाप्त हो जाता हैं ये कई बहुत महतवपूर्ण प्रशन हैं l
यह कहना सर्वथा अनुचित होगा कि इन प्रश्नों के उत्तर आज के मानव को प्राप्त नहीं हुए हैं मरणोपरांत जीवन अब कोई रहस्य नहीं रहा हैं परन्तु सबसे विचित्र बात जो इस दिशा में हुई हैं वह यह हैं कि इस समबन्ध में पूर्ण तथ्यों की जानकारी होने पर भी यह ज्ञान सर्वग्राही नहीं बन सका हैं और मृत्यु और मरणोपरांत जीवन औसत दर्जे के मनुष्य के लिए अब भी पहेली ही बने हुए हैं l
इस विरोधाभास का मुख्या कारण यह हैं कि इस दिशा में जो प्रगति हुई हैं उसका माध्यम इन्द्र्यजनित ज्ञान नहीं है जिन महानुभावों को इस ज्ञान कि उपलब्धि हुई है या तो वह उच्चकोटि के महात्मा है जो समाधि कि अवस्था मे उन्च्चे लोको से सम्पर्क स्थापित करने मे समर्थ रहे है, अथवा वे लोग है जो किसी विशेष परिस्थिति मे मृत्तात्माओं के सम्पर्क में आये इस ज्ञान कि अनुभूति साधारण मनुष्य की पहुँच से सदैव बाहर रही हैं और यहीं कारण हैं की विज्ञान के इस युग में यह सर्वग्राही न ना बन सकी l
वैज्ञानिको का सदा यह दृष्टिकोण रहा हैं जिस वास्तु को हम छु नहीं सकते अथवा देखने और सुनने में हमारी पहुँच से बाहर हैं उस पर विश्वास नहीं करना चाहिए परन्तु नेत्रहीन यदि प्रकृति की छठा नहीं देख सकता तो, उसका अर्थ तो नहीं होता कि प्रकृति सौंदर्यहीन हैं…..? नैत्रवाले तो इसको आत्मविभोर हो ही जाते हैं l
मनुष्य की जो पांच ज्ञानेन्द्रिया हैं, जिनके द्वारा वह देखता हैं, सुनता हैं, सूंघता हैं और स्पर्श करता हैं वह बहुत सीमित हैं और शिथिल भी हैं उनसे कहीं अधिक तो यह शक्तियां बहुत से पशुओं को प्राप्त हैं जैसे चींटी और कुत्ते में सूघने की (घ्राण) इन्द्रिय अति तीव्र होती हैं l चींटी अपनी नाक द्वारा मीठी वस्तु या चीनी को उसकी गंध से ढूंढ़ लेती हैं l कुत्ता, जो विशेषकर (ब्लड हाउंड) की जाती की जाती का होता हैं मनुष्य के पहने हुए कपडे की गंध के सहारे एक या दो मिल के दायरे में यदि वह व्यक्ति हो तो उसे पकड़ लेता हैं ऐसे कुत्तो का उपयोग विशेष स्थानों में अपराधियों को पकड़ने में अब पुलिस भी करने लगी हैं चील पक्षी में देखने की क्षमता बड़ी तीव्र होती हैं और वह लगभग एक मिल तक पड़े हुए शिकार को ढूंढ़ निकलती हैं बहुत से पशु ऐसे होते है विशेषकर कुत्ता बिल्ली और घोडा जो तूफान और भूचाल से होने वाली दुर्घटनाओं का पूर्वाभास पा लेते हैं अथवा उसे भी देख लेते हैं जिसे मनुष्य नहीं देख पाते l यदि यह पशु किसी मकान में बंधे हुए होते हैं तो दुर्घटना से एक या दो दिन पहले उस जगह से रस्सी तोड़कर भागते देखे गए हैं l इससे यह बात सिद्ध हो जाती हैं की अदृश्य जगत का वह हिस्सा, जिसमे किसी वस्तु या होने वाली दुर्घटना का प्रसार पहले से मौजूद होता हैं, पशुओं की अनुभूति में बहुत पहले आ जाता हैं l कुत्ते और बिल्ली तो विशेषकर ऐसे भुतहा मकान में नहीं ठहरते जहाँ प्रेत्तात्माओं का निवास होता हैं l ये उपर्युक्त अनुभूतियाँ मनुष्य की पहुँच से बाहर हैं l परन्तु जो अनुभूति मनुष्य की इन्द्रियों से परे हैं उसे यह कहना कि उसका कोई अस्तित्व नहीं है, बिलकुल ऐसी बात हैं जैसे बिल्ली को देखकर कबूतर आंख मीच लेता हैं और यह समझ लेता हैं l अथवा हो नहीं सकतीl
अब से पचास साल पहले अणु को प्रक्रति का अंतिम अंश मन जाता था परन्तु एटम के इस ने युग ने वैज्ञानिको की इस धारणा को झूठा कर दिया और वह अब कहने लग गए हैं कि एटम अंतिम अंश नहीं हैं l इससे परे न्युट्रोंन और प्रोटौन जैसे सूक्ष्मतर अंश हैं और इसी स्तर का एलेक्ट्रोन उनके चारों तरफ घूमता हैं इन उपत्त्वों से युक्त एटम विध्वंस किया जाता हैं तब एक ऐसी भीषण शक्ति पैदा हो जाती हैं l जो क्षणों में आस पास के क्षेत्र कि पूरी सृष्टि को तहस-नहस कर देती हैं l परन्तु एटम और उससे सूक्ष्मतर पदार्थ ना देखे जा सकते हैं और ना ही छुए जा सकते हैं आज का विज्ञानवेत्ता जड़वादी होते हुए भी इन अदृस्य पदार्थो पर विश्वास करता हैं, क्योंकि इसी एटम ने दुसरे महायुद्ध में जापान के महानगरों का मिनटों में सफाया कर दिया दिया और जापान ने युद्ध में प्रगतिशील होते हुए भी घुटने टेक दिए थे इसी एटम शक्ति के विस्फोट का द्रश्य हमने अपने देश भारत में भी अपनी आँखों देख लिया हैं l
इस लेखो की श्रृंखलाबद्ध श्रेणी में जो तथ्य जीवन के सम्बन्ध में एकत्र किये हैं, वे अनुभवसिद्ध हैं उनका आधार कोई अन्धविश्वास नहीं हैं l पिछले सौ सालो से पाश्चात्य देशों में करीब पांच सौ संस्थाओं ने इस दिशा में भिन्न-भिन्न अंवेषण किये हैं और यह सब स्वतंत्र रूप से किये गए हैं इसके अतिरिक्त जिन महात्माओं को समाधिस्थ अवस्था में पारलोकिक जीवन का आभास हुआ हैं और जिन्होंने साधना द्वारा कुछ समय के लिए अपने भौतिक शरीर को त्यागकर परलोक सम्बन्धी ज्ञान की उपलब्धि की हैं अथवा दिव्यदृष्टि द्वारा परलोक का दिव्यदर्शन किया हैं उन सब के लेख इस सम्बन्ध में एक दुसरे से मेल खाते हैं एक बात इस सम्बन्ध में जो विशेष ध्यान देने योग्य है वह यह हैं की ऐसी जितनी भी मृत्तात्माये, जो मृत्यु के बाद सम्पर्क में आई उनकी अपने जीवन काल में मरणोपरांत जीवन के सम्बन्ध में कोई अपनी धरना नहीं थी और बहुधा उनका अपना विश्वास यहीं था की मरने के बाद मनुष्य का कुछ भी बाकी नहीं रहता और जिन व्यक्तियों से सम्पर्क उन्होंने इस लोक में किया उन सबकी भी कोई धरना नहीं थी ऐसी अवस्था में यदि सारे अन्वेषण एक ही प्रकार की कहानी कहते हैं तो तर्कशास्त्र के अनुसार उस पर संदेह नहीं किया जा सकताल
Author: Rawal Kishore