स्वैच्छिक रक्तदान को बढ़ावा देने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वर्ष 1997 से 14 जून को विश्व रक्तदान दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की. इस मुहिम के पीछे मकसद विश्वभर में रक्तदान की अहमियत को समझाना था. लेकिन दुनियां के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत (India) में इस मुहिम को उतना प्रोत्साहन नहीं मिल पाया जितना की अपेक्षित है. इसके पीछे सबसे बड़ा कारण लोगों में फैली भ्रांतियां हैं, जैसे कि रक्तदान से शरीर कमज़ोर हो जाता है और उस रक्त की भरपाई होने में काफी समय लग जाता है. इतना ही नहीं यह गलतफहमी भी व्याप्त है कि नियमित खून देने से लोगों की रोगप्रतिकारक क्षमता कम हो जाने के कारण बीमारियां जल्दी जकड़ लेती हैं. ऐसी मानसिकता के चलते रक्तदान लोगों के लिए हौवा बन गया है जिसका नाम सुनकर ही लोग सिहर उठते हैं. ऐसी ही भ्रांतियों को दूर करने के लिए ही विश्व स्वास्थ्य संगठन ) ने इस आयोजन की नींव रखी, ताकि लोग रक्तदान के महत्व को समझ जरूरतमंदों की सहायता करें. थैलीसीमिया एक ऐसी बीमारी है जिसके चलते एक निश्चित अवधि के बाद खून बदलवाने की आवश्यकता पड़ती है, यह अवधि मरीज की आयु पर आधारित होती है. जैसे-जैसे आयु बढ़ती जाती है, यह अवधि कम होने लगती है. इसी बात से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि थैलीसीमिया से ग्रसित रोगियों को हमारे और आपके द्वारा दान किए गए रक्त की कितनी जरूरत है.
रक्तदान के सम्बन्ध में चिकित्सा विज्ञान कहता है कि वह व्यक्ति जिसकी उम्र 16 से 60 साल के बीच और वजन 45 किलोग्राम से अधिक हो, जिसे एचआईवी, हैपिटाइटिस “बी” या “सी” जैसी बीमारी न हुई हो, वह रक्तदान कर सकता है. एक बार में जो 350 मिलीग्राम रक्त दिया जाता है, उसकी पूर्ति शरीर में चौबीस घण्टे के अन्दर हो जाती है और गुणवत्ता की पूर्ति 21 दिनों के भीतर हो जाती है. दूसरे, जो व्यक्ति नियमित रक्तदान करते हैं उन्हें हृदय सम्बन्धी बीमारियां कम परेशान करती हैं. तीसरी अहम बात यह है कि हमारे रक्त की संरचना ऐसी है कि उसमें समाहित रेड ब्लड सेल तीन माह में स्वयं ही मर जाते हैं, लिहाजा प्रत्येक स्वस्थ व्यक्ति तीन माह में एक बार रक्तदान कर सकता है.
आप रक्तदान की अहमियत इसी तथ्य से समझ सकते हैं कि हमारे द्वारा दिया गया आधा लीटर रक्त तीन लोगों की जान बचा सकता है.
क्तदान के प्रति जागरूकता जिस स्तर पर लाई जानी चाहिए थी, उस स्तर पर न तो कोशिश हुई और न ही लोग जागरूक हुए. भारत की बात की जाए तो अब तक देश में एक भी केंद्रीयकृत रक्त बैंक की स्थापना नहीं हो पाई है, जिसके माध्यम से पूरे देश में कहीं पर भी खून की जरूरत को पूरा किया जा सके. टेक्नोलॉजी में हुए विकास के बाद निजी तौर पर वेबसाइट्स के माध्यम से ब्लड बैंक व स्वैच्छिक रक्तदाताओं की सूची को बनाने का कार्य आरंभ हुआ. भले ही इससे थोड़ी बहुत सफलता जरूर मिली हो लेकिन संतोषजनक हालात अभी भी नहीं बन पाए हैं.
रक्तदान तब होता है जब एक स्वस्थ व्यक्ति स्वेच्छा से अपना रक्त देता है और रक्त-आधान (ट्रांसफ्यूजन) के लिए उसका उपयोग होता है या फ्रैकशेनेशन नामक प्रक्रिया के जरिये दवा बनायी जाती है।
विकसित देशों में, अधिकांश रक्तदाता अवैतनिक स्वयंसेवक होते हैं, जो सामुदायिक आपूर्ति के लिए रक्त दान करते हैं। गरीब देशों में, स्थापित आपूर्ति सीमित हैं और आमतौर पर परिवार या मित्रों के लिए आधान की जरूरत होने पर ही रक्तदाता रक्त दिया करते हैं। अनेक दाता दान के रूप में रक्त देते हैं, लेकिन कुछ लोगों को भुगतान किया जाता है और कुछ मामलों में पैसे के बजाय काम के समय में सवैतनिक छुट्टी के रूप में प्रोत्साहन दिए जाते हैं। कोई दाता अपने भविष्य के उपयोग के लिए रक्त दान कर सकता है। रक्त दान अपेक्षाकृत सुरक्षित है, लेकिन कुछ दाताओं को उस जगह खरोंच आ जाती है जहां सूई डाली जाती है या कुछ लोग मूर्छा महसूस कर सकते है।
संभावित दाताओं का मूल्यांकन किया जाता है ताकि उनके खून का उपयोग असुरक्षित न रहे. जांच में एचआईवी और वायरल हैपेटाइटिस जैसी बिमारियों के परीक्षण शामिल हैं जो रक्त-आधान के जरिये संक्रमित हो सकते हैं। दाता से उसके चिकित्सा इतिहास के बारे में भी पूछा जाता है और दाता के स्वास्थ्य पर दान से कोई क्षतिकारक प्रभाव नहीं पड़े, यह सुनिश्चित करने के लिए उसकी एक संक्षिप्त शारीरिक जांच की जाती है। कितनी बार एक दाता दान कर सकता है यह दिनों और महीनों में भिन्न हो सकता है, यह इस बात पर निर्भर है कि वह क्या दान कर रहा या कर रही है और किस देश में दान दिया-लिया जा रहा है। उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका में एक दाता को पूर्ण रक्त दानों के बीच 8 हफ्ते (56 दिन) का इंतजार करना पड़ता है, लेकिन प्लेटलेटफेरेसिस दानों के लिए सिर्फ तीन दिनों का.
दिए जाने वाले रक्त की मात्रा और तरीके अलग-अलग हो सकते है, लेकिन एक आदर्श दान पूरे खून का 450 मिलीलीटर (या लगभग एक यूएस पिंट) होता है। इसे मैनुअली या स्वचालित उपकरण से संग्रहित किया जा सकता है जो कि केवल खून के विशिष्ट भाग को लेता है। आधान के लिए इस्तेमाल किये जाने वाले खून के अधिकांश घटक का छोटा अचल जीवन होता है और लगातार आपूर्ति बनाये रखना एक स्थायी समस्या है।
दान के प्रकार
संग्रहित रक्त को कौन प्राप्त करेगा, इस पर रक्त दान को समूहों में विभाजित किया गया है। एक एलोजेनिक (होमोलॉगस भी कहा जाता है) दान उसे कहते हैं जब कोई दाता किसी अनजान व्यक्ति के आधान लिए ब्लड बैंक में भंडारण करने के लिए खून देता है। एक निर्देशित दान उसे कहते हैं जब कोई व्यक्ति, अक्सर एक पारिवारिक सदस्य, किसी व्यक्ति विशेष के आधान के लिए रक्त दान करता है। निर्देशित दान अपेक्षाकृत विरल होते हैं। एक प्रतिस्थापन दाता दान दो का एक मिश्रण है और घाना जैसे विकासशील देशों में आम है। इस मामले में, संग्रहीत रक्त का उपयोग आधान में प्रयुक्त रक्त का प्रतिस्थापन करने के लिए प्राप्तकर्ता का दोस्त या पारिवारिक सदस्य रक्तदान करता है ताकि रक्त की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित हो. जब एक व्यक्ति का रक्त संग्रहित कर लिया जाता है और उसे बाद में दानकर्ता को वापस चढ़ा दिया जाता है, आमतौर पर सर्जरी के बाद, तो यह ऑटोलॉगस कहलाता है।[7]एलोजेनिक दान या फिर दवा के निर्माण के लिए विशेष रूप से किए जानेवाले दान से मिले रक्त का उपयोग दवा बनाने के लिए किया जा सकता है।
वास्तविक प्रक्रिया देश के कानूनों के अनुसार बदलती रहती है और दाताओं के लिए अनुशंसा रक्त इकट्ठा करनेवाले अलग-अलग संगठन के हिसाब से बदलती रहती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने रक्त दान नीतियों की अनुशंसाएं प्रदान की है, लेकिन विकासशील देश इनमें से कइयों का पालन नहीं कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, परीक्षण के लिए प्रयोगशाला की सुविधाओं, प्रशिक्षित कर्मचारी और विशेषज्ञ अभिकर्मकों की आवश्यकता की अनुशंसा की गयी है, विकासशील देशों में हो सकता है ये सब उपलब्ध न हों या बहुत ही महंगे हों.
ऐसे कार्यक्रम जहां दानकर्ता एलोजेनिक रक्त देते हों, कभी-कभी यह रक्त ड्राइव या रक्तदान सत्र कहलाता है। ऐसे कार्यक्रम रक्त बैंक में हो सकते हैं, लेकिन अक्सर ये लोग इसका आयोजन किसी सामुदायिक स्थान जैसे शौपिंग सेंटर, कार्यस्थल, विद्यालय या पूजा स्थल में करते हैं।
आरोग्य लाभ और दान के बीच समय का अंतर
दाताओं को दान के बाद आमतौर पर दान स्थल में 10-15 मिनट तक रखा जाता है, क्योंकि सबसे अधिक प्रतिकूल प्रतिक्रिया दान के दौरान या दान के तुरंत बाद होती है। रक्त केंद्र आमतौर पर आरोग्य लाभ के लिए दाता को चाय और विस्कुट जैसी हल्की-फुलकी वस्तुएं खाने-पीने को देते हैं या दोपहर के भोजन के लिए भत्ता प्रदान करते हैं।सूई लगाये जानेवाले स्थान को बैंडेज से ढंक दिया जाता है और दाता को कई घंटे तक बैंडेज बांधे रखने का निर्देश दिया जाता है।
दान दिया गया प्लाज्मा 2-3 दिनों के बाद वापस दे दिया जाता है। लाल रक्त कोशिकाओं को धीमी दर से स्वस्थ वयस्क पुरुषों में औसतन 36 दिन में अस्थि मज्जा द्वारा परिसंचारण प्रणाली में प्रतिस्थापित कर दिया जाता हैं। उस अध्ययन में आरोग्य लाभ की सीमा 20 से 59 दिन थी।ऐसे प्रतिस्थापना की दर का आधार इस बात पर होता है कि दाता कितनी बार रक्त दे सकता है।
प्लाजमाफेरेसिस और प्लेटलेटफेरेसिस दाता बार-बार दे सकता है, क्योंकि उनमें अति महत्वपूर्ण लाल रक्त कोशिकाओं की मात्रा कम नहीं होतीं. दाता कितनी बार दान दे सकता है, इसका सटीक दर अलग-अलग देशों में भिन्न होता है। उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका में प्लाजमाफेरेसिस दाता को एक सप्ताह में दो बार बड़ी मात्रा में दान करने की अनुमति है और साल में सामान्य तौर पर 83 लीटर (लगभग 22 गैलेन) दे सकते हैं, जबिक यही दाता जापान में हर एक वैकल्पिक सप्ताह के बाद दान दे सकता है और साल में 16 लीटर (लगभग 4 गैलेन) दान दे सकता है।अपरिवर्तित रक्त दाता के लिए लाल रक्त कोशिकाएं सीमित होती है, इसलिए दान की आवृत्ति को विस्तृत अंतर होता है। हांग कांग में यह तीन से छह महीने में बनता है, ऑस्ट्रेलिया में यह बारह सप्ताह में, संयुक्त राज्य अमेरिका में यह आठ सप्ताह में और ब्रिटेन में यह आमतौर पर सोलह सप्ताह में, लेकिन यह बारह से कम हो सकता है।
क्या कहते हैं आँकड़े :
यदि मध्यप्रदेश में रक्तदान के प्रतिशत की बात करें तो वर्ष 2006 में 56.2 प्रतिशत, वर्ष 2007 में 65.17 प्रतिशत, वर्ष 2008 में 68.75 प्रतिशत के लगभग रहा, जो कि संतोषप्रद है परंतु शत-प्रतिशत रक्तदान के आँकड़ों से हम अभी भी बहुत दूर है। आज भी कहीं न कहीं प्रदेश को रक्तदान में टॉप 5 राज्यों की दौड़ में शामिल होने के लिए इंतजार करना पड़ेगा। लेकिन यह इंतजार जल्दी ही खत्म हो सकता है अगर हम सभी संकल्प लें कि कम से कम स्वयं तो रक्तदान जरूर करेंगे।
देशभर में रक्तदान हेतु नाको, रेडक्रास जैसी कई संस्थाएँ लोगों में रक्तदान के प्रति जागरूकता फैलाने का प्रयास कर रही है परंतु इनके प्रयास तभी सार्थक होंगे, जब हम स्वयं रक्तदान करने के लिए आगे आएँगे और अपने मित्रों व रिश्तेदारों को भी इस हेतु आगे आने के लिए प्रेरित करेंगे।
चलिये अब बात करते हैं उन लाभों की जो हमें रक्तदान से मिलते हैं।
1. नियमित अंतराल पर रक्तदान करने से शरीर में आयरन की मात्रा संतुलित रहती है और रक्तदाता को हृदय आघात से दूर रखता है। 2. इससे रक्तदाता व्यक्ति को विभिन्न अंगों में कैंसर के रिस्क से दूर रखता है। 3. यह कोलेस्ट्रॉल को कम करता है और रक्तचाप को नियंत्रित करता है। 4. इससे ज्यादा कैलोरी और वसा को बर्न होता है, और पूरे शरीर को फिट रखता है। 5. रक्तदान करने से न केवल किसी व्यक्ति का जीवन बचता है, बल्कि रक्तदाता में नई कोशिकओं का सृजन करता है। 6. इससे आयरन का स्तर नियंत्रित करता है, जिससे रक्त को गाढ़ा बनाता है और उसमें फ्री रेडिकल डैमेज बढ़ता है। रक्तदान करने से, तमाम लोगों का जीवन बचाया जा सकता है और उन लोगों को जीने की उम्मीद मिलती है, जो उम्मीद खो चुके होते हैं।