आज मोबाइल फोन लोगों के दैनिक जीवन में एक आवश्यक साधन बन गए हैं। अब यह कोई नई खबर नहीं है कि मोबाइल माइक्रोवेव विकिरण फैलाते हैं जो मानव शरीर में रोग फैला सकते हैं, या हमारे स्वास्थ्य हो सम्भावित नुकसान पहुंचा सकते हैं।
अध्ययन के अनुसार मोबाइल फोन विकिरण सम्भवतः उच्च रक्तचाप, सिरदर्द, ब्रेन ट्यूमर; अलज़ीमर्स एवं यहां तक कि कैंसर तथा अन्य कई बीमारियों को जन्म दे सकते हैं। फिर भी मोबाइल उपयोग के संयुक्त उपयोग के कारण सभी लोग सम्भावित नुकसान से परिचित नहीं हैं।
इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, मोबाइल उपयोगकर्ताओं को नुकसान को न्यूनतम रखने के लिए कुछ बातें व्यवहार में लानी चाहिए। यहां कुछ बातें दी गई हैं जिनका आप सन्दर्भ ले सकते हैं-
1. विकिरण का जोखिम न्यूनतम रखें। इसका अर्थ है बातचीत को कम समय के लिए रखना बुद्धिमानी होगी, अत्यधिक लम्बे समय तक बातचीत करने से बचने का पूरा प्रयास करें। केवल दो मिनट की बातचीत से मस्तिष्क की विद्युत गतिविधि में उसके एक घंटे तक बदलाव देखा गया है।
बच्चों को केवल आपातकालीन स्थिति में ही सेलफोन के उपयोग की अनुमति दी जानी चाहिए।
जब उपयोग न कर रहे हों तब मोबाइल फोन को अपने शरीर से जितना सम्भव हो, उतना दूर रखें। कुछ मोबाइल उपयोगकर्ता, चालू मोबाइल फोन को अपनी पैंट की जेब में रखना पसन्द करते हैं। मानव शरीर का निचला हिस्सा ऊपरी हिस्से की तुलना में विकिरण को अधिक तेज़ी से सोखता है।
2. यदि आप हेडफोन के उपयोग के बारे में सोच रहे हैं, तो वायरयुक्त हैडसेट के बजाय वायरलैस हैडसेट चुनें। वायर न केवल विकिरण संचारित करता है बल्कि आसपास से विद्युत चुम्बकीय फील्ड (Electro Magnetic Fields) को भी आकर्षित करता है। जब आप अपने मोबाइल फोन का उपयोग हैडसेट के बगैर कर रहे हों, तो उसे अपने कान के पास ले जाने से पहले कॉल जुड़ने तक इंतज़ार करें।
3. मोबाइल के थोक या खुदरा विक्रेता से खरीदते समय, कम स्पेसिफिक अब्सॉर्प्शन रेट (Specific Absorption Rate, SAR) वाले मोबाइल चुनें। निर्देश मैनुअल में दिए गए SAR नम्बर की जांच करें। SAR का मूल्य जितना कम हो उतना ही बेहतर होगा।
एलिवेटर या वाहन जैसी बन्द जगहों से कॉल का उत्तर देते समय – विकिरण शक्तिशाली हो सकता है
सरकार द्वारा मोबाइल फोन विकिरण के दुष्प्रभावों पर चेतावनी
लोगों को मोबाइल फोन से निकलने वाले हानिकारक विकिरण के विरुद्ध चेतावनी देते हुए, सरकार ने सेवा प्रदाताओं एवं निर्माताओं से कहा है कि वे बच्चे एवं गर्भवती महिलाएँ, जो आसानी से दुष्प्रभावित होते हैं, उन्हें मोबाइल फोन का उपयोग करते हुए विज्ञापन, दिखाने से बचें।
दूरसंचार मंत्रालय द्वारा हाल ही में जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार, मोबाइल फोन से निकलने वाली विद्युत चुम्बकीय तरंगें उपयोगकर्ता के मस्तिष्क के ऊतकों को गम्भीर नुकसान पहुंचा सकती है। दिशा-निर्देशों में बच्चों, गर्भवती महिलाओं एवं कान के रोगों से पीड़ित लोगों द्वारा मोबाइल फोन के सीमित उपयोग का सुझाव दिया गया है।
भारत में, मोबाइल फोन का फैलाव बहुत अधिक हो रहा है तथा 2010 के अंत तक यह 50 करोड़ से भी अधिक हो सकता है, एवं इसके उपयोगकर्ताओं का एक बड़ा हिस्सा बच्चे हैं।
कई माता-पिता सुरक्षा कारणों से, एवं हमेशा उनके साथ जुड़े रहने के लिए बच्चों को मोबाइल फोन दे देते हैं।
दिशा-निर्देश कहते हैं कि मोबाइल फोन/ रेडियो टर्मिनल रेडियो आवृत्ति ऊर्जा का विकिरण फैलाते हैं जो ऊतकों को गर्म करते हैं जो कि सम्भवतः मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकते हैं।
उपयोग के दौरान, मोबाइल फोन आमतौर पर कान के पास रखे जाते हैं, जो कि मस्तिष्क के एकदम पास है, जिससे इस भय का जन्म होता है कि मोबाइल फोन के लम्बे समय तक लगातार उपयोग से मस्तिष्क के कुछ ऊतकों को नुकसान हो सकता है।
यदि लम्बे समय तक उपयोग को टाला नहीं जा सके तो रिपोर्ट लोगों को हैंड्स फ्री का उपयोग करने की सलाह देती है, तथा यह अनुशंसा करती है कि 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को मोबाइल फोन के उपयोग से बचने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए क्योंकि बच्चों के ऊतक नर्म होते हैं तथा उनके प्रभावित होने की अधिक सम्भावना होती है। नफा तो हमसे बहुत देख लिया इस मोबाइल का लेकिन इसका बहुत बड़ा नुक्सान भी है। हम सब जो मोबाइल के आदि हो चुके हैं अब १ मिनट भी बिना इसके रह नहीं सकते। मोबाइल अगर १ मिनट के लिए भी बंद हो जाता है चाहें बैट्री खत्म हो गई हो या नेटवर्क ना आ रहा हो या किसी भी वजह से तो हम सब परेशान हो जाते है और इस जुगाड़ में जुट जाते हैं कि कितनी जल्दी इसको चालू कर दे फिर से, इसकी वजह से हम टेंशन में आ जाते हैं और कई बार तो लोगो का बी पी भी हाई हो जाता है। इस तरह कई जिनको दिक्कत होती है वो नोमोफोबिया (nomophobia) नमक मानसिक बीमारी से ग्रस्त होते हैं।
कई बार ऐसा होता है कि मोबाइल जेब में है और हमको आभास होता है की मोबाइल की बेल बज रही है किसी की कॉल आ रही है, लेकिन जब देखते हैं तो किसी कि कॉल नहीं आ रही होती है, ऐसा आभास हमें बार बार होता है। ऐसा होना भी १ मानसिक रोग का लक्षण कहलाता है जिसको रिंगजयती (ringxiety) कहते हैं।
जितना आधुनिक हम हो रहे हैं उसे रूप में बीमारियाँ और रोग भी आधुनिक हो रहे हैं। शायद ही मोबाइल का दूसरा कोई विकल्प है, लेकिन अगर हम सावधानी बरते तो इससे होने वाले रोगों से बचा सकते हैं।
ध्यान दीजीये आप कहीं इनमे से किसी के शिकार तो नहीं।
मोबाइल फ़ोन से लोगों के स्वास्थ्य पर होने वाले कुप्रभाव का पता लगाने के लिए अब तक का सबसे बड़ा शोध कार्य शुरू किया गया है.
इस शोध के लिए इंग्लैंड के अलावा पाँच यूरोपीय देशों से क़रीब ढाई लाख मोबाइल फ़ोन इस्तेमाल करने वालों की मदद ली जाएगी.
इस सवाल का सही जवाब तलाशने के लिए शोध को 20 से 30 वर्ष की समय अवधि में पूरा किया जाएगा.
इस विषय पर पहले भी कई बार शोध हो चुका है. अभी तक के शोध से कोई नकारात्मक असर देखने में नहीं आया है लेकिन शोधकर्ताओं का कहना है कि इसके बाद भी अनिश्चितता बनी हुई है.
अब तक चिंता की जाती रही है कि जो शोध हुए हैं वे इतने कम हैं कि उससे कुछ पता ही नहीं चलता क्योंकि कैंसर के कुछ लक्षणों को पनपने में कई बरस का समय लग जाता है.
अब तक हुए शोधों में कमी यह भी रही है कि शोध में शामिल लोगों से यह याद करने को कहा जाता रहा है कि वो मोबाइल का उपयोग कितना करते रहे हैं.
इसमें ख़तरा है कि लोगों का पूर्वाग्रह भी शामिल हो सकता है.
लेकिन नया शोध अलग है.
इसमें जिन लोगों को शोध में शामिल किया जाएगा, उनसे यह आँकड़ा एकत्रित किया जाएगा कि वास्तव में मोबाइल का उपयोग कितना कर रहे हैं.
इस शोध में वैज्ञानिक विभिन्न बीमारियों को ध्यान में रखकर काम करेंगे, जिसमें मस्तिष्क का कैंसर, स्ट्रोक, हृदय रोग, अल्ज़ाइमर्स और पार्किंसन्स शामिल हैं.
इस शोध का नाम ‘कॉसमॉस’ रखा गया है जिसे पाँच साल के लिए ब्रिटेन की एक मोबाइल कंपनी और हेल्थ रिसर्च प्रोग्राम नामक संस्था से आर्थिक मदद मिल रही है.
शोध के एक जाँचकर्ता डॉक्टर माइरिली टोलेडानो का कहना है,“हम इसकी भी जाँच करेंगे कि मोबाइल की वजह से सिर में दर्द, नींद न आने और अवसाद जैसे लक्षण बढ़ तो नहीं रहे हैं.”
उनका कहना है कि इसमें लोगों के मोबाइल के उपयोग की अवधि का आकलन किया जाएगा न कि कॉल की संख्या का. जो लोग इसमें शामिल होंगे उन्हें एक प्रश्नावली का उत्तर देने के बाद यह अनुमति देनी होगी कि हम उनके मोबाइल के उपयोग के आँकड़ों का उपयोग कर लें.
इस शोध के लिए ब्रिटेन, फ़िनलैंड, डेनमार्क, स्वीडन और नीदरलैंड्स से लोगों का चयन किया जाएगा. लेकिन शोधकर्ताओं का कहना है कि बाद में विकासशील देशों से भी लोगों को इसमें शामिल किया जाएगा.
पूरी दुनिया में इस समय क़रीब 60 करोड़ लोगों के पास मोबाइल फ़ोन है और इसमें लगातार बढ़ोतरी हो रही है.