इसे पढ़ने के बाद रियल्टी शोज में एसएमएस या फोन करने से पहले चार बार सोचेंगे :नए जमाने के धनी और शहरी मदारियों से सावधान रहने की जरूरत : केबीसी से कौन बन रहा है करोड़पति? जवाब के लिए चार आप्शन हैं- A) सोनी टीवी. B) मोबाइल कम्पनियां. C) बिग बी. D) सिद्धार्थ बसु. कनफ्यूज हैं आप? हम बताते हैं. ये चारों ही विकल्प सही हैं.
चारों ही करोड़पति बन रहे हैं. ये अलग बात हैं कि ये चारों लोग / संस्था पहले से ही करोड़पति या अरबपति हैं और इनकी कमाई में केबीसी और इजाफा कर रहा है. सही मायने में कहा जाए तो केबीसी से कोई करोड़पति बने या ना बने, ये चार तो बन ही रहे हैं और खासकर सोनी टीवी का प्रबंधन इस शो के जरिए अरबों रुपये उगाह रहा है. कैसे? आइए बताते हैं आपको इस शो की बिजनेस स्ट्रेटजी, वो बिजनेस स्ट्रेटजी जिसे हम आप इमोशनल लोग कम ही समझबूझ पाते हैं और शो के इमोशन में फंसकर इस शो की कमाई में इजाफा कर देते हैं.
ये सच है कि कोई भी धारावाहिक एक व्यवसाय होता है. इनका एकसूत्री लक्ष्य मुनाफा कमाना होता है. लेकिन केबीसी के मुनाफे के बारे में जानकर-पढ़कर शायद आप खुद को ठगा सा महसूस करें. केबीसी के प्रत्येक एपिसोड में घर बैठे जीतो जैकपॉट के लिए सवाल पूछा जाता है. इसके लिए आपको अपने मोबाइल से एसएमएस करना होता है. हर नेटवर्क के लिए एक अलग कोड होता है. इस मैसेज की कीमत होती है पांच रुपए. आपके द्वारा खर्च किये गए पांच रुपए के बदले आपको महज़ एक रिकॉर्ड सुनाई देगा कि अगर आप शॉर्ट लिस्टेड हुए तो सूचित किया जाएगा. बस और कहानी खत्म.
मार्च 2011 के सर्वे को ही आधार बनाकर देखें तो, भारत के कुल 28 राज्यों, 7 केन्द्र शासित प्रदेशों और यहां के 640 ज़िलों की कुल जनसंख्या 1,210,193,422 है. इसमें से करीब 82,69,30,000 (82 करोड़) लोग अलग-अलग मोबाइल सेवाओं का प्रयोग करते हैं. अगर केवल एक प्रतिशत लोग भी केबीसी के लिए मैसेज करें तो पूरे 4.1 करोड़ रुपए का वारा-न्यारा हो जाता है. इसके बदले किसी एक आदमी को ईनाम राशि के रूप में तीन लाख रुपए मिलते हैं, वो भी अगर वो दुबारा पूछे गए सवाल का जवाब दे तब वरना सिर्फ एक लाख मिलते हैं उसे.
अगर मैसेज करने वालों का प्रतिशत बढ़ाकर 10 कर दें तो यह राशि 41 करोड़ के आसपास हो जाएगी. इस आधार पर देखें तो 30 एपिसोड के 123 करोड़. वो भी केवल 20 मिनट प्रति एपिसोड के आधार पर. ये तो थी उस कमाई की बात जो केवल एसएमएस के द्वारा जमा होती है. इसके अलावा विज्ञापनों से भी भारी रकम उठाता है केबीसी. केबीसी का मोटा-मोटा कुल लाभ करीब 16,263 करोड़ वार्षिक है. तमाम तरह के टैक्स और लेन-देन के बाद भी केबीसी का 8118 करोड़ का मुनाफा तय है.
देखा आपने. जो दिखता है वह अंदरखाने उतना आसान और सरल नहीं होता. उसमें स्वार्थ होता है. और यह स्वार्थ टीआरपी और मुनाफे दोनों के मिक्सचर से आप्लावित होता, ओतप्रोत होता है. केबीसी के हर एपिसोड में हम लोग किसी एक आदमी के जीवन, उसके जवाब, अमिताभ के सवाल और अंदाज से प्रभावित होते हैं और बेहद आसान जैकपाट सवाल से खुश होकर एसएमएस कर देते हैं. पर यह सब ड्रामा अंततः हमारी आपकी जेब से अरबों रुपये निकालकर किसी एक के हाथों में इकट्टा कर देता है.
इन आंकड़ो को देखकर-पढ़कर अनुमान लग गया होगा कि जैकपाट के सवाल के बदले मिलने वाले एक या तीन लाख रुपये के बदले करोड़ों-अरबों रुपये इधर-उधर हो रहे हैं और अप्रत्यक्ष रूप से हम-आप लुट रहे हैं. जो पहले से ही करोड़पति हैं, वे अरबपति बनने की ओर हैं. हम-आप उनके बहकावे में आकर, जो भी रहा-सहा है, उसे गंवाने की राह पर हैं. इमोशनल ड्रामे में हम-आप अपने पैसे की कीमत पहचानना भूल जाते हैं.
सिर्फ केबीसी ही क्यों. टीवी पर प्रसारित कोई भी रिएलिटी शो कितना रियल होता है, ये आप और हम बख़ूबी जानते हैं. बात चाहे डांस रिएलिटी की हो, म्यूज़िक की हो या टैलेंट की, किसी भी शो के लिए आप दावा नहीं कर सकते कि फलां शो में बेइमानी या धोखाधड़ी नहीं होती है. हां ये अलग बात है कि इस तरह के शोज़, सास-बहू के रोने धोने और साजिशों से बचने का एक विकल्प जरूर बन गए हैं. लेकिन दुख तब होता है जब शो खत्म होने के बाद आपको पता चलता है कि सबकुछ प्रीप्लांड था और आपने जिस कंटेस्टेंट के लिए वोट किया था, उसकी हार या जीत तो पहले से ही तय थी पर उकसावे में आकर आपने एसएमएस भेजकर, फोन करके उस शो और उस टीवी कंपनी को करोड़ों-अरबों थमा देते हैं.
बिजनेस और टीआरपी के लिहाज से देखें तो सभी शोज एक ही थाली के चट्टे-बट्टे बोते हैं. ये काफी हद तक रीयलिस्टिक दिखते और रीयल्टि दिखाते लगते हैं. सोनी पर प्रसारित कौन बनेगा करोड़पति ऐसे ही कुछ शोज में है. यहां प्रतिभागी अपनी योग्यता से पाता और खोता है, पर यहां भी सेलीब्रेटीज़ का हॉट सीट पर बैठना, चैरिटी के नाम पर खेलना, आशंकित करता है. हालांकि इस शो में सेलीब्रेटीज़ कभी-कभार ही आते हैं. पर उपर किए गए गुणा भाग से आप ये बिल्कुल भी नज़रअन्दाज़ नहीं कर सकते और ना ही करना चाहेंगे कि करोड़पति बनवाने वाला ये शो खुद अरबपति बन चुका है.
याद है आपको, गांवों में, कस्बों, कुछेक शहरों में होने वाला बंदर-बंदरिया वाला तमाशा. मदारी तमाशा दिखाता है, बंदर-बंदरिया को नचाता है और आखिर में देखने वालों से कुछ देने का अनुरोध करता है. कोई एक रुपया, कोई पांच, कोई दस, कोई किलो भर गेहूं तो कोई पाव भर आटा उसकी झोली में गिरा देता है. इस तरह उसकी और उसके कलाकार बंदर-बंदरिया की जिंदगी की गाड़ी चलती रहती है. पर अब यह रीयल मदारी कम होता जा रहा है. रीयल मदारी करने वाले विलुप्त होते जा रहे हैं. भुखमरी के शिकार होकर इस धंधे को छोड़ते जा रहे हैं. उनकी जगह ले ली है नए तमाशाइयों और मदारियों ने.
ये नए जमाने के तमाशाई और मदारी शहरी हैं. एलीट हैं. कारपोरेट हैं. साफिस्टिकेटेड हैं. इमोशन को अखिल भारतीय स्तर पर कैश करने के उस्ताद हैं. हमारी आपकी दिक्कत है कि हम आप मनोरंजन अपने मकानों-दीवारों के भीतर तलाशते हैं और 'डिब्बे' पे दिखने वाली केंद्रीकृत नौटंकी से ओतप्रोत होकर, भाव-विभोर होकर एसएमएस, फोन आदि कर बैठते हैं. और इस तरह हम इन नए जमाने के धनी मदारियों, नौटंकीबाजों, कारपोरेटों को करोड़पति से अरबपति और अरबपति से खरबपति बना देते हैं.
आखिर में, कहने का आशय ये कि अगली बार किसी शो से भाव विह्वल होकर एसएमएस या फोन करने से पहले दो-चार बार ठंढे दिमाग से सोचिएगा कि ये जो एसएमएस-फोन करने से आपका जो दस-पांच रुपया कटेगा, उसको अपने मोहल्ले-कालोनी-गांव के किसी जरूरतमंद बच्चे को टाफी, चाकलेट, बिस्किट या पेन-पेंसिल के लिए दे दें तो कितनाअच्छा रहेगा, कितना पुण्य मिलेगा, और आंतरिक सुख व संतुष्टि जो मिलेगी सो अलग.
दिल्ली से भूमिका राय का विश्लेषण.