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अंतर इच्छा

7 सितम्बर 2018

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लेने को तो मैं ले लेता, बदला बदलने वालों से l

फिर सोचा क्यों उनको सोचूँ , जिनको मेरी परवाह नहीं थी ll

करने को तो मैं कर देता, विद्रोह सभी खिलौनों से l

पर बचपन को सूना कर दूँ , ऐसी कोई चाह नहीं थी ll

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कैसा मेरा अंदाज़ रहा

4 सितम्बर 2018
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अपने प्यासे अधर दिखा कर किसीसे जल का दान न माँगा,इसीलिए शायद हर पनघट मुझसे नाराजरहा ll ख्वाबों में देख रहा ख्वाबोंको, जो न कल था और न ही आज रहाllहर सांस महकती रहती थी, वो भी क्या दिन थे, अब तो न वो आवाज रही और न हीवो साज़ रहा llमुझमें कोई फर्क नहीं है, जैसी मेरी मंजिल है वैसा ही आगाज़रहा llसूरज की अ

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जातिगत विभाजन

6 सितम्बर 2018
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ऐसा प्रतीत होता है कि सवर्णो को सरकार ग्रांटेड के तौर पर ले रही है. जब माननीय उच्चतम न्यायलय ने अनुसूचित जाति और जनजाति अधिनियम के दुर्प्रयोग पर चिंता जाहिर करते हुए भारत के नागरिको के हित में अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए उचित और समयानुकूल संशोधन किया था तब भ

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अंतर इच्छा

7 सितम्बर 2018
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लेने को तो मैं ले लेता, बदला बदलने वालों सेl फिर सोचा क्यों उनको सोचूँ, जिनको मेरी परवाह नहीं थी ll करने को तो मैं कर देता, विद्रोह सभी खिलौनों सेl पर बचपन को सूना कर दूँ, ऐसी कोई चाह नहीं थी ll

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अंतर इच्छा

7 सितम्बर 2018
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लेने को तो मैं ले लेता, बदला बदलने वालों सेl फिर सोचा क्यों उनको सोचूँ, जिनको मेरी परवाह नहीं थी ll करने को तो मैं कर देता, विद्रोह सभी खिलौनों सेl पर बचपन को सूना कर दूँ, ऐसी कोई चाह नहीं थी ll

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हर बात मेरी एक प्रश्न बन गई l

10 जनवरी 2019
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हर बात मेरी एक प्रश्न बन गई lश्वेत चादर मेरी कृष्ण बन गई llहर बात मेरी एक प्रश्न बन गई lअश्रुओं ने कही जिंदगी की कहानी,शत्रु बन गए चक्षु और पानी,जिंदगी से लड़ता रहा मौत से ना हार मानी,त्रासदी भी मुझे छूकर एक जश्न बन गई lहर बात मेरी एक प्रश्न बन गई lश्वेत चादर मेरी कृष्ण बन गई llअधरों की मूक स्वीकृति

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वो क्या है !

22 नवम्बर 2019
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सौंदर्य भी मुस्का कर शरमाये ऐसी उसकी मूरत है ....I हुस्न हुनर दोनों हैं उसमें ऐसी मनभावन मूरत है .....II चंदा अपनी छोड़ चांदनी रात रात भर घूरत है .....I तस्वीर है अंकित सीने मे

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शेर

10 दिसम्बर 2019
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लुटेरे बन गए हो तुम, महफिले लूट लेते हो सजा अब आपको है मुकर्रर महफिले सजाने की

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वेदना

17 दिसम्बर 2019
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हर सांस कीअपनी कीमत है..स्वेद रक्त काअपना मोल lमिट्टी का कणकण जुड़ता है..तब निर्मित होता भूगोल lनारी कोआग लगा देते है..नहीं छोड़ते बेबस बस को lधिक्कार हैउनके यौवन को..कर न सके जो वश में हवस को lकलम मेरीअब चीख रही है..कलम करो उनके सर को lशैतानी भी कांप उठे..सीख मिले सारे नर को ------विवेक शुक्ल 'बा

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स्वरोजगार

23 अक्टूबर 2020
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बलवान बलिष्ठ कन्धों पर ही जिम्मेदारी टांगी जाती सुदृढ़ मजबूत भुजाओं से भीख नहीं मांगी जाती

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