कैसा मेरा अंदाज़ रहा
अपने प्यासे अधर दिखा कर किसीसे जल का दान न माँगा,इसीलिए शायद हर पनघट मुझसे नाराजरहा ll ख्वाबों में देख रहा ख्वाबोंको, जो न कल था और न ही आज रहाllहर सांस महकती रहती थी, वो भी क्या दिन थे, अब तो न वो आवाज रही और न हीवो साज़ रहा llमुझमें कोई फर्क नहीं है, जैसी मेरी मंजिल है वैसा ही आगाज़रहा llसूरज की अ