हर सांस कीअपनी कीमत है..
स्वेद रक्त काअपना मोल l
मिट्टी का कणकण जुड़ता है..
तब निर्मित होता भूगोल l
नारी कोआग लगा देते है..
नहीं छोड़ते बेबस बस को l
धिक्कार हैउनके यौवन को..
कर न सके जो वश में हवस को l
कलम मेरीअब चीख रही है..कलम करो उनके सर को l
शैतानी भी कांप उठे..
सीख मिले सारे नर को