सदैव जगत का उत्कर्ष चाहा
अपना सर्वस्व न्यौछावर कर
प्रतिकूल पथ पर चलती रही
अपना कर्तव्य निभाकर
मां बनकर के किया पालन पोषण
सदैव इसी भाव में रही
अपने संतति के उन्नति के चाह में रही
बहन बन के लुटाया प्रेम अपार
बेटी बन के किया है कुल का नाम रौशन
और बनी जब शासिका तो किया
रानी लक्ष्मीबाई जैसा शासन
खेल हो, राजनीति हो
कला हो या मैराथन
कहो किस मोड़ पर
झंडा नहीं ऊंचा किया है
उन्नति की हैं
प्रगति की हैं
जीवन का आधार है
नारी के बिना जीवन की
कल्पना निराधार है