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कवि व्यंग्यकार

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सत्य का समय सापेक्ष अन्वेषण है ‘बोलो गंगापुत्र ‘

5 मार्च 2018
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महाभारत की पृष्ठभूमि पर कई उपन्यास और कथाएं लिखी गयी .मानवीय चरित्र की सर्वोच्चता और निम्नता का ऐसा कोई आयाम शायद ही हो जिसे महाभारत कार ने किसी न किसी चरित्र के माध्यम से अंकित न किया हो .इसीलिए कहा गया ‘..जो महाभारत में नहीं वह कहीं नहीं ‘ पाश्चात्य प्रभाव से महाभारत को महाकाव्य की श्रेणी में रखा

आयशा को डर नहीं लगता -----? अरविंद पथिक

12 अगस्त 2017
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हम जहाँ रहते हैं वह 288 फ्लैट वाली छोटी सी कालोनी है जिसके सेक्रेटरी रहने का फख्र हमे भी हासिल है .हमारी कालोनी यही कोई 17-18 पहले बसी थी .यहाँ रहने वाले ज्यादातर लोग नौकरी पेशा और छोटे मोटे बिजनेस करने वाले अपनी दुनिया में व्यस्त और

रायता प्रसाद

23 जुलाई 2017
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रायता प्रसाद का असली नाम तो मंच के हास्य-व्यंग्य कवियों के असली नाम की तरह ही विस्मृत हो चुका था ,पर रायता फ़ैलाने की अपनी अकूत क्षमता के कारण वे साहित्य जगत में रायता प्रसाद के नाम से ख्याति प्राप्त कर चुके थे . रायता प्रसाद को गोस्वामी तुलसीदास जी तरह ही लोक मानस की गहरी समझ थी .वे जानते थे कि

प्रेम और साहित्य का फेसबुक काल

17 जुलाई 2017
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हिंदी साहित्य में नायिका का बड़ा महत्व है .श्रंगार को रस राज कहा गया है . श्रंगार का उद्दीपन और आलम्बन सभी कुछ तो नायिका है .रीतिकालीन साहित्य से निकल कर ,छायावाद और आधुनिक काल से होती हुयी नायिका अब साहित्य के फेसबुक काल में प्रवेश कर चुकी है .पुराने ज़माने में य

लोकप्रियता और शास्त्रीयता के बीच दोलन करता साहित्य

17 जून 2017
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लोकप्रियता और शास्त्रीयता के बीच दोलन करता साहित्य जबसे साहित्य की थोड़ी सी समझ हुयी है एक प्रश्न निरंतर परेशान करता रहा है कि क्या लोकप्रिय साहित्य साहित्य नही है ?क्या कोई भी लेखन जिससे आम जन जुड़ाव महसूस न करता हो वही साहित्य है ?आखिर अच्छी रचना की कसौटी क्या है ?भाषा के स्तर पर सम्प्रेषणीयता महत्

नेरी समझ मे व्यंग़्य

15 जून 2017
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मेरी समझ में व्यंग्य –जब मैं कहता हूँ ‘मेरी समझ में व्यंग्य’ तो इसे दो भागों में बांटा जा सकता है-पहला –‘मेरी समझ’ और दूसरा –‘व्यंग्य’ .जब मैं अपनी समझ के बारे में सोचता हूँ तो हंसी आती है .मुझे समझदार कोई और तो खैर क्या मानेगा मैं खुद ही नहीं मानता .अपने अब तक के किये पर नजर दौड़ता हूँ तो समझदारी

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